शनिवार, १७ जुलै, २०२१

वक्ता प्रशिक्षण (प्रथम सत्र)

मे महीना गेला. जून ही गेला. जुलैचा पहिला पंधरवडा संपला. लाॅकडाऊन शिथिल करण्यासंबंधीचा निर्णय जूलै अखेरीस होईल असे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरेंनी म्हटले आहे. पण राजकीय मंडळीचे राजकारण अहोरात्र चालू आहे. वस्तुतः राजकारण या शब्दा ऐवजी राजनीती असा शब्दप्रयोग लोकशाहीत अभिप्रेत असतो. पण तो कायमचा हद्दपार झाला आहे. राजकारण अहोरात्र सुरू असते असे म्हणण्यापेक्षा रात्रीच अधिक चालते आणि चर्चा दिवसा चालू असतात, असे म्हटले तरी ते पटण्यासारखे आहे. राजकारणावरील चर्चा आणि विश्लेषणाचे कार्यक्रम प्रिन्ट आणि इलेक्ट्राॅनिक्स मिडीयात ही अहोरात्र सुरू असतात.  म्हणून माझ्या एका मित्राने वैतागाने सुचविले की काही तरी बदल म्हणून राजकारण सोडून दुसर्या क्षेत्रासंबंधी लेख लिहावा. मी म्हटलं तुच विषय सुचव की. त्याने वक्ता प्रशिक्षण या विषयावर हिंदी भाषेत एक लेख पब्लीश करण्याची विनंती केली. हिंदी भाषेत लेख लिहण्यात मला अडचण नाही हे माझ्या मित्राला ठाऊक आहे.  परंतु विज्ञान शाखेच्या अभ्यासक्रमात जसे प्रॅक्टीकलचा तास असतो तसेच वक्ता प्रशिक्षण हा एक उपक्रम असतो. तो कार्यशाळेत पार पाडला जातो. म्हणून मी लागलीच होकार दिला नाही. परंतु वक्ता प्रशिक्षण या विषयावर पुस्तके उपलब्ध आहेत . मग लेख लिहण्याचे टाळणे मला प्रशस्त वाटले नाही. म्हणून कसे का होईना प्रयत्न करू या असे ठरविले आणि मित्राला होकार दिला. त्यातून आकारास आलेले वक्त प्रशिक्षण आपल्यासमोर मांडतोय. आपण या उपक्रमाचे स्वागत कराल अशी आशा बाळगतो . धन्यवाद !


भाई और बहनों नमस्कार !

१)इस वक्ता प्रशिक्षणमे आप सभीका हार्दिक स्वागत है | हम इस प्रशिक्षणमे व्यक्त होना,  व्यक्तीकी व्यक्त होनेकी स्वाभाविकता, बादमे वक्ता बननेकी इच्छा, उसके लिए वाचन संस्कृतीको स्विकारना, बडे बडे वक्ताओंके भाषण सुननेकी आदत लगाना और बादमे वक्ता बनना इसी क्रमसे हम इस प्रशिक्षणमे चर्चा करने जा रहे है | 

मित्रो,  गुरू पौर्णिमा नजदिक आ रही है | गुरू शिष्य परंपरा सिर्फ मानव जातीमें है | इसका कारन यह है की मानवको मन, वाणी और बुद्धीका वरदान है | पशु-पंछीको मन  होता है | उनको मन है इसिलीए उनके पास भावना भी है | लेकीन उनको वाणी जो है वह सिर्फ आवाज है | इसिलीए मन हैं पर भावना व्यक्त करनेकी क्षमता पशु-पंछीयोंके पास नही होती है | विचार करनेकी शक्ती पशु-पंछीके पास होती है | इसिलीए उनको  हमलेकी संभावना समझती है और जहाँ संरक्षण करना ठिक है उधर संरक्षण करते है और जहाँ धोका है वहाँसे पलायन करते है | विचार व्यक्त करनेकी शक्ती पशु और पंछीके पास नही होती है | जो व्यक्त होता है वह व्यक्ती | लेकीन व्यक्त होनेसे पहले उस व्यक्तीके पास कोई विचार होता है | लेकीन विचार सुविचार भी होता है और कुविचार भी होता है | इसिलीए वैदिक कालसे हमारे हर घरमे  बुजूर्ग लोग युवा पिढीको  ' बोलनेसे पहले विचार करें ' यह वाक्य सुनाते आये  है | विचार पुर्वक बोलना यह आचरण धर्मका पहला तत्व है और हमारे वेद, स्मुती, श्रुतीने कहा है, की आचारः प्रथमो धर्मः| (आचरण यही पहला धर्म है ) इससे आगे जाकर वेद कहते है  की, तस्मात् प्राण्येभ्यः अपि विशेषतः | (इसिलीए प्राणोंसे भी बढकर सदाचारकी याने आचरण धर्मकी रक्षा करें ) एक जगह ऐसा भी कहा है की
                   आचारः परमं तपः ||
                   आचारः परमं ज्ञानम |
                   आचारात किं न साध्यते ||
सिधा और साधा अर्थ है आचरणसे सबकुछ हासील कर सकते है | क्योंकी वही परम तप और ज्ञान है | आचरण धर्म का मूल है, तो बोलना यह एक शक्ती है | इसका अर्थ यह है की अच्छा बोलनेसे हम किसी भी क्षेत्रमे प्रगती कर सकते है | प्रथम बोलना, उसके बाद अच्छा बोलना |अच्छा बोलनेके बाद , बहुत बढीया बोलना | बादमे छोटे मंचपर बोलना, उसके बाद बडे मंचपरसे बोलना | बडे मंचपर बोलनेकी आदत लगनेके बाद श्रोताओंके सामने बोलनेका डर खत्म होता है तब वक्ता बन जाता है | ऐसी लंबी होती है वक्ता बननेकी प्रक्रीया |  हमने जन्म लिया और बोलने लगे, चलना लगे, ऐसा तो होता नही | इसिलीए वक्ता प्रशिक्षण लेना भी क्रमशः होता है | मैने वक्ता प्रशिक्षण लेना ऐसा शब्दप्रयोग इसिलीए किया है, की मैं भी इस प्रशिक्षणमे एक विद्यार्थी हूँ | एक बात ध्यानमे रखें की वक्ताकी उपाधी श्रोता देतें है और बादमे वह उपाधी सभा आयोजन समितीसे प्राप्त होती है | वक्ता की उपधीसे अच्छा वक्ताकी उपाधी मिलना आसान नही है | और दशसहस्त्रेषू वक्ता यह उपाधी प्राप्त करना यह माॅउन्ट एव्हरेस्ट सर करने इतना खडतर है 

२) जो व्यक्त होता है उसे व्यक्ती कहा जाता है | व्यक्त होना यह भी एक स्वाभाविक क्रिया है | इसिलीए अभिव्यक्ती स्वतंत्रता यह लोकशाही राज्य प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण माना जाता है | व्यक्त होनेके लिए आम तौरसे वाणीकी जरूरत रहती है | अपने देशमें सदियोंसे ऐसे विभूती हुयें है की उनका व्यक्तीत्व भी ऐसा था की वे बिना वाणीसे और बीना शब्दसे दुसरोके अंतरमनको छू लेते थे | उसके लिए साधना करनी पडती है | वह सभी तपस्वी थे | लेकीन सिर्फ तपस्वी लोग ऐसा चमत्कार करते है, यह आधा सच है | आजके युगमें बिना वाणीसे, बिना दृष्टीसे, बिना श्रवणशक्तीके, शरीरका कोई हिस्सा खोकर बैठे ऐसे बांधव और बहनें वकृत्व, चित्रकला, शिल्पकला, गायनकला, संगीतके विविध यंत्र वादन, रनिंग स्पर्धा, स्पोर्ट आदि क्षेत्रमे अच्छा प्रदर्शन कर रहे है | इसिलीए  उन्हे दिव्यांग ऐसी उपाधी प्राप्त हुई है | इससे यह स्पष्ट होता है, किसी भी कलामें उच्च श्रेणीकी प्रगती हासील करनेकी लिए अतूट चिकाटी और कठोर परिश्रमकी जरूरत होती है और वकृत्व क्षेत्र इसें अपवाद नही है |

३)) जब लेखन तंत्र का जन्म नही हुआ था, तब वकृत्वने ही दुनियामे ज्ञानका प्रसार किया | इसका मतलब यही है की साहित्यका जन्म अपने बोलनेसे ही शुरू हुआ है | बोलना याने संवाद | संवादसे शुरू किया प्रवास सुसंवाद तक जाना यह भी एक प्रक्रीया है | उसके लिए संस्कार की जरूरत रहती है | दो तोतेका एक उदाहरण आप सभीको मालूम है | एक  सुसंस्कृत गृहस्थीके पिंजडेमे बैठा तोता, अपने घरमे कोई अतिथी आता है तब वह तोता अपने मुँहसे ' नमस्ते ' कहकर अतिथीका स्वागत करता है | लेकीन असंस्कृत, अन्डरवर्ल्ड याँ गुंड प्रवृत्तीके गृहस्थीके घरका तोता अतिथीका स्वागत गालीयोंसे करता है | यह उदाहरण इसिलीए पेश किया है की वकृत्व कलाको अपने रोम रोममें जगह बनाना है, तो प्रथम हम संस्कारीत होनेकी जरूरत है | क्योंकी संस्कारीत व्यक्ती दैनंदिन व्यवहारमे बातचीत भी सुसंवादसे करती है | हमारे यहाँ कहा जाता है की,
' संस्कारः एक धनं न क्षिण जायते | ' सिर्फ बोलना उसे संवाद कहते है, वह पहली स्टेज और ' संवादसे सुसंवाद ' यह  दुसरी स्टेज है | यह प्रवास बहूत खडतर रहता है | हमारा सौभाग्य है कि सुसंवाद का संस्कार हमें अपने माता-पितासे मिलता है | 

४)भूतपुर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयीजी  एक महान वक्ता थे | किसी पत्रकारसे बाते करते समय  उन्होंने कहा था की  " बोलनेके लिए वाणीकी आवश्यकता होती है लेकीन मौन के लिए वाणीके साथ विवेक की आवश्यकता रहती है | " अटलजी कवी भी थे और कवीके बारेंमे कहा जाता है  'जो न देखे रवी वह देखे कवी | ' इससे यही प्रतीत होता है की अटलजीने हमें एक संदेश दिया है की यदी अपने बोलनेसे किसीके दिलको ठेंच लगें तो सत्य कटू हो तो  मौन रखे तो अच्छा होगा | क्योंकी अपने मौनसे ही सत्य क्या है इसका संदेश सामनेवालेको आज नही तो कल मिलता है | इसे विवेक कहा जाता है | सत्य बोलना ही है तो उसको इसी तरह पेश करें कि दुसरेके दिलको ठेंच ना पहुँचे | इससे वक्ताके प्रती श्रोताओंके मनमें आदर बढता है | इस संदर्भमें एक कथा पेश करता हूँ | कथा कथन, चुटके आदि बातें अपना भाषणके विषय को अच्छी तरफसे पेश करनेमे तथा श्रोताओंके कान और ध्यान अपने भाषण पर लगे रहनेका एक महत्वपुर्ण आयुधके तरह काम करते है | लेकीन वह कथा, चुटके विषयके अनुरूप होना चाहिए | चले, अब हम कथाके ओर |

५)एक राजा था | उसको जवान बेटी थी और बहुत सालोके बाद जन्म लिया एक तीन सालका बेटा था | एक दिन राजाको अपने हातके मुद्रासे भविष्य जाननेकी इच्छा हुई | उसने प्रधानको आज्ञा दियी, की कल दरबारमे राजज्योतिषीको बुलाया जाय | दुसरे दिन दरबारमे राजज्योतिषीको सिंहासनके नजदिक बैठनेकी व्यवस्था कि गयी | राजा आ गये और सिंहासनपर विराजमान हुये और ज्योतिषीसे उनके परिवारके बारेंमे पुछताश कियी | बादमे ज्योतिषीको अपना हात देकर बोले, " ज्योतिषीजी अब आप शुरू करें आपका कार्य | "

ज्योतिषीने  राजाकी प्रथम पराक्रम, बादमे धन रेखा  उसके बाद विद्या रेखा, और जीवन रेखा देखकर राजाको  सम्राट बननेका योग, राजाके पराक्रमसे अन्य राज्य उनके राजके हिस्सा बनना, स्वाभाविक रूपसे धन और संपत्ती बढनेका योग और  राजाको लंबी आयु मिलेगी, देश-विदेशके विद्वान जोड जायेंगे और विद्याके सभी शाखायेंकी विद्यालय तथा महाविद्यालयका निर्माण होगा आदि अच्छी बातें बतायी | अंतमे वह ज्योतिषी  पुत्रसे सुखकी प्राप्त कैसी और कितनी मिलती इस रेखापर आते है | ज्योतिषी उस रेखापर नजर डालते है,  तब उनके चेहरे पर उदासी छा गयी | यह देखकर राजाने तुरंत पुछा, " ज्योतिषीजी युवराजकी कोई बिमारी दिखती है क्या? और वैसा है तो विना संकोचसे बताये | " ज्योतिषी, बोलते है " महाराज, मुझे स्पष्ट रूपसे दिखता है की युवराजकी मृत्यू आपके मृत्यूके पहले होगी |" यह सुनकर राजा तुरन्त गुस्सेमे आकर बोलते है, " खामोश, प्रधानजी इन्हे जेलमे रखो और जबतक दुसरे ज्योतिषीसे राय नही मिलती है, तब तक उनको जेलमे ही रखना है |" ऐसे कहकर राजा दरबारसे निकलते है | राणी और राजकन्या रो रहे थे | राजाने उनका सांत्वन किया |

दुसरे दिन राज-ज्योतिषीको जेलकी सजा हुई यह वार्ता फैल गयी | प्रजाजन इसपर चर्चा करने लगे| तिसरे दिन राजाके ओरसे उनके हात की मुद्रा देखकर समाधानकार ज्योतिष बतानेके लिए प्रजाननको आवाहन किया गया | लेकीन बहूत बडा इनाम रखकर भी,  कोई ज्योतिषी आया नही | बादमे प्रजाजनको आवाहन किया गया की, "जो कोई ज्योतिषी तैयार है और वह जवान है, और राजाको समाधानकार भविष्य बताये तो उसका विवाह राजकन्यासे होगा | " एक माह हुआ फिर भी किसी ज्योतिषीने प्रतिसाद दिया नही | इसके बाद आवाहनमे बडा बदल किया और कहा गया की ज्योतिषी जवान है तो ऐसे ज्योतिषी राजाको समाधानकारक उत्तर देनेमे असफल रहेगा फिर भी उसे जेलकी सजा मिलेगी नही |  एक दिन एक युवक ज्योतिषी वेषमें राजमहल मे आया | इसकी खबर द्वारपालने प्रधानको दियी | बादमे फिर दरबार शुरू हुआ | इस युवक ज्योतिषीने पराक्रम, धन, विद्या रेखायें देखकर राजज्योतिषीने जो बताया था वही शब्दोंमे भविष्य बता दिया |

अब सभीकी नजर और कान वह युवक ज्योतिषी पर लगी | रानी और राजकन्या भी चिंतायुक्त दिखे | आखिर सवाल युवराजके जिंदगीका था | युवक ज्योतिषी राजाके पुत्र रेखापर ध्यान देता है, और कहते है, " राजा, आप बहुत भाग्यवान है | आजतक कोई भी राजाको यह भाग्य अबतक मिला नही है | आपकी आयु इतनी लंबी है कि आप अपने हातोसे पोतेका राज्याभिषेक करायेंगे | " इतना कहकर वह युवकने कहा, महाराज, आपने मुझे ज्योतिष बतानेके लिए मौका दिया इससे मै आपका जन्मोजन्मी ऋणी रहूंगा |

अब क्या होगा ? सबकी नजर अब महाराजके ओर  स्थिर हुई | महाराज अपनी आँखे बंद करके बैठे थे | पाच मिनिट हुये, दस मिनिट हुये, कुछ पंधरह मिनीटके बाद महाराज खडे हुये ; पुरा दरबार खडा हुआ ; वह युवक ज्योतिषी निर्विकार रूपमे खडा था | महाराजने दरबार पर एक नजर डाल दियी और उस युवक ज्योतिषसे हात मिलाया और बोले, " बेटा तुम्हारा हार्दिक अभिनंदन !
 ज्योतिष कथनमे भाषा कैसी हो इसका एक अच्छा परिचय तुमने पेश किया है | पुरे दरबारके हर कोनेसे तालीयाँके साथ अपने राजाका जयजयकार छुरू हुआ और बादमे राजा सिंहासन पर बैठै और कहा, " सभी अपने अपने जगह पर बैठे | " राजाने प्रधानजीको कहा, " राज-ज्योतिषीको अब रिहा करें और उनको यहाँ सन्मानसे दरबारमे लेकर आये |" फिर एक बार तालियाँ बजी | राजाने उस युवक ज्योतिषीको पुछा, बेटा, ज्योतिषशास्त्रके आपके गुरू कौन है ? वह युवकने उत्तर दिया, महाराज, क्षमा करो, मेरा कोई गुरू नही है | मैने ज्योतिष शास्त्र किताबें पढकर सिखा है |" राजाने पुछा लेकीन आपने मेरे पोतेका राज्याभिषेक मेरे हातोंसे होगा ऐसी बात करनेकी चलाखी कहाँ कैसी सिखी है? युवकने कहा, " महाराज, क्षमा करें, मै ज्योतिषी नही हूँ | मै एलआयसीका एजंट हूँ | एलआयसी में शुरूआतमे जो ट्रेनिंग दिया था, उसमें ग्राहक के साथ कैसा बोलना है, यह भी सिखाया है | अपना धर्मशास्त्र कहता है की, 
" सत्यम् ब्रुयात, प्रियं ब्रुयात, न ब्रुयात सत्यं अप्रियं |' "
(सत्य बोलो, प्रिय बोलो, पर अप्रिय सत्य मत बोलो ).
महाराज बहुत खुश हुयें और युवकका हात उँचा करके कहा, यह युवक आजसे हमारे दामाद हुये है |" महाराजकी जय हो इस नारासे दरबार समाप्त हुआ |

६)भाई और बहनों, वकृत्वमे जहाँ जरूरत है वहाँ कथाका उपयोग होना आवश्यक है | कथा ऐताहासिक हो याँ काल्पनिक, इससे श्रोताओंको बोध मिलें यह हेतू सफल होना चाहिए |  लेकीन भाषणका नियोजित समय कितना है, इसका हिसाब बनाकर कथा संक्षिप्त याँ दिर्घ करना यह वक्ताके हातमे होता है  | उसे  वक्ताकी सुझबुझ याँ अवधान शक्ती कहाँ जाता है | यह शक्ती सिर्फ सरावसे प्राप्त होती है | अब हम वकृत्वकी प्रारंभिक अवास्थाके (संवाद स्टेजके) बारेमे कुछ तथ्योंको जाननेकी कोशीश करेंगे |

७) आम तौरसे हम सब अपने जन्मसे दो याँ तीन उम्रके होते है तब बोलना शुरू करते है और लगभग पाच सालके होते तो हम संवाद करना शुरू करते है | लेकीन वह सिर्फ संवादका प्राथमिक रूप होता है | जब अपने मनमे किसी घटना, याँ विषय याँ समस्याका विचार आना शुरू होता है, तब वह संवाद की प्रगत अवस्था है | इस अवस्थामें हम प्रथम अपने आपसे ही व्यक्त होते है | उस समय मनमे जो विचार आते है, वे अपने स्वयं के होते है | लेकीन वह विचार सही है क्या, उसमें कौनसी और कितनी कमीयाँ है, उस विचारको पुर्णता तथा प्रगल्मता कैसी लाया जाय है, उसे जनमानसकी याने श्रोता वर्गसे स्विकार्यहता कैसी और कितनी प्राप्त होती है, यह सब जाननेकी एक लंबी प्रक्रीया होती है | उस प्रक्रीयासे सभीको गुजरना होता है | यहाँसे पलायन करना नही है | स्वामी विवेकानंदजीने कहा है,  "पढना, लिखना और सिखना अंतिम श्वास तक शुरू रखना चाहिये | पलायन याने मौत और आव्हान स्विकारना यह जिंदगी है | "

८) मराठी मे कहा जाता है  ' व्यक्ती तितक्या प्रकृती ' ! Imbalance is the feature of this universe.  विविधता यह सृष्टीकी पहचान है | इसिलीए विविध समाज है, विविध भाषायें है और विविध विषय भी है | सभी भाषायें जन्मसे सुंदर है |  विषयकी जानकारी लेकर उचीत और सुदंर शब्दोका प्रयोग करके सहजतासे अपना विचार याँ विषय श्रोताओंके अंतरमनको छू लिया तो समझे हम वकृत्व कलामे पास हो गये | सिर्फ पास हो गये यह ध्यानमें रखना है | नही तो हम स्वयं अपना ही 'अच्छा वक्ता ' बननेका रास्ता बंद करते है | क्यों की सत्य यह है की हम सब अंतिम श्वास तक जिंदगी नामके विषयके विद्यार्थी है |
                                                       क्रमशः ---
( कृपया ध्यान दे-- वक्ता प्रशिक्षणका द्वितीय सत्र पढनेके लिए स्वतंत्र लेख इसके साथ निचे दिया है | )

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