शनिवार, १७ जुलै, २०२१

वक्ता प्रशिक्षण (चतुर्थ सत्र )

 भाई और बहनो नमस्कार !

वक्ता प्रशिक्षणके चतुर्थ सत्रमे आपका हार्दिक स्वागत
है | पहले दो सत्रोमे वकृत्व कलाके मंत्रपर बात हुई | तृतीय सत्रमे मंत्र और तंत्र दोनो कैसे पुरक है इसपर चर्चा कियी | यह अंतिम सत्र है | इसमे अधिकतर चर्चा वकृत्व कलाके तंत्रकी होगी | वकृत्व पेश होता है समाजके सामने | समाज मंडईमें दिखता है, मंदिरमे दिखता है और शादीमे दिखता है | इसमेसे मंदिरमे समाज क्यूमे खडा हुआ दिखता है | मंडई और शादीमे क्युमे नही दिखते है | लेकीन सभामे बैठा हुआ दिखता है | वकृत्व याने सिर्फ बातें करना नही है | सभाके आयोजकने दिया हुआ विषयपर बोलना पडता है | जहाँ सभा आयोजित कियी है, वह हाॅलमे कितने लोग आयेंगे इसका अंदाज आयोजकसे लेके रखना भी जरूरत है | माईक सिस्टीम, श्रोताओंको और मंचपर विराजमान मान्यवरोंकी पानी पिनेका व्यवस्था आदि तंत्र है,  जिनकी जिम्मेदारी आयोजकोंकी रहती है | लेकीन वक्ताने सभाके पहले आयोजकोंसे वह बातोंकी जानकारी लेनेकी जरूरत है | वक्ताने पंधरह मिनीट पहले सभाके स्थानपर पहुचना जरूरी है | 

१) अब हम बोलनेकी शुद्धतापर बात करेंगे | लेखन और वाचन सुंदर है तो वह आनंदकारक भी है | अपनी शब्द संपत्ती बढानेका प्रयास करना होगा | लेकीन अपने विचारोंको  व्यकरणकी शुद्धतामे अटकानेका जबरन आग्रह की जरूरत नही है | वकृत्व कला यह पांडीत्यका प्रदर्शन करनेका मंच नही है | "  अपने मनके विचार, भाव और भावना यथायोग्य रूपसे पेश हुये तो भाषण परीपूर्ण माना जाता है | भाषाका प्रयोजन सिर्फ अपने मनोगतकी अभिव्यक्ती है और यह मनोगत प्रसंग, विषय और आशय के अनरूप होना जरूरी है |

२) महाराष्ट्रके संत समर्थ रामदास स्वामीने कहा है की
" प्राणीमात्रा जिवे लागे बर्या शद्बे | " जिन्हे अच्छा वक्ता होना है उसें  दिनके हर व्यवहारमे  अच्छे शब्दका उपयोग करना सिखना चाहिए | जैसा विचार वैसा शब्दका उच्चार, और जैसा  शब्दका उच्चार  वैसा आचार, जैसा आचार वैसा ही अपना व्यक्तीमत्व | अपना व्यक्तीमत्व भी  ऐसा कुछ हो, की कुछ बोलनेसे पहले ही श्रोता प्रभावित होते है |  किसी बालकने  वेष परिधान नही किया हो तो भी वह बालक सुंदर दिखता है | क्यों की बालक निर्विकार और निरागस रहता है |

३) अब हमें भाषणकी शुरूआत कैसी करें और भाषण कब खत्म करें इस बातपर चर्चा करेंगे | जिस कार्यकी शुरूआत अच्छी होती है उसकी समाप्ती भी अच्छी होती है | यह एक सर्वसाधारण अनुभव है |  वकृत्वमें भी यह अनुभव स्वयं वक्ताको और श्रोताओंको भी आता है | भाषणकी शुरूआत करनेकी लिए कुछ खास ऐसे नियम नही है | लेकीन कभी कभी उसी व्यासपीठ पर उस समय पहले वक्ताओंके भाषणोंका संदर्भ देकर शुरूआत कर सकते है तो वह वक्ता श्रोताओंका दिल जल्दसे जित सकता है | महान तथा थोर पुरूषोंओका भाषण सहज सुंदर रहनेका रहस्य यह है की वह श्रोताओंको भगवानका रूप मानते थे | महात्मा गांधीजी और लोकमान्य तिलक भारतिय जनताके दैवत थे | इसका कारन यह दोन महापुरूषोंने भारतीय जनताको ही अपना दैवत माना था |

४)हम तो सामान्यजन है यह सत्य जरूर है | लेकीन हम कमसे कम भाषणकी शुरूआत तो सुंदर बना सकते है | यदी हम एक श्रोताके रूपमें अच्छे भाषण सुननेको बार बार जाते है, तो मनमे हमें भी इस तरह भाषण देनेकी एक इच्छा उत्पन्न होती है | ऐसी भावना को मिटाना नही है | यदी मिटा दिया, तो उस भावनाकी स्थिती एक फुल जैसी होगी जो शामतक मुर्झा जाता है | क्योंकी वही आपकी भावना आपके वकृत्वका बीज रूप है | 

५)जिस दिन पर हमें भाषण देना है उस दिनकी (हमारी संस्कृतीके अनुसार जो कुछ ) विशेषतायें है वह बताकार भाषणकी शुरूआत कर देते हो तब श्रोताओंपर अच्छा प्रभाव पडता है और वह हमें सुननेके लिए तैयार हो जाते है | भाषणके वक्त शुभ प्रभात, शुभ शाम ऐसी शुरआत श्रोताओंको पसंद आती है | 

६)लोकप्रियताकी नशा याँ श्रोताओंसे भय यह दोन बातोंको मन मे प्रवेश नही देंगे तो अच्छा होगा | नही तो एक तो अपना भाषण लंबा हो जाता है याँ पर्याप्त समय का उपयोग न होकर भाषण जल्दसे खत्म करनेकी नौबत आती है |

७) समय के अनुसार, भाषणके मध्य समय पर हम आते है, तब अपने विषय तथा विचार के अनुरूप छोटी कथा , कुछ विनोद बताना आवश्यक होता है | ऐसा करनेसे अपने भाषण के बीचमे जिन श्रोताओंका ध्यान विचलीत हुआ है उनका ध्यान फिरसे अपने भाषणपर स्थिर हो सकता है | भाषणमे हो सके तो संस्कृत, अपनी मातृभाषा, राष्ट्रभाषाके मुहावरें, श्लोक, अमृतवचन लेखकका नाम बताकर पेश करनेसे वकृत्व को एक लय प्राप्त होती है जिससे श्रोता तृप्त हो जाते है | इसका कारन मानव को जन्मतः कानोसे गुंज सुननेमे रूची होती है और वजह यह है की यह विश्व एक नादब्रह्म है |

८) वकृत्वका सराव कैसा करना और वकृत्व करते समय कौनसी सावधानी बर्तानी है आदि बातें निचे देता हूँ |

i) आयनाके सामने भाषण बोलनेका सराव करना है |

ii) गायक जिस प्रकार अपने वाणीकी निगरानी रखते है वैसी वक्ताको भी वाणी तजेलदार रखनेके लिए लेना है |
सुबह और रात गरम पानी लेना चाहीये | गरम पानीमे किंचीतसा नमक डालकर गार्लनिंग करना चाहीये | गार्लनिक के लिए बेटाडीन (द्रवरूप) दवा भी मिलती है |

iii) चाय लेना हो तो कोरा चाय याने की पानी लेकर
उसमे  शरीरकी शुगर लेवलके हिसाबसे शुगर , थोडा
अद्रक, लौवंग डालकर अच्छी तरहसे उबालकर बादमे
चाय पाउडर डालके तुरन्त गॅस बंद करे | बिना दुधकी
चाय पिनेकी आदत लगाये | अथवा आजकल ग्रीन टी
उपलब्ध है वह पिजीये |

iv) भाषणमे पाॅज कैसा लेना है और कहाँ चढ-उतार
करना है, यह जानने के लिए कुछ नामी वक्ताओंके
विडीओ सुने |

v) किसी भी वक्ताकी नकल करनेका मोह टाल दे |

vi)भाषणसे पहले माईककी टेस्टींग तथा ॲडजस्टमेंट
चेक करें |

vii) भाषण करते समय माईक के हिसाबसे आवाज
का वाॅल्यूम ऑडीयेबल हो इतनाही रखे |

viii) मंचपर कोई प्रतिमा हो, तो उससे दुरी रखकर
खडे रहें ताकी वह प्रतिमाका आदर रहे |

 ix) विषयका ज्ञान, शब्दसंपत्ती, दमदार आवाज, और अंतःकरणमे बहता हुआ सद्भाव और अवधान शक्ती विकसित करनेके प्रयास करना है |

x) अपना विचार श्रोताके सामने अपनी सिर्फ हातके एक अंगूली उठाकर करते हो तो श्रोताओंके मनमे आप डिक्टेटर है , यह भावना दृढ होती है | इसके बजाय अपने दोनो हाथोका उपयोग करें तो आप लोकशाहीवादी है यह सुचीत होता है |

९) भाषणके समाप्तीके चरण पर आते तब  हमने जो कुछ बातें कहीं है उनका सार रूप करके कुछ संदेश, भविष्यवाणी तथा आनेवाले समयपर जो कुछ सावधानी बर्तानी होगी उसे जोडकर सभीको धन्यवाद देकर श्रोताओंसे विदाई लें | विदाई लेनेके बाद भाषण जिस क्षेत्रके विषयमे दिया हो तब उसे अनुरूप जय करना है | 
जैसे की शिक्षा क्षेत्रहो तो शारदामाता की जय,  उद्योग क्षेत्र हो तो जय महालक्ष्मी,  जिस देव देवताके मंदिरमें भाषण हो तो तब उसकी जय कहना, सहकार क्षेत्र हो तो जय सहकार, ,शोकसभा हो तो हरी ओम, और अंतमे अपने प्रदेशकी जय और जय भारत याँ भारतमातकी जय करना है यह ध्यानमे रखें | 

१०)अब मै आपको एक नामी वक्ताके परिश्रमकी कथा बताकर इस वक्ता प्रशिक्षण वर्ग की समाप्ती करता 
हूँ  | यह कथा है, वक्ता होनेका एक ही गुण जिसमे नही था ऐसे ग्रीसके प्रभावी वक्ता डेमाॅस्थेनिस की | जन्मसे ही उसकी आवाज तथा शब्दोच्चार  बोलनेकी कवायत कर रहे छोटे बालकके समान  थे | याने आवाजमे कंपनता 
थी | उसमे जो कमीया थो उसे नष्ट करके अच्छा वक्ता बननेका आव्हान उन्होंने स्विकार किया | वह पहाडपर चढउतार करने जाता था | उससे उनकी श्वसनशक्ती बढ गयी | लेकीन फिर भी आवाज दमदार नही हुआ था | कारन आवाजको  भार (वजन/ weight) नही था, विस्तार और व्याप्ती नही थी | समुंदरके तट पर जाना शुरू किया और जोरजोरसे बोलना शुरू किया | अब आवाज दमदार बना | मुँह, जिव्हा, के मसल मजबूत तथा इलॅस्टिक बन गये |  शब्दसंपत्ती बढानेके लिए नामांकित लेखक युसिडिडिज के ग्रंथ का पठन 
किया | अनेक किताबे पढे, भाषण सुने और अंतमे वह ग्रीस देशके वकृत्व पंढरीके पांडुरंग बने |

                                     धन्यवाद !
                                 जय वाक् देवता !
                                 जय भारतमाता ! 

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