भाई और बहनो नमस्कार !
१)वक्ता प्रशिक्षणके तृतीय सत्रमे आप सभीका हार्दिक स्वागत है | इस सत्रमें हम वकृत्व- कला पर चर्चा करेंगे | द्वितीय सत्रोमें हमने वकृत्वके लिए रखा हुआ विषयकी जानकारी कैसी लेनी है, उससे अपनी जिज्ञासाकी तृप्ती कैसी होती है इन सभी बातोंपर चर्चा कियी है | किसी विषयकी जानकारी याँ ज्ञान, श्रोताके सामने कैसा रखा जाये उसीको वकृत्व कला कहा जाता है | मैने कई साल पहले " It is nice to be important or it is important to be nice इस वाक्यपर चर्चा मे हिस्सा लिया था | चर्चासे कुछ निष्कर्ष हातमे आनेवाला नही था | इसका कारन महत्वपूर्ण बातें अच्छी लगती है और अच्छी बातें महत्वपूर्ण होती है | लेकीन चर्चासे हम यह सिख लिया की किसीभी विषयमे दो राय होती है | मराठीत म्हटले जाते की, " प्रत्येक नाण्याला दोन बाजू असतात | "
२) किसी विषय याँ प्रसंग अच्छे रहते है तब वकृत्व अच्छा होता है, याँ वक्ताके शैलीसे वजह विषय और प्रंसग अच्छे लगते है इस बारेंमे भी हम चर्चा करेंगे तो ठोस उत्तर नही मिलेगा | कभी कभी श्रोता वर्ग वकृत्वका विषय देखकर सभामे उपस्थित रहते है | तो कभी अच्छा वक्ताको लोग सुनने आते है | वकृत्व का विषय हो याँ विषयको अच्छी तरहसे पेश करनेवाला अच्छा हो, यह दोनों बाते एक दुसरेको पुरक है | फिर भी किसी भी विषयको याँ विचार याँ प्रसंगको कलाके ढंगसे पेश करना उसे वकृत्व कहे तो वह अधिक सच है | कलाका स्वरूप भी व्यक्ती सापेक्ष रहता है | सभी अच्छे, नामांकीत वक्ताकी एक स्वतंत्र शैली होती है | उस शैलीसे उन्हे लोकप्रियता मिली है, फिर भी उनको भी वक्ता बननेके प्रक्रीयासे जाना पडा है तथा प्रयास भी करने लगे है | किसी भी कलाको अपना एक मंत्र और तंत्र रहता है और उसे अवगत करनेकी प्रक्रीयाका नाम प्रशिक्षण
है | मुलतः प्रशिक्षणमे शिक्षा याने शिक्षणका अंतर्भाव होता है | प्रशिक्षण याने किसी क्षेत्रका उच्च स्तरका ज्ञान लेना है | आजके युगमे इसे स्पेशालायझेन ऐसा नाम प्राप्त हुआ है |
३) वकृत्व यह एक कला है | लेकीन गहीरासे देखे तो वकृत्व कलाके बढकर कुछ तो है | चलो उसें ढुंढनेका प्रयास करें | हमारी संस्कृतीमे विश्वकी निर्मिती 'ओम' इस नादसे हुई ऐसा कहा है | ॐ इस शब्दमे अ ऊ, म ऐसे तीन पद है | आचार्य विनोबाजी भावेने कहा है की उमा यह एक शक्ती है और उसमे भी ही अ ऊ म ऐसे तीन पद आये है लेकीन भिन्न क्रमसे आये है जैसे की उ म अ | याने उमा ! ओम याने शीवजी याँ पुरूष और उमा याने प्रकृती | इन दोनोंके मिलनसे इस विश्वका निर्माण हुआ है | एक पेशीसे बहुपेशी और बहुपेशीयसे विश्वका निर्माण हुआ ऐसा विज्ञान कहता है | इसका मतलब अध्यात्म और विज्ञान अपने अपने शैलीमे शाश्वत सत्यका वर्णन करते है | विज्ञान कहता है, एक महाविस्पोटसे विश्वकी निर्मिती हुई | इसका मतलब आवाज (Big Bang) | अध्यात्म कहता है ' ॐ ' ऐसे नादसे विश्व निर्माण हुआ | नाद याने धून और धून याने ध्वनी, और ध्वनी याने बोलना | 'बोलना' यही साहित्यका पहला रूप है | सदियोंसे जो ज्ञानका भांडार दृश्य स्वरूपमे आया वह वाणीके माध्यमसे आया | उसे श्रुती, स्मृती, उपनिषद ऐसा कहा जाता है | बादमे लेखन कला, साहित्य, वाङमय, ऐसे होते होते मिडीया, मोबाईल इन्टरनेट तक प्रवास हुआ है | यह सभी बोलना नामकी शक्ती के विभिन्न रूप है |
४) वकृत्व यह कला उपजत भी रहती है और वारस रूपमें भी मिलती है | मराठीके एक नामी प्रवचनकार प्राध्यापक सु ग शेवडेजींके दोनो सुपूत्र आजके तारीखमें अच्छे व्याखाता माने जाते है | वैकुंठवासी किर्तनकार आफळे बुवा के सुपूत्र भी एक किर्तनकार है और व्याखाता है | वह मराठी संगीत नाट्यसृष्टीके एक महशूर ॲक्टर भी है | लेकीन ऐसे भी उदाहरण है की जिनके पुर्वज अच्छे वक्ता होकर भी उनके वंशज अच्छे वक्ता नही बन सके |
५) गुरू-शिष्य परंपरामे भगवान रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद यह एक अग्रणी जोडी है | भगवान रामकृष्ण परमहंसको अपने आत्मिक शक्तीद्वारा नरेंद्र जैसा युवक उनके पास आयेगा यह मालूम पडा था | वे नरेंद्र की राह देख रहे थे | उन्हें नरेंद्रकी भेट होनेकी परम उत्सुकता लगी थी | वही नरेंद्र दुनियामें अध्यात्म क्षेत्रके एक महान चिंतक और वक्तृत्व कला के भी स्वामी रूपमें अमर रहे है | शिकागोमे सर्वधर्म परिषदमे उनके व्याख्यानकी ' इस सभागृहमे उपस्थित Brothers and sisters ' कहकर जो शुरूआत कियी उसकी धून आज भी सुनाई जाती है | इसे कहा जाता है, श्रोताओंके प्रती हृदयसे भक्ती ! उस विख्यात भाषणके बाद स्वामी विवेकानंदजीके अमेरिकामें व्याख्यानोंकी शृखंला शुरू होई | एक दिन उनके सुबह सत्रका भाषण खत्म हुआ, तब उनके खास परिचीत अमेरिकन श्रोताने उनको पुछा कि " स्वामीजी, कल देर रात तक आपका कार्यक्रम शुरू रहा, आपको भाषण तैयार करनेके लिये पर्याप्त समय नही मिला, फिर भी आप आज सुबह इतना सुंदर और सुलभ भाषण कैसा कर सके? " स्वामी विवेकानंदने जबाब दिया, " बंधू, अपना मन श्रोताओंने कब्जा किया हो तो श्रोताओंसे हमें शक्ती प्राप्त होती है | " उन्होंने यह शक्तीको चमत्कार समझनेका स्पष्ट रूपसे इन्कार किया है, इसे कहते है, ' श्रोताओंके प्रती भक्ती | ' स्वामी विवेकानंद मे जरूर दैवी शक्ती थी लेकीन ग्रंथ, किताबे पढना उनका श्वास बन गया था इसे हमें भुलना नही | इसिलीए प्राध्यापक शिवाजी राव भोसले, अपने देशके विद्यमान पंतप्रधान नरेंद्र मोदी स्वामी विवेकानंदके विचारोंसे अधिक प्रभावित हुये है | प्रा शिवाजीराव भोसले स्वामी विवेकानंदके जीवन चरीत्रके एक जाने माने व्याख्याता है | एक जगह उन्होने कहा है की, वाचन
और वकृत्व यह एक उपासना है |
६) दुनियामे ऐसे भी उदाहरण है जिसके पास वकृत्व कला बिलकूल नही थी | फिर भी वह अपने परिश्रमके बल पर जागतिक स्तरके अच्छे वक्ता बन गये है | इसमेसे एक वक्ता की कथा मैं इस सत्रके अंतिम चरणमे दुँगा | अनेक देश-विदेशी मान्यवर वक्ताओंने अनुभवको अपने पब्लीक स्पीचेस तथा आर्ट ऑफ पब्लीक स्पिकींग जैसे किताबोमें दिया है | ऐसे किताबे भी आप जरूर पढे |
७) कोई भी कला अवगत करनेके लिए प्रॅक्टीस याने सराव करना यह एक प्रमुख कन्डीशन है | कला सिखनेके लिए उस कलाके तंत्र और मंत्रको अच्छा तरहसे समझना चाहिये | वैसे तो हम हर दिनमे आपसमे विभीन्न विषयपर बोलते है, संवाद करते है और चर्चा भी करते है | वही चर्चा निर्भयतेसे मंचपर करनेका धाडस करें तो वकृत्व कला अपने आप भी सिख सकते है | मैं मानता हुँ की Success come to those who plan their work and excute the plan with self confidence and determination. लेकीन Success come to those who take risk इस तंत्रको भी अपनाया जा सकता है | जब वकृत्व कला का प्रश्न आता है तब तंत्र हो या मंत्र, अलग अलग मंचपर होनेवाले व्याख्यान सुननेकी आदतसे अच्छा वक्ता बन सकता है यह त्रिकालातीत सत्य है |
८) हम जो भाषण सुनते हो या पढते हो, उस समय टिपण लिखनेका काम शुरू रखना चाहीए | वक्ताने बतायी हुई कथा, प्रंसग, अनुभव, मुहावरें, स्टॅटेस्टीक, यह सब मुद्दे Date and Subject wise एक फाईलमें रखना चाहीये | एक ही विषयपर दो याँ तीन वक्तोओंका भी भाषण सुनना होता है | इसिलीए Subjectwise टिपण रखे तो जब हमें भाषण देना है, उस समय वह टिपणको रैफर करनेमे सहज सुलभ हो जाता है | इससे हम अपने working hours की बचत करते है | यह बात व्यवस्थापन शास्त्रके गुरू भी सिखाते है | ऐसी बातें दिखनेमें छोटी लेकीन इससे भाषणके लिए घरसे बाहर निकलते समय आत्मविश्वाससे परिपुर्ण और प्रसन्नतासे मंचपर विराजमान होनेकी मदद होती है | स्वातंत्र्यवीर सावरकरने ' सर्वसारसंग्रह ' इस नामकी टिपण नोटबूक बनायी थी और कहा है की वही नोटबूक उनके वकृत्वकी नींवकी ईट बन गयी है | भाषण सुनना और टिपण नोटबूक तैयार करनेसे एक श्रोताके नातें अपने भावनाओंके अविष्कार की हमें अच्छी पहचान होती है | और इससे हम जब वक्ताके भुमिकामे काम करते है तो अपने सामने बैठे हुये श्रोताओंकी नस पहचानेमे मददगार होती है |
९) विविध स्तर, विभिन्न मानसिकता, विभिन्न रूचीसे भरा हुआ लोगोंका समूह इसका नाम समाज है | जैसा श्रोता वर्ग वैसा वकृत्व होना चाहिये | ' जैसा देश वैसा वेष ' यह आम तौरसे माना गया सिद्धांत वकृत्व कलामें भी लागू होता है | छोटे बालकोंके सामने हमारा भाषण कथा रूपमें होना प्रायः आवश्यक माना गया है | श्रोताओमे महिलाकी उपस्थिती अधिक हो तब महिलाओंके पराक्रम, उनकी अच्छी विशेषतायें पर बात अपने भाषणमें होना जरूरी है |
१०) श्रोताओंमें इतनी विविधता विभिन्नता होते हुई भी आमतौरसे मानी गयी विशेषतः यह है की प्रत्येक श्रोताका ध्यान पुरी तरहसे भाषण सुननेमे रहता नही है |' Every man is poor listener ' यह एक वास्तव है | दुसरा सिद्धांत यह है की Customer is always right. And customer is our god यह आजके व्यापारी युगमें स्थापन हुये जो नियम है, वह वकृत्व कलामें प्रवेश कर चूके है | क्यों की वक्ताको भी मानधन देना पडता है | आजके इस व्यापारी युगमे वकृत्वकला एक उपजिविका साधन बन गयी है | यह आज स्वाभाविक माना गया है | कालाय तस्मै नमः यह एक सच है और अनुभव भी है | इसपर किसी की कोई आपत्ती होनेका सवाल ही नही उठता है | वकृत्व कला आजके युगमे एक करिअर हुआ है | इस करिअर मे ट्रान्सलेटर याने अनुवादक की जरूरत दुनियाके सभी देशोको रहती है | यह बात विशेषतः महाविद्यालयीन विद्यार्थीओंने ध्यानमें रखें | मराठी जगतके जाने- माने गये महशूर वक्ता प्राध्यापक शिवाजीराव भोसलेने कहा
है, " बोलणे आणि लेखन नेमके आणि नेटके असावे." इसका अर्थ to the point and appropriate होनेकी आवश्यकता है | प्राध्यापक शिवाजीराव भोसलेजीने यह कहकर हमें बताया है की अपने भाषणसे श्रोता बोअर होनेसे पहले ही भाषण समाप्ती करना उचीत है | इंग्लडके भुतपुर्व प्रधानमंत्रीने विन्स्टन चर्चीलने कहा है की " भाषण कब खत्म करनेका यह ज्ञान वक्ताको होना जरूरी है |" इसलिए भाषणमे क्या बोलना है इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है हमें क्या बोलना नही है इसपर ध्यान देना चाहिए | तभी अपना भाषण अधिक अर्थपुर्ण, अधिक प्रगल्भ और अधिक पुर्णत्वके दिशापर जाता है |
क्रमशः ----
(कृपया ध्याने दे-- वक्ता प्रशिक्षण सत्र चतुर्थ पढनेके लिए स्वंतत्र लेख निचे दिया है | )
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