शनिवार जेष्ठ शु १३ शा शके १९४१ याने शनिवार १५ जून २०१९ को सभी जगह अपने राष्ट्रके मानबिंदू और प्रेरणस्त्रोत छत्रपती शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक दिन उत्सव मनाया गया | इसी दिन आजके पुर्व ३४५ सालमे शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक हुआ था | दिन था जेष्ठ शु१३ शके १५९२ अर्थात तारीख ६ जून१६७४ | शिवराज्याभिषेक दिनके पर्वपर चर्चा करनी है तो पहले वैदिक कालका अपना समाज, संस्कृती एवं राज्यव्यवस्था पर जरासी नजर डालना जरूरी है, कारन यह है की छत्रपती शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक समारोह कैसा था, उन्होंने स्थापित किया हुआ स्वराजका स्वरूप क्या था, कौनसी विशेषतायें थी, इन सब बातोंपर चीजोंपरकी हमारी चर्चा सही दिशामे जा सकती है ऐसी मेरी राय है |
वैदिक कालमे हमारे यहाँ दशरथ, जनक जैसे पराक्रमी और ऋषीमुनीओं इतने ज्ञानी राजा-महाराजा थे | गणपती तथा सत्यनारायणादि, दुर्गा और लक्ष्मी इत्यादी देव- दैवताओंकी पुजा करनेके बाद जो मंत्रपुष्पाजंली करते है वह एक वैदिक कालकी प्रार्थना है | उसका अर्थ है, हमारे देशमे कल्याणकारी राज्य रहे (आजकी welfare state की कल्पना वैदिक कालसे चलती आयी है), हमारे राज्य उपभोग्य वस्तुओंसे भरा हुआ हो और यहाँ लोकराज्य रहे, (याने अन्न वस्त्र और निवाराकी कमतरता न हो और राज्य लोकतांत्रिक रहे | इसका मतलब Democracy की कल्पनाके जनक भी हमारी वैदिक संस्कृती है) हमारा राज्य असत्य और लोभ विरहीत रहे (राज्यव्यवस्था सत्यमेव जयते और विरक्ती सिध्दांत पर निर्भर रहे, आजके परिभाषेमे राज्यका कारोबार पारदर्शक तथा भ्रष्ट्राचारमुक्त रहे) हम परमश्रेष्ठ राज्यके आधिपत्य हमारा हो | हमारा राष्ट्र कैसा हो, वह सुरक्षित हो तथा धरतीकी सिमायेंतक और समुंदरकी अंतिम गहराही तक व्याप्त हो और वह राज्य भी सृष्टीके अंततक अजिंक्य रहे | वैदिक कालमे प्रार्थना और प्रतिज्ञा मे फर्क नही था | प्रार्थना ही प्रतिज्ञा थी और प्रार्थना ही निश्चय था | क्योंकी राजे महाराजे त्यागी थे | समाज भी सत्य और नैतीकता स्विकार करनेवाला था | उस समय अपना देश अजिंक्य तथा वैभवसंपन्न था | गव्हर्नन्स नामकी चीज नही थी | समाज ही गव्हर्नन्सपर बैठा था ऐसा माने तो भी अतिरंजीत न होगा |
मध्ययुगमेही विक्रमादित्य और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे ही आदर्श राजा थे | उनके कालमे भी अपना देश वैभवसंपन्न था | लेकीन इसी युगके कही अंतिम चरणमे वर्णव्यवस्थाका रूप जातीव्यवस्थामे होकर हमारे समाजकी एकतामें इतनी बाधायें उत्पन्न होती रही की विदेशी आक्रमकोंके सामने हमारे राजा महाराजोंकी हार छुरू हो गयी,और दुर्दैवसे भारतमाताके कंठ स्थानसे फुलोंकी मालाके जगह परवेशताका पाश आया |
इस ७२५ मे अपने देशके उत्तर पश्चीमसे बिन कासीम नामके यवन आतंकवादीने आक्रमण किया और तबसे एक के बाद एक तुर्क, तैमूर, गझनी, चंगीजखान, मोंगल ऐसे यवनोंका अपने देशपर आक्रमणका सिलसिला छुरू हुआ | हमारे मंदिर उध्वस्त किये गये | माॅ- बहनोकी इज्जत, सोना-चांदी जवाहरकी लुट छुरू हुई | अपना पुरा समाज भयमय हुआ था, हर पल पर हिंदूबांधव घृणा, अपमान, अत्याचार के शिकार बन गये | लोगोके माथेपर यवन आक्रमकोंने जबरन अपने लोगोंको धर्म परिवर्तन कराके उन्हें इस्लाम बनानेकी एक षढयंत्रकी सुरूवात हुई | उसके बाद अंग्रेज आये | उनके सिर्फ एक हजार सैनिकके सामने प्लासीकी लढाईमें हिंदूस्थानकी हार हुई | वजह क्या थी? जाती-जमातीमे भेद, राजा-महाराजाओंके बीच स्पर्धा तथा उनकी ऐष वृत्ती, शस्त्र चलानेका अधिकार समाजके सिर्फ एक वर्गको था और बाकी समाज किस पक्षकी जीत होगी यह देखता रहा | पुरे समाजको आत्मविस्मृती जैसी बिमारी जड गयी थी | वही एक प्रमूख कारन है जिससे अपना देश एक हजार साल परतंत्रमे गया |
अर्वाचीन कालमे आजसे ३४५ साल पहले देशके दख्खन प्रांतमे एक सोलह सालके युवक को देश और समाजकी दयनीय स्थिती देखी नही गयी | उसने हर जात-पातके अपने बालमित्रको एकठ्ठा किया,और कसम खाई, 'अब नही चलेगी यवनोंकी दादागिरी, अब ना होगा हमारे माँ-बहनकी इज्जत पर हमला, ना हमारे मंदिरोंपर ! हम एक ही नारा देंगे, हरहर महादेव और हमारी राष्ट्रभूमीमे सिर्फ स्वराज्य होगा | ' समाजके हर जात-पातके युवकोंको प्रेरीत करके अपनी सेना तैयार की और तोरणा किला जिताकर वहाँ हिंदू स्वराज्यका भगवा ध्वजका रोहण किया | उस युवक का नाम शिवबा था | उसे आज सिर्फ हिंदूस्थानमे नही बल्की जगतमे पहचाना जाता है, ' गो ब्राह्मण प्रतिपालक छत्रपती शिवाजी महाराज ' नामसे |
शिवबासे छत्रपती शिवाजी महाराज बननेका मार्ग कितना कंटकाकीर्ण था उसका अंदाज लगाना हम जैसे सामान्यजनोकी शक्ती, दृष्टी और बुद्धीके अर्बो मैल दूरकी बात है | पहले तो सारा समाज आत्मविस्मृतीमें गया हुआ ; जात-पात, उच-नीच के भेदमे बिखरा हुआ; उसमेसेही पराक्रमी राजे-महाराज, सेनानी, और अभिजन वर्ग आक्रमकोंकी चाकरी करनेमे धन्यता मान रहे थे, उन सभीको शिवबा की स्वराजकी कल्पना हास्यास्पद लगती थी | इतनाही नही जगह जगहपर, नाकेपर, सार्वजनिक जगहपर ' ये कलका बच्चा कैसे यवनोंकी ताकदवान बडी संख्यावाली सेनाको परास्त करेगा ' ऐसी टिका टिप्पणी भी सुनने पडती थी | लेकीन शिवबा दृढ निश्चय कर बैठा था, और उसके साथिदारोंपर उसका पक्का भरोसा था | गहरी काली रातमे ना ठंडीकी पर्वा, ना बारीसकी | पहाड टेकडीके वक्रगोल, टूटे-फूटे पथ्थरोंसे भरे हुये रास्तेसे अपनी मार्गकी दिशा बनाते, कभी शत्रुको गुमराह करके राह बदललके, अपने साथीदारोंका हौसला बढाके एक के बाद एक शत्रूको पराजीत करके हर किल्लेपर कब्जा करके भगवा ध्वजका रोहण करते करते स्वराज्य निर्माण किया | राज्याभिषेक समारोह बडी धूमधामसे हुआ और समाज बदल गया | समाजमे नवचैतन्य संचारने लगा |शिवराज्याभिषक दिनोत्सवकी विशेषतः यह थी की समाजका हर वर्ग उसे 'हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव ' ही मनाने लगा था | ऐसा क्यों, इसपर थोडीसी चर्चा करेंगे|
शिवराज्याभिषेक --- हिंदू साम्राज्य दिन उत्सव
१) वैदिक कालमे अधिकतम राजघरानाका युवराजका राज्याभिषेक हो जाता था | उस समय जगतके दुसरे कोनेसे देशपर आक्रमण नही होते थे |
२) विक्रमादित्य और चंद्रगुप्त मौर्यके समय मुस्लीम आक्रमकको ज्यादातर उत्तरी-पश्चीम सीमाओंतक रूकाया जाता था | अपने देशपर उत्तरी-पश्चीम दिशासे जो आक्रमक आते थे वह स्वतंत्र रूपसे आते थे | उन्हें तुर्कस्थानके खलिफासे फतवा नामकी चीज नही थी |
३) शिवकालमे सारा हिंदू समाज सुलतानशाही, आदिलशाही, निजामशाही, मोगलाईसे त्रस्त था | यवनोंकी यह सभी जुलमी राजेशाही तुर्कस्थानके खलिपाकें नामसे चलती थी | क्योंकी इनके प्रमूख बादशाह तुर्कस्थानके खलिपासे हिंदूस्थानकी अपनी अपनी रियासतें चलानेकी अधिकृत परवाना माँगते थे और खलिपासे उन्हे इजाजतका पत्र मिल जाता था | इसका मतलब पुरे हिंदूस्थानको इस्लामी देश बनानेकी तैयारी हुई थी| शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक समारोह होना हिंदू समाजके लिये एक जरूरत थी | समयकी माँग थी | इन यवनोंकी दशहतवादी और जुल्मी राज को एक करारा जबाब हिंदू राजासे देनेकी जरूरत थी | इन बातोंपर हिंदू समाजके धार्मिक गुरू, संतजन तथा सामाजिक नेता और विचारवंतोमे सहमती हुई थी | इन सभीकी और जिजामाताकी भी इच्छा थी की शिवबाका राज्याभिषेक हो | इसिलीये शिवाजी महाराज कहते थे कि " हे राज्य होणे ही श्रींची इच्छा आहे." ( यह राज्य निर्माणकी मनिषा ईश्वरकी है )
४) शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक कैसा था ? इतिहासके अभ्यासक बताते है, की शिवाजी महाराजने जी प्रतीज्ञा ली वह हिंदू पंरपंराके तहत थी | काशीसे विख्यात वेदशालासंपन्न गागाभट्टा और उसके सहकारी पुरोहीतके वेदमंत्रोकी गुंजमे,सप्तसिंधूके जलसे राज्याभिषेक समारोह संपन्न हुआ था | प्रभू श्री रामचंद्र, चंद्रगुप्त मौर्य और विक्रमादित्य इत्यादी राज्याभिषेक समारोहके बाद जो पंरपंरा जो खंडीत हुई थी वह फिरसे छुरू करनेके लिये शिवाजी सिंहासनापर अधिष्ठित हुए | (संदर्भ लोकराज्य १६-४-१९८५ पृष्ठ १८)
५) छत्रपती शिवाजी महाराजाने अपने स्वराजका ध्वज हिंदू संस्कृतीका प्रतिक भगवा ध्वज स्विकारा इससे स्पष्ट होता है की शिवाजीकी मनिषा याँ कल्पना हिंदू स्वराज्य स्थापनेकी ही थी, इसमें कोई संदेह नही है | आदिलशाहीके सरदार मालोजी घोरपडेको तथा मोगशाहीके सरदार जयसिंगको लिखे हुये पत्रसे भी यही सिद्ध होता है छत्रपती शिवाजी महाराजके मनमे हिंदू राष्ट्रकी कल्पना थी | मोगलशाहीके तरफसे जब जयसिंग आक्रमण करने आते थे तब पत्रमे शिवेजी महाराज उन्हे लिखते है, हिंदू स्वराज स्थापन करनेके लिए आप आते हो तो आपका आदरसे स्वागत के लिए मै तैयार हूँ, लेकीन मोगलशाहीकी उन्नतीके लिए आप आ रहे हो तो आपको मै राष्ट्रद्रोही समझके आपसे व्यवहार करूंगा |
६)छत्रपती शिवाजी महाराजका राज्याभिषेक समारोहसे हमारे संस्कृतीके अनुसार बनायी हुई राष्ट्रकी संज्ञा जो खंडीत हुई थी, वह फिर एक बार व्यक्त रूपमे आयी | ' राष्ट्र माने समान संस्कृती, समान आदर्श, समान पंरपंरा, और समान शत्रू-मित्र भाव रखकर हम सब एक है, इस भावनासे विशिष्ट भूमीमे वास्तव करनेवाला समाज | '
७)सिंधू नदीके आसपास रहनेवाला समाज हिंदू और वह राष्ट्र हिंदूस्थान | कई लोग जो खुदको सो काॅल्ड सेक्युलरीस्ट मानते है वह हिंदू शब्दका अर्थ इस्लामी लोगोंने दियी हुई 'गाली ' मानते है | सच बात यह है, की पश्चिमी तथा मध्य आशियासे आये हुये आक्रमक स इस शब्द का उच्चार ह ऐसा करते थे | सप्त सिंधू प्रदेशका उच्चार ' हप्त हिंदू प्रदेश ' होता था और इसिलीए सिंधूका भ्रमीत शब्द हिंदू हुआ | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके द्वितीय सरसंघचालक पुजनीय गुरूजी इस विषयके महान विचारवंत थे, उन्होंने विचारधन नामके किताबमे इसपर गहन चिंतनका दर्शन दिया है | इग्लीश विचारवंत मोनियर विल्यम इन्होंने भी गुरूजीकी बातपर सहमती जतायी है |
८)छत्रपती शिवाजी महाराजाका राज्याभिषेकसे अपने समाजमे मूल एकताकी भावना वापस दृढ हुई | हमारी प्रान्तीय भाषा अलग हो, वेषभूशा भिन्न हो, आहार अलग हो, यह सब भिन्नता भौगोलिक स्थितीका परीणाम है | यदि हम रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ की साहित्यिक दृष्टीसे नजर डालते है तो हमे एक सत्य दिखता है की, ' भारतके सभी प्रांतमे उनके भाषामे ये दोनो ग्रंथ लिखीत स्वरूपमे मिलते है |भाजपाके नेता डाॅ मुरली मनोहर जोशी ने कहा है, कि " भारतकी सांस्कृतिक मुख्य धारा ऋग्वेदमे छुरू हुई और आजतक अविच्छिन्न रूपसे चली आ रही है | काश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे समाजकी जीवन दृष्टीमे एक तत्व है | हमारे यहाँ कहा गया है, ' उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमादृश्चैव दक्षिणं | वर्षत भारतः भारतीय यत्र संतती ' अर्थात समुद्रके उत्तरमे और हिमालयके दक्षिणमे स्थित भूमीभाग भारत है और उसमे रहनेवाले भारतीय उसकी संतान | स्पष्ट यह है की यहाँ भारतके साथ माता और पुत्रका संबंध है | सारे भारतीय संस्कृती-सहोदर है |"
९)शिवराज्याभिषेक समारोहका पौराहत्य दक्षिण स्थित महाराष्ट्रमे काशी के गागाभट्टाके नेतृत्वमे हुआ यह सत्य है और इससे ही यह सिध्द होता है की भारतमे केवल एक सभ्यता और संस्कृती है और वह है हिंदू सभ्यता और संस्कृती है |' यह ऐताहासीक सत्य लार्ड कर्झन और स्वतंत्रता पुर्व अखिल भारतीय राष्ट्रीय सभाके (याने आजके काॅग्रेस पक्ष) अध्यक्षा डाॅ ॲनी बेंझटने भी स्विकारा था | डाॅ कर्झन १९०४ मे एक पार्टीमे बोले है की " हम इंग्लीश लोग जंगलमे रहते थे तब इंडीयामे एक विकसित संस्कृती थी | " और डाॅ अँनी बेंझटने कहा है की, " हिंदूस्थानमे सबसे प्राचीन धर्म हिंदू ही है | अन्य धर्म जैसे आये, वैसे चले गये तो भी हिंदूस्थानका कुछ नुकसान नही होगा, लेकीन हिंदूस्थानसे हिंदूइझम खत्म हुआ तो इस देशका अस्तित्व नष्ट होगा |
छत्रपती शिवाजी महाराजके चरीत्रपर चर्चा हर साल उनके जयंती तथा राज्याभिषेक दिनपर करते रहें तो भी उसे समाप्ती नही है | इसिलीए इस चर्चापर मै यहाँ एक विश्राम लेता हूँ , ताकी हम स्वतंत्र रूपसे शिवाजी महाराजका पराक्रम तथा उनकी युद्धनीती और शासन व्यवस्था पर चर्चात्मक रूपसे अध्ययन कर सके |
जय भवानी जय शिवाजी !
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