शनिवार, १७ जुलै, २०२१

वक्ता प्रशिक्षण (द्वितीय सत्र)

भाई और बहनों नमस्कार !


आप सभीका वक्ता प्रशिक्षणके द्वितीय सत्रमे हार्दिक स्वागत है |

१) वकृत्व एक अध्यात्म है, विज्ञान है, एक कला है और एक शक्ती भी है | इस कलाको आत्मसात करनेकी पहली जरूरत यह है की हमें पढनेकी आदत लगाना है | कोई भी विषय हो उसमें आम तौरसे अलग अलग रायें भी होती है | और वैसे अलग-अलग किताबें भी होती है | इसिलीए विषयकी जानकारी लेनेकी लिए अलग अलग किताबें पढना चाहिये , क्यों की वक्ताके सामने जो श्रोता बैठते है वह भी विविध विचारसरणी, तथा स्तर और विविध रूची हो ऐसे होते है | इसिलीए पढनेकी रूची बढानेके लिए हर दिन प्रयास करना पडता है |

२) किसी भी चीज की आदत बनें तो वह आदत अपना स्वभाव बनता है | कहा जाता है की मनुष्यको बुरी चिजें जल्दसें आकर्षित करतें है | लेकीन अच्छे, और नेकी कार्यक्षेत्रमें काम करनेकी इच्छा जल्दसे नही होती है और जब होगी तो उसमें हमारी प्रगती भी उत्क्रांतीसें याने gradually होती है | उसमें कोई शाॅटकट नही होते है | सृष्टीमे एक शाश्वत सत्य है और वह है  आम , केला, सेब, इत्यादी फल पानेके लिए उनके पेडकी अच्छी तरहसे निगरानी करनी पडती है | लेकीन सृष्टीमें कांटेदार बिल्लीयाँ जो दिखती है, उसे ना सुर्यप्रकाशकी जरूरत होती है, ना पानीकी जरूरत रहती है | ना निगरानीकी आवशक्यता होती है, ना फर्टीलायझर और किटकनाशक दवाँयेकी रहती है | बस वह कांटेदार बिल्लीयाँ युहीं उगती है | इसिलीए किसी भी क्षेत्रमें अच्छा यश प्राप्त करना हो तो पहले संस्कारकी आवश्यकता होती है | संस्कारके दो प्रकार होते है | एक नैतिक और दुसरा व्यवहारीक जिसमें जिस क्षेत्रमे यशस्वी होना उस क्षेत्रका प्रॅक्टीकल और तांत्रीक ज्ञान का संस्कार | वकृत्व क्षेत्रमें भी उन्नती करनी हो तो पहले वाचन संस्कृतीको आत्मसात करना है | दुसरी बात है कलाका तंत्र जिसमे, व्यक्तीमत्व विकास, आवाज थेअरी, समयसुचकता, इनका अंतर्भाव होता है|

३) जिस विषयपर बोलना है उस विषयकी जानकारी की जरूरत होती है | ज्ञान के बिना काम नही | विषयकी जानकारीके लिए लगन है तो ज्ञान प्राप्त होता है |  लगन याने समरस होना है | इसिको भक्ती भाव याँ भक्ती योग कहते है | ज्ञान के बिना नाम (भक्ती) अधूरा और नामके बिना ज्ञान अधुरा है |  हमें ज्ञानयोगी बनना है और भक्तीयोगी भी बनना है | बिना ज्ञान, बिना नाम से कर्म भी अधुरा है | यह एक अद्भूत अवस्था याँ व्यवस्था है | इसमे छिपा हुआ एक सत्य है | वह सत्य यह है की सबसे पहले ज्ञान संपादनकी इच्छा होनी चाहीए | और उसके बाद  ज्ञान संपादनका कार्य शुरू होता है | वह कार्य निरंतर जारी रखना चाहिए |  इसका मतलब हमें निरंतर कर्मयोगी बनना पडेगा | गीतामे भगवंतने कहा है की  
' तस्मात योगी भव |' कर्मसे भागना यह अक्षम्य भूल है | Without vision action is fruitless. And without action every thought, or vision is hopeless.

४) अपने देशमे बहूत ऐसी संस्थायें है की वह समाजमे वाचन संस्कृती बढानेके लिए किताबोंका प्रदर्शन रखते है और किताबोंके मूल्य घटाते है ,ताकी लोगोंमे पढनेकी आदत लगें | कही जगह चलता-घुमता वाचनालय का भी अभियान रहता है, जिससे लोगोंको अपने घरपर किताबे मिलते है | वाचन को संस्कृती माननेकी प्रथा हमारे देशमे सदियोंसे चलती आयी है | सदियोंसे हमारें यहाँ वाचन और वाणी यह दो महान शक्तीयाँ मानी जाती है | वर्तमान कालमे वाचन एवं वाणी के माध्यम कुछ बदल गये है लेकीन वाचन और वाणीकी शक्ती हम तर्क नही लगा सकते इतनी बढी हुई है |  फेक विडीओज्, फेक न्यूज, फेक आर्टिकल्स, फेक डाटा, आर्टीफिझीयल इंन्टीलीजन्सी, इस रूपमें मूल ज्ञान -विज्ञान, लेखन और वाणी अब शस्त्र बन गये है, और इसी शस्त्रोंसे अपने देशकी शिकार करनेका  षडयंत्र रचा गया है | देशके एक जागृत नागरिक होनेके नाते समाजबांधवोंको गुमराह करनेकी दुश्मनकी  कोशीश को नाकाम करनेका प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है | राष्ट्रहीतकी बातें लोगोंके सामने रखनेकी क्षमता प्राप्त करना है | नये शताब्दीमें वक्ता का व्यासपीठ किसी हाॅलसे ज्यादा अपने वस्तीके हर बांधवका घर होगा | व्यासपीठ की और वक्तृत्व की शक्ती असामान्य है | इसी शक्तीसे अपने देशका स्वातंत्र्य संग्राम यशस्वी हुआ | सन १९७५ मे देशमे  इमर्जन्सी लगाकर केंद्रकी इंदिरा गांधी सरकारने अभिव्यक्ती स्वातंत्र्य छिन लिया था | १९७७ के चुनावमे पंतप्रधान इंदिरा गांधीका और उनकी काॅग्रेस पार्टीका  उस समयके विरोधी दलोंने पराभव किया और अभिव्यक्ती स्वातंत्र्य वापस  मिल गया और  इमरजन्सी भी हट गयी | उस समय चुनाव प्रचारमे विरोधी दलोंके नेताओंने बहुत प्रभावशाली रूपसे भाषण दिये थे | भारतीय इतिहासमे वह सभी भाषणें वकृत्व कलाका एक विलोभनीय अविष्कार माना जाता है  | महाभारतके कालमे कौरव पांडवोंमे जो महायुद्ध हुआ था, उसमे भगवान श्रीकृष्णने सभी पारंपारिक शस्त्र छोडकर वकृत्व शस्त्रका उपयोग करके अर्जूनको गीता कही | इससे पांडव को विजय प्राप्त हुआ और अखिल विश्वको एक अभूतपुर्व ऐसा गीता ग्रंथ प्राप्त हुआ | ज्ञानेश्वर महाराजने भी ज्ञानेश्वरी अपने वाणीसे भक्तोंको सुनायी थी | उसके बाद वह लिखीत रूपमें आयी | ऐसा कहा जाता है की ब्रिटनके प्रधान मंत्री विन्सटन चर्चील एक अच्छे वक्त थे | उनके भाषणसे दुसरे महायुद्धके कालमे, ब्रिटनकी जनता और सैनिकोंको नया उत्साह आता था | इसिलीए हिटलरको हार मिली |

५) मेरे पास प्रसिद्ध गायत्री उपासक देवधरजींका एक किताब  पढा है | उन्होंने वाणीके (वाचाके) चार प्रकार बतायें है | आप सभीके जानकारीके लिए उसे संक्षिप्तमे रखता हूँ | हम आपसमें सब संवाद करते है उसे ' वैखुरी ' वाणी कहते है | दुसरी वाणीको ' मध्यमा ' कहा जाता है | जिन लोगोंके कहना को हम आज्ञा मानते है, उनके पास ' मध्यमा ' वाणी होती है | ऐसे वाणीका प्रयोग देशके राष्ट्रपती, प्रधानमंत्री करते है | क्यों की उन्होंने जो कहा है उसे एक आम नागरिकके नाते हम स्विकार करते है | मध्यमाके उपरकी श्रेणीपर ' पश्यन्ती ' वाचा रहती है | निरंतर अध्यात्मिक साधना, पठण, और वाचनसे दिलकी गहराईसे बोलनेकी शक्ती प्राप्त होती है उसे पश्यन्ती वाणी कहा जाता है | इस वाचासे सदा आशिर्वाद ही बाहर आता है | माना जाता है की आज भी अपने देशमे ऐसे अध्यात्मिक गुरू है, उनका कहना एक प्रकारकी भविष्यवाणी रहती है | सबसे उच्च श्रेणीकी वाचाको 'परा ' कहते है | वह अपने नाभी स्थित रहती है | भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरू नानक और सभी संत-महंतके मुँहसे  सिधीसाधी बातें भी, ' परा ' वाणीके प्रकार माने जाते है | श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद, लोकमान्य तिलक, स्वातंत्र्यवीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, पंडीत नेहरू, आचार्य अत्रे, पु ल देशपांडे,  प्राध्यापक शिवाजीराव भोसले, अटलजी, जगन्नाथरावजी जोशी, बॅरिस्टर नाथ पै, सुषमा स्वराज, साध्वी ऋतुंबरा, साध्वी उमा भारती, बाळासाहेब ठाकरे आदि महान व्यक्तीओंने अपने भाषणसे लाखो लोगोंके दिल जिता है | इसका कारन, उनकी कितोबोंसे गहरी दोस्ती थी और समाजके प्रती उच्च श्रेणीकी भक्ती थी | इन महानुभवोकें चरित्रसे प्रेरणा लेकर वाचन संस्कृतीको आत्मसात करें तो हमारा  संयम और आत्मविश्वास बढता है, जिससे  हमारी वकृत्व कलाके साथ अन्य क्षेत्रमे भी प्रगती होगी |

६) आम तौरसे हम कुछ पढते है, तब हम वाणीसे शब्द नही उच्चारते है | सिर्फ कितोबोंके एकेक पृष्ठपरके शब्दपर नजर देकर किताब पुरा पढते है | वैसा देखा जाय तो ईश्वर हर प्राणीमात्रामें स्थित है और यह बात भगवान श्रीकृष्णने गीतामें कही है,
          ईश्वरः सर्व भूतानां हृदेशेऽर्जन तिष्ठती | 
इसिलीए मुझे लगता है की जब हम किताब पढते है, उस समय हम ' परा ' वाणीका ही उपयोग करते होगे | इसका मतलब पढते समय अव्यक्त रूपसे हम स्वयं बोलते है और स्वयं सुनते भी है | इसी प्रोसेसमें स्वाभाविक रूपसे हमारा संयम बढता है और साथमे श्रवणशक्ती बढती है | श्रवणशक्ती बढती है तब स्मरणशक्ती भी बढती है, जो हमें वकृत्वमे मददगार होती है | अच्छा श्रोता ही अच्छा वक्ता बन सकता है यह बातको आधुनिक मानसशास्त्रने सहमती दर्शायी है | सारांश से हम यही मान ले की अच्छा वक्ता बननेके लिए विषयका ज्ञान - व्यासंग हो, अच्छा श्रोता बनो, अच्छी वाणी हो और श्रोताओंके प्रती भक्ती हो |

बंधुओ, मैंने अभी आपके सामने जो बातें रखी है, वह सब वकृत्वके पिछे छुपें हुयें विज्ञान और अध्यात्मके रहस्यें हो सकती है | वकृत्व यह एक बहुत बडी कला भी है | इसपर हम तृतीय सत्रामे चर्चा करेंगे |
                                              क्रमश - - - -

(कृपया ध्यान दे --  वक्ता प्रशिक्षणका तृतीय सत्र पढनेके लिए स्वतंत्र लेख निचे दिया है ) 

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