सोमवार, ११ फेब्रुवारी, २०१९

क्या अयोध्यामें श्री राम मंदिर बनाना यह गौण बात ?



आजकल सोशल मिडीयापर एक पोस्ट व्हायरल हुयी है जिसमे कहा है " देशके राजनैतिक दलके नेता  मंदिर-मस्जीद के विवादमे आम जनताको घसीट लेते है और खुद अपने बिमारीके इलाजके लिये विदेशकी अस्पतालोंमे भर्ती होते है |इसी पोस्टमें आगे कहा है," आम आदमी अपने  बिमारीके इलाजके लिए विदेशमें नही जा सकते है, इसिलीये आम आदमी अच्छे अस्पताल मांगे, अच्छा स्वास्थ मांगे, अच्छे स्कूल्स माँगे | " इस पोस्टको फारवड करके, ऐसा विचार देशके हर नागरिकके मनमे तैयार करनेकी कवायत यह एक राष्ट्रीय कर्तव्य निश्चीत रूपसे है और इसमे कोई दो राय नही हो सकती है | इससे मै सौ टक्का सहमत हूँ | लेकीन------

इस पोस्टको फारवड करनेवालोंको मै पुछना चाहता हूँ कि, इस पोस्टद्वारा सो काॅल्ड सेक्यूलरिस्ट राजनैतिक दलोंने  राजनैतिक चाल खेली नही है, ऐसे खात्रीपुर्वक वह कह सकते है क्या?  पोस्ट फारवड करनेवाले जबाब दे या न दे पर मुझे सौ टक्का गॅरन्टी है की इसमे भी राजनीती है |  अयोध्यामे भगवान श्री रामका मंदिर न हो यहीं तो  साठ सालसे राजनैतिक साजीश बन गयी है | जो धर्मको नशेली पदार्थ  मानते है ऐसे वामपंथीय राजनैतिक दल, विचारवंत और उनके मिडीयामें बैठै हस्तक हिंदू समाज बांधवकों गुमराह करनेके लिए ऐसी  पोस्टकी निर्मिती करते है | इस पोस्टमें आम आदमीके लिए अस्पताल, स्कूल्स, अच्छा आवास इन बातोंका जो जिक्र किया है उसी चिजोंकी पुर्ती बंगाल और ईशान्यके अन्य राज्योंमे क्यों नही हुई ? काफी समय इन प्रांतोमे वामपंथीओंकी सत्ता थी |  वामपंथीय सत्ताको वहाँके आम मतदातओंने  उखाडकर क्यों फेंक दिया ? वाम पंथीयोकी बात छोड दो, सत्तर सालसे राज करनेवाली काॅग्रेसकी सत्ता भी आम मतदाताओंने उखाडकर फेंक दी है | हर गावमें बीजली, हर घरमे शौचालय मोदी सरकार आनेसे पहले क्यों नही हुआ ?  हर गाव और नगर तथा सार्वजनिक जगहमे स्वच्छताका नामोनिशिन मिटाकर  शराबकी दुकानें जगह जगह पर काॅग्रेसके राजमें कैसै हुयी? हिंदू मंदिरके आसपास भी शराबकी दुकानें बसायी गयी है | लेकीन चर्च और मस्जीदके आसपास शराबके दुकानें नही दिखती है | क्या पावित्र्य और मांगल्य सिर्फ चर्च और मस्जीदोंके आसपास ही रहती है ? मंदिर- मस्जीदकी माँग करनेके बजह अच्छे अस्पताल, स्कूल्स, आवास हो इस बातमे दम जरूर है लेकीन----- 

उपरकी पोस्टमें मंदिरके साथ सिर्फ मस्जीदको जोडा हुआ है और इसाई प्रार्थना स्थल (चर्च) को क्यों जोडा नही ?  इसका अर्थ स्पष्ट रूपसे  यह है की भगवान श्रीरामजन्मभूमीकी जो केस चल रही है उसी बारेंमे हिंदू समाजबांधवोंको गुमराह करनेकी साजीश है | अर्बन माओवादीका नेटवर्क ऐसा है की वृत्त-समाचार पत्र, साप्ताहीक और पाक्षिक पत्रिकामे बडे बडे स्थंभ,   ईलेक्ट्राॅनिक्स  मिडीयामे चर्चा सत्र और सोशल मिडीयापर ऐसी पोस्ट्स इस तरह व्हायरल करते है की उपरसे आम आदमीकी भलाईकी दिखती हो लेकीन अंदरसे हिंदू संस्कृती खत्म करनेकी चाल रहती है | क्यों की हिंदु संस्कृती ही साम्यवाद के प्रचार और प्रसारमे एक बडी दिवार 
है | हिंदू संस्कृती एक ऑऊट डेटेड संस्कृती है, भारत देश आधा वसाहत है और आधा मागास है, यहाॅ राष्ट्र याँ देशके नामकी चीज ही नही थी, यह एक मिश्र संस्कृती है ऐसा गोबेल्स तंत्र अपनाकर  हिंदू समाजको जातीयोंमे विभाजीत करनेकी साजीश ना सिर्फ साम्यवादी करते है लेकीन उनके साथ मुस्लीम फंन्डामेन्टलिस्ट्स , ख्रिस्ती मिशनरी जैसी विदेशी शक्तीयाँ दो हजार सालसे करते आ रहे है | फिर भी इस भूमीसे जुटी हुयी हिंदू संस्कृती नष्ट न हुयी और न अब कभी होगी | क्यों की अब हिंदू जाग उठा  है | वह अब  इतिहासको सच्चे रूपसे पढता है | डाॅ ॲनी बेंझटने कहा है की " हिंदू संस्कृतीको ही दुनियाके अन्य संस्कृतीने जननी माने तो दुनिया सहिष्णूता सिख पायेगी |" दुनियाके विख्यात इतिहास विषयके तज्ञ विल ड्युरांटने कहा है की " मनकी विशुद्धता, व्यापकता, और  परिपक्वता रखकर सहिषाणुता किस तरह व्यवहारीक जीवनमे लाना है, यह बात सिर्फ भारत देश ही सिखा सकता है| लार्ड कर्झनने कहा हैं की "जब युरोपियन लोगोंको लिखना -पढना नही आता था तब हिंदुस्थानमे गुरूकूल चलते थे|" दुनियाके सभी तत्त्ववेत्ताओंने  हिंदू संस्कृतीका गौरव किया हुआ है और उन्हीके किताबें भारतके युवक पढ रहे है | यह बात सभी सो-काॅल्ड सेक्युलरीस्ट राजनैतीक दल अब अच्छी तरहसे जान चूके है | लोकसभाके चुनाव अब नजदिक आये है और बाबरी ढाचाँके जगह भगवान विष्णूका मंदिर था इस सचका सामना करनेकी नौबत अभी न आयें इसी हेतूको साध्य करनेकी कवायत वाम पंथीय ऐसी पोस्ट बार बार व्हायरल करनेमे लगी है,  और सोनीया---राहूल गांधीकी काॅग्रेस उनको जोरसे मदद कर रही है | पंतप्रधान मोदीजीने कुछ दिन पहले इन दोनों राजनैतिक दलपर आरोप किया है की श्रीरामजन्मभूमीके केसको प्रलंबित करनेके लिये यह दोनो दल न्यायालयपर दबाव डाल रहे है| इस आरोपमे तथ्य है ऐसा लग रहा है |  

दुर्भाग्य पुर्ण बात यह है की साँठ सालसे प्रलंबित  रही हुई रामजन्भूमी केसकी सुनवाई करनेके बजह  सर्वोच्च न्यायालय उसे प्राधान्यकी बात ना समझकर सुनवाईकी तारीखके उपर तारीख दे रहे है | सन्माननीय सर्वोच्च न्यायालयके प्रती पुरा आदर करते हुये मै कहता हू की  "प्रशासनिकताका भी एक धर्म होता 
है |"  इसी धर्म- दृष्टीसे मै प्रलंबित रामजन्मभूमीके केसको देखता हूँ तो मेरे मनमे सवाल आता है की इतना समय किसी एक केसकी सुनवाई नही हो रही है, तो यह  भारतीय संस्कृतीके आधारपर अधर्म ही तो  है | गणतंत्रमे बहूसंख्याक समाजकी भावनाका आदर होना चाहीये  की नही? यह लोकशाहीका महत्तवपुर्ण मूल्य  है | 

जहाँ जहाँ चर्चकी संख्या ज्यादा है ऐसे प्रान्तमे सिर्फ वामपंथीय और काॅग्रेसकी सत्ता क्यों रही? वामपंथीयों नेतागण और विचारवंतोंको केरल प्रान्तके शबरीमाला-अय्यप्पा  मंदिरमें हिंदूओंकी आस्था और पंरपंरामे खोट लगती है | लेकीन  गोवा प्रान्तमे एक चर्चमे किसी धर्मगुरूके शवपरकी इसाई समाजकी जो आस्थायें है  इसमे कौनसा वैज्ञानिक सिद्धांतका आधार  है, और उसकी खोज करनेकी जरूरत विपक्षके नेतागण तथा सो काॅल्ड विज्ञानवादी विचारवंतको क्यों नही पडती है ?  ट्रिपल तलाक प्रथासे  पिडीत मुस्लीम महिलाके याचिकापर सुप्रीम कोर्टके निर्णयका सन्मान विपक्ष क्यों नही करते है? मस्जीदमें मुस्लीम पुरूष अपने औरतको क्यो नही लेके जातें है ? आज भी मुस्लीम महिलायें मुहपर काला पर्दा डालते है | इस आस्था, प्रथाके पिछे कोई वैज्ञानिक सिद्धांत दिखता है क्या ? इन सवालोंको जबाब देते समय सभी सो काॅल्ड सेक्युरिस्ट नेता और विचारवंतोंको संविधानमे समाया हुआ स्त्री-पुरूष समानताकी विस्मृती क्यों होती है ? उनके मनमे विराजमान हुयी महिलाओंके प्रती सहानुभूतीको आस्मानमे बैठा कोई  शैतान खा जाता हैं क्या ? मंदिर, मस्जीद,  चर्च  न हो और उसकी जगह अच्छे अस्पताल हो, सबको रोटी मिलें, आवास मिलें, अच्छे वैद्यकीय सेवा मिले यह बात सही है लेकीन---

चर्च, मस्जीद की मालमत्ता और कारोबार संभालनेके लिए सरकारके अधिकारीओंको क्यो नही नियुक्त किया जाता है ?  सिर्फ हिंदुओंके मंदिरोंका कारोबार सरकार नियुक्त अधिकारी याँ ट्रस्ट पर सौंपा  जाता 
है | आजकल सुनाया दिया जाता है की हिंदूओंके आन्ध्र स्थित विख्यात तिरूपती बालाजी और केरल स्थित पद्भनामन जैसे मंदिरके ट्रस्टपर इस्लाम और इसाई समाजबांधवोकी नियुक्ती हो रही है | हिंदुओंकी सभी बडे मंदिरोंकी आयमेसे बडा हिस्सा हर राज्य सरकार विकास कार्यमे लगा देते है, हिंदुओंके सभी पंथके जैसे की जैन, बौद्ध, शीख, लिंगायत, एवम् नाथ, शाक्त और दत्त संप्रदाय अपने अपने गुरूके समाधी मंदिरमे जमा हुयी आयकी राशीका विनियोग अस्पताल, शिक्षा संस्था, एवम् नैसर्गिक आपत्ती ग्रस्त लोगोंकी मदद, तथा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री फंडमे  लगाया जाता है पर मस्जीद और चर्चकी मालमत्ता और उनकी आयका  विनियोगका अधिकार मुस्लीम पर्सनल लाॅ बोर्ड और चर्चकी सुप्रिम ॲथाॅरीटी जो विदेशमे स्थित है उनके हातोंमे क्यों है ? और इनके ही धर्मगुरू इस सालके आम चुनावमें  राष्ट्रवादी शक्तीको (भाजपाको) पराजीत करनेका आवाहन खुल्लमखूल्ला क्यों  करते है ? यह कौनसा और कहाँका न्याय है ? राजनितीमे धर्म कौन ला रहे है और गालीयाँ किसको दे रहे हो? हमारे देशका संविधान सबसे बडा ग्रंथ है, और इसी सविंधानके नियमोंनुसार राजधर्म निभानेकी सिर्फ मुहसे बात करनेवाले विपक्ष और उनके साथीदार  विचारवंत, साहित्यिक, पत्रकार, कलाकार, उल्टा राष्ट्रवादींयोपर सांप्रादायिकताका झुठा आरोप लगातार क्यों करते है ? वह ऐसे ही वामकृत्यें करते रहेंगे,  तो इन्हे कौनसा धर्म चुनावमे सफलता देगा ? 

रही बात अयोध्यामे भगवान श्रीरामका मंदिर निर्माण की और जरूरतकी भी | रामजन्मभूमी विवादका प्रश्न, एक गंभीर समस्या क्यों और कैसी बनी, इस समस्यापर विविध राजनैतिक दलोंका व्यवहार कैसा रहा, भाजपा और संघ परिवार सांस्कृतिक राष्ट्रवादके आधारपर रामजन्म भूमीपर भगवान श्रीरामका बडा मंदिर हो ऐसी माँग क्यों और  कैसे करते है, इन सभी सवालोंपर  विस्तारसे चर्चा मैने एक लेखमें रखी है, जिसका शिर्षक   'राम जन्मभूमीवर मंदिर होण्याचा मार्ग मोकळा ? ' ऐसा है | गये सालके आक्टोबर माहके सात तारीखको इसी ब्लाॅगपर पब्लीश किया है | हालाकी वह आर्टीकल मराठीमे है लेकीन अमराठी समाजबांधव अपने मोबाईलमे ॲपसे जरीये  हिंदीमे अनुवादीत करके पढ सकते है |                                                  भगवान श्रीराम सिर्फ मोक्षदाता नही है लेकीन हमारे राष्ट्रके एक मानबिंदू है इस सत्यको संदर्भके साथ पेश करनेकी कोशीश मैने उस लेखमे कियी है | आज भी मलेशियाके लोग श्रीरामको अपना पूर्वज मानते है | भाजपाका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा इसमेही समाया हुआ है | लेकीन इस भूमीमे जन्म लिया और  जन्मसे नागरिक है, और किसी वजहसे उपासना पद्धत बदली है, ऐसे बरसों सालोंसे रहते हुये नागरिकोंको इसपर आपत्ती क्यों है ? ऐसे सब मुद्दोपर मैने उस लेखमे संवाद किया है | इसिलीए उन सभी मुद्दोकों मै यहाँ दोहराना नही चाहता हूँ | 

लेकीन फिर एक बार एक बात दोहराता हूँ,  की अयोध्यामें राम मंदिरकी जरूरत नही है ऐसी बाते कहनेवाले धर्मको न माननेवाले है | धर्मको न मानना इससे हिंदू समाजने कभी आपत्ती जतायी नही है | कारन यहाँ भारतवर्षमे धर्म न माननेवाले चार्वक जैसे विद्वानको भी ऋषीका स्थान हिंदू समाजने दिया है | मराठीके ज्ञानपीठ विजेता विख्यात साहित्यिक वि स उपाख्य भाऊसाहेब खांडेकरजीने कहा है, "आपको जिस चिजको भगवान मानना है तो मानो लेकीन उसपर अपना भाव जोड दो | " स्वातंत्र्यवीर सावरकरके स्मृतीदिनके समारोहमे पूणेमें भूतपुर्व प्रधानमंत्री और भारतरत्न वाजपेयीने कहा है, " अगर आप नास्तीक हो, पर उसपर आपकी नितांत श्रद्धा है, उसपर दृढ विश्वास हो तो वह भी एक प्रकारकी आस्तिकता है | " मेरा कहना है की इस भारतवर्षमे धर्मके आधारपर नागरिकतामे भेद होना नही चाहीये | सभी धर्मके लोग, इस भारतवर्षकी संस्कृतीके वारस है और यहाँ कोई अल्पसंखाक नही है | ऐसी भावना पहले सो काॅल्ड सेक्युलरीस्ट राजकीय दल और विचारवंतोंके मनमे तैयार होना जरूरी है और इसी दिशासे उनका व्यवहार रहे तो देशके गंभीर समस्याओंका हल युहीं  निकल जा सकता है |

एक आर्थिक सिध्दान्त है  One man's expenditure is another man's income. इसी सिद्धातको समझनेकी कोशीश करेंगे तो मंदिरोंकी जरूरत क्यों है  इसका जबाब मिल जाता है | कुछ समस्याऔंका हल थेअरी और प्रॅक्टीकल के हातमे हात मिलानेसे होता है |  हमें आजके आर्थिक जगतके परिक्षेपमें देखनेकी कवायत करनेकी जरूरत है | ऐसी कवायत करें  तो मालूम होगा की, आज अपने देशकी अर्थ व्यवस्था, सेवा व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था,  आरोग्य व्यवस्था ,  रोजगार निर्मीती एवम् छोटे-मोटे उद्योग गतीविधीयोंमे  हिंदू संस्कृती और देव-देवताकी मंदिरोंका बहूत बडा योगदान रहा है और आगे भी रहेगा | आज मुर्ती बनानेवाले कारागिरोंके हातोंको काम मिलता है | मंदिरके आसपासके परिसरमे कोई फूल बेचता है, कोई पुजाका सामान बेचता है |  कोई महाप्रसादका काम करता है, कोई भगवानको भोग चढाता है | कोई  मिठाईकी दुकाने  चलाते है,  कोई मंडपका काम करता है | कोई पुरोहीत है, कोई वाॅचमन है, कोई पेन्टर्स है , कोई  प्लबंर्स है, कोई ईलेट्रीशयन्स है | कोई भजन की टीम लेकर बैठता है, तो कोई हार्मोनियम और तबलजीकी साथ लेकर किर्तन गाता है | इन सभीका भगवान उनके कर्म मे  है | हिंदु संस्कृतीमे तेहतीस करोड भगवानकी कल्पना मानी गयी है उसे हास्यास्पद समझनेकी जरूरत नही है | ज्ञान ही सबसे बडा भगवान है और ज्ञानकी कक्षाका विस्तार हर पल पर हर पगपर बढता जा रहा है |                                       भगवानकी भी संख्या बढती रहेगी | किसी जमानेमे तेहतीस करोड भगवानकी संख्या हिंदु समाज मानता आ रहा है, वह संख्या  कभीकी पार हो चुकी है | हर आदमीका कर्म भगवान है;  हर प्राणीमे ईश्वर समा हुआ है | स्वच्छता, विनय, सदाचार, सहकार, सहमती, सख्य ऐक्य, शांती, शौर्य धैर्य यह सभी जीवनमूल्योंमे ईश्वर समाया है | ईश्वर अनंत है | चराचर सृष्टीमे ईश्वर समाया है तो वह एकेश्वर कैसा हो सकता है ?  "ईशावास्याम् इदं सर्वम् |" यही ईश्वरका सच्चा रूप हिंदू संस्कृती मानती है | इसिलीये   मंदिरमें जमा हुआ पैसाका विनियोग स्कूल्स, आरोग्य केंद्र चलानेमे भी होता है | हिंदू मंदिरोमे जमा हुआ राशीका उपयोग कुदरती आपत्तीमे भी किया जाता है | उसमे भी किसी तरहका भेद बहुसंख्याक समाजने किया नही है | तो राम मंदिरकी माँग करनेवालेको निक्कमे और सांप्रादायिक कैसे कहते हो ? राम मंदिरकी माँग गुजरे हूए जमानेकी बात कैसी मानते हो?  जमाना गुजराता है, लेकीन रामकृष्ण जैसे अवतारी महापुरूषोंका कार्य शाश्वत होता है | यह संस्कृती शाश्वत है; यह समाज शाश्वत है; यह देश शाश्वत है | फिर भी  ऐसी पोस्ट सोशल मिडीयामे बार बार कोई व्हायरल करे तो यह सिर्फ उनकी मुर्खता है याँ राजनैतीक चाल है | कल सुबह संघ स्थानपर मुझे एक जेष्ठ स्वयंसेवक और संघविचारके अभ्यासकने  एक कविता सुनाई है |  उसी सुनायी हुयी कवितीकी कुछ पंक्तीयाँ नीचे दे रहा हूँ|  वह पंक्तीयाँ इस तरह है ----
                
    ना मंदिर हे राघवाचे सीतेचे |
    असे आमुच्या जागत्या अस्मितेचे ||
     नव्या हिंदू राष्ट्रास चेतणारे |
     चला राम मंदिर बांधू या पुन्हा रे ||
     पुढे स्वप्न वाराणसीच्या शीवाचे |
      मथुरेच्या सावळ्या माधवाचे ||
      त्रिशूळ हे जणू  रणी झुंजणारे |
     चला राम मंदिर बांधू या पुन्हा रे ||

एक बार कहीं संबोधन करते समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके द्वितीय संरसंघचालक पुजनीय गोलवलकर गुरूजीने कहा है कि " मै यहाँ भारतमाताकी पूजा कर रहा हूँ | मेरे बगलमे एक आसन खाली है | उसपर अहिंदू बैठे तो अयोध्यामे श्रीराम मंदिरका निर्माण सहजतासे और सरलतासे बन पायेगा और रामभक्त कबीरजीने बनाया हुआ धागोंसे रक्षाबंधनका त्योहार भारतवर्षमे युहीं मनाया जायेगा , इसमे किसी लवाद, याॅ कोर्टकी भी जरूरत नही पडेगी | "  बस यही भावना सभी भारतवासीयोकी हो जाये तो भारत फिर एक बार विश्वगुरूके स्थानपर विराजीत होगा | और दुनियामे  शांती और कल्याणका राज आयेगा ऐसा विश्वास व्यक्त करके इस चर्चाको मैं विराम करता हूँ |

                वन्दे मातरम् | 
                जय श्रीराम ||

1 टिप्पणी:

  1. म्हात्रेजी, लेख खरोखर मुद्देसुद व प्रबोधान करणारा आहे, हिंदी मध्ये आपण संबोधन केल्यामुळे, आपले विचार सर्वांपर्यत निश्चित पोचले असणार.आपण व्यक्त केलेल्या महत्वाच्या-हिंदुविरोधी कट-मुद्यावर सर्व देशभक्ततांनी जागरुक रहाणे आवश्यक आहे. धन्यवाद !

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