सोमवार, २४ जून, २०१९

शिवराज्याभिषेक दिनके पर्वपर भाग-२



इस लेख मालिका का भाग १ पब्लीश करनेके बाद महाराजका महान पराक्रम, साहस, अद्वितीय युध्दनीती, कुटनीती,  राष्ट्रीय सुरक्षा प्रती कटीबध्द नीती, अतूल्य संघटन कला, असीम राष्ट्रभक्ती,  प्रजाहितदक्ष शासन, अपनी सेना और प्रजापर माँके जैसी माया, स्वधर्मपर  निष्ठा, साधू-संत-सज्जनों,और महिला वर्गप्रती आदर और कर्तव्य निष्ठा, दुर्जनोंपर कडी नजर, यवन- आक्रमकोंके स्वजन और स्वधर्म पर होनेवाले अमानुष अत्याचारको ठकासी महाठक ऐसा रूख  इन विषयकी सूची आँखोके सामने आ गयी | यदि हम हर विषयपर संक्षिप्तमें कुछ चर्चा करें,तो भी वह चर्चा एक स्वतंत्र लेख हो इतनी होनेवाली है ,यह महसूस हुआ | अतः आज चर्चा छुरू करनेसे पहले एक बात समझके चले, की शिवाजी महाराजके चरीत्रपर चर्चा नही बल्की पारायण होता है | क्योंकी शिवाजी महाराज एक युगपुरूष है | तो चलो, पहले महाराजका पराक्रम, साहस, युध्दनीती, कुटनीती पर चर्चा छुरू करते है |

छत्रपती शिवाजी महाराज का पराक्रम और युद्धनीती

१) छत्रपती शिवाजी महाराज युध्दमे कभी पिछे नही रहते थे, एक सेनापतीके तरह आगे रहते थे, इसी विशेषताको आज  leading from the front ऐसा कहा जाता है |

२) उन्होंने युध्दमे कभी संरक्षणात्मक तो कभी आक्रमक नीती अपनायी दिखती है | उनकी Gauila Warfare याने गनीमी कावापर दुनियाके सभी देश जितने उत्साहीत ढंगसे अभ्यास करते है उतनेही गंभीरातसे ही करते है क्योंकी युध्दका यह तरिका अंमलमे लानेमे कई कठीनाई भी रहती थी | 

३) दुनियामे, बहूत बडे योध्दा हुये लेकीन युध्दके अभ्यासक शिवाजी महाराजको अग्र स्थान देनेमे हिचकते नही है | इसका कारन शिवाजी महाराजके समकालीन योध्दा हो याँ उनके पुर्वकालीन हो तौलानिक दृष्टीसे शिवाजी महाराजकी देहयष्टी उँचाई तथा चौडाईमे कम थी | फिर भी उनकी शक्ती, नजर और बुध्दी सबसे तेज थी | 

४) शिवाजी महाराजका साहस अद्भूत था और उनकी सावधनता भी उतनीही अद्भूत थी | इसिलीए उनके शत्रू अंदाज नही करपाये |  बार बार एक सवाल उनके शत्रूको सदाके लिए सताता रहा कि इतनी कम संख्याकी सेना लेकर शिवाजी उन्हे पराजीत कसै करता रहा | कम संख्याकी सेनासे जब अपनी बडी संख्याकी सेना पराजीत होती है तो इसका दुःख मृत्यूसे अधिक दाहक होता है | गीतामे भगवान श्रीकृष्णने कहा,' संभावितस्य अकिर्ती मरणात् अतिरिच्यते |  (किर्तीवान आदमीको अपकिर्ती मृत्यूसे ही खतरनाक लगती है) और यही हालत हो गयी औरंगजेब, निझाम, आदिलशाह इनके सेनाका | किसी इतिहासकारने लिखा है कि मोगलोंके घोडे भी इतने डरपोक बने गये थे की, उनको पानी पिते समय भी पानीमे उन्हे शिवाजी महाराजके सेनापती दिखते थे | शिवाजी महाराजकी युध्दनीतीसे प्रतिपक्ष सेनाके मनोबलपर बडा प्रहार हो जाता था |  शिवाजी महाराजकी युध्दनीती के कई उदाहरण है इसमेसे दो मुख्य उदाहरण नीचे देता हूँ |
        अफझलखानका वध
अफझलखानका वध का जो वर्णन, वृत्तांत इतिहासमे पढा है, सुना है, इससे एक बात स्पष्ट है की शिवाजी महाराजका साहस की गिनती ना अंकोमे होती है, ना शब्दोमे की जाती है | किसी शत्रूके सरदारका खात्मा करना है, तो महाराज उस सरदारकी देहयष्टी, ताकद, युध्द कौशल्य, उसका स्वभाव, उसका पेहराव, उसकी कमीयाँ, प्रत्यक्ष युध्दमे उसकी अबतक की सफलता और सफलतामे उसका खुदका योगदान, उसके साथ आये हुये सैनिककी संख्या, हत्यारें-शस्त्रे, इन सब चीजोंकी जानकारी शिवाजी महाराज पहलेही लेते थे ऐसा तर्क याँ अनुमान निकलता है |

अफझलखानको मारते समय सावधानी और चतुराईसे उसे उसकी मुख्य सेनासे अलग करके अपने क्षेत्रमे  बुलाया | बुलानेकी भाषाका इस्तेमाल भी ऐसा था, की अफझलखानको लगा की शिवाजी डर गया है और शिवाजीने तह की इच्छा जतायी है | इससे अंहकारी खानको आनंद लगना स्वाभाविक था | फिर भी खान शिवाजीको अपने शारिरीक शक्तीसे मिटा देनेकी तैयारीसे आया था | बस दोनोंकी भेट होती है, अफझलखानने शिवाजीको गले लगाकर अपने पहाडी शक्तीसे शिवाजीको दबाया और दम घोटनेकी मौत देनेका प्रयास किया तब शिवाजीने अपने कमरके अंदर छिपाया हुआ एक अजीब हत्यारसे (शेरके नाखूनसे बनाया ) खानके पेटमे घुसा घुसाके खानको मौतके घाट उतार दिया | शिवाजी और अफझलखानके भेट जब तय हूई उससे पहलेही अफझलखानको मारनेकी योजना तयार की 
थी | शिवाजी महाराजने पहले अपने जासूद (आजके भाषामे गुप्तहेर) अफझलखानके सेनामे फैलाके रखे थे |आखिरके मौकेपर बहिर्जी नाईक नामक जासूद अफझलके काफीलामें टरबूज बेचनेवालेके बहुरूपमे जाकर उनको टरबूज देनेके लिये आगे गया, टरबूज दिया और सुक्ष्म दृष्टीसे देख लिया की अफझलखानने अपने शरीरपर वस्त्रोके नीचे किसी तरहका  सुरक्षा कवच नही पहनाया था | यह बात शिवाजी महाराजको दुसरे जासूदके माध्यमसे पहूँचा दि गयी | इसका मतलब शिवाजी महाराजने अफझलखानको मिलनेका बहाना करके उसे खत्म करनेकी योजना पहले ही बनायी थी |  युद्धमे रिस्क लेना है  तो सावधानी, नियोजन और कृतीका अच्छा समन्वय पक्का करना पडता है , तो ही जीत होती है | अफझलखानका वध यह एक अर्वाचीन जगतमे एक नया युद्धनीतीका मुर्तीमंत उदाहरण था |

शिवाजींने  शाहिस्तेखानका, मनोभंग और पराजय करते समय वह रणनीती नही दोहरायी | बल्की उनके ३ लाख सैन्यके बीचमे सिर्फ १०० सैनिकको शादीकी बाराती बनकर साहससे  घूसें और रातके अंधेरेमे शाहीस्तेखानके महलमे खूद शिवाजी महाराज गये और बेसावधानीमे शाहीस्तेखानपर प्रहार किया | अचानक हमलेसे डर गये हुये शाहिस्तेखान भाग गये | नसीब उसकी जान बच गयी पर युद्धमे काम आनेवाली उंगलीयाँ तो तोड दियी | युद्धपिपासू और अंहकारी औरंगजेबके महान सेनापती और रिश्तेसे मामा शाहीस्तेखानको युद्धमैदानसे निवृत्त किया |  

शाहीस्तेखान, अफझलखानकी वधके तरीका शिवाजी फिर दोहारेगा यह उमीद करके बैठा और खुदको पागलपनका शिकार बनाया |  इस घटनासे  खतरनाक चाल करनेमे अपना राजा अग्रेसर रहता है यह एक अच्छा संदेश शिवाजी महाराजके सेनामे गया | सेनाको प्रेरणा मिली जिससे उनका आत्मबलमे बढोत्तरी हुई | 

५) बदलता समय देखकर युद्धके हाथियारोंमे आधूनिकता लानेकी कोशीशमे शिवाजी महाराज कुटनीती अपनाते थे | ब्रिटीश के स्पर्धक फ्रान्स तथा कभी कभी पोर्तूगीज के साथ शस्त्र निर्मीती तथा खरीदनेका व्यवहार किया है | नये ढंगके शस्त्रोंका उन युरोपियन देशोंसे जानकारी ली और उसमे अपनी तकनिक डालके शस्त्र बनायें | साथ ही साथ अपने राज्यमे नई ढंगकी तलवारे बनायी जिनकी लंबाई बढायी ताकी अपने कम उँचाईवाले सैनिक  दुश्मनके ऊँचे सैनिकोको मार सके | 

६) शिवाजी महाराजकी दूरदृष्टी भी अजीब थी | जो समुंदरपर राज करेगा वह जगपर राज करेगा यह बात शिवाजी महाराज अच्छी तरहसे जानते थे | युरोपियन व्यापारी जो आते थे वह सिर्फ व्यापारी नही है, यह आक्रमक भी हो सकते है यह विचार शिवाजी महाराज जैसे बुध्दिमान राजाके मनमे आना इसमे आश्चर्य नही है | लेकीन उपायके रूपमे समुंदरपर तट बनानेमे प्राथमिकता देकर कार्यान्वीत करनेमे जो तत्परता शिवाजी महाराजाने दिखाई, इससे महाराजकी प्रशासनपर पकड कितनी मजबूत थी, इसका दर्शन हमें मिलता   है |  हेनरी रेनिंग्टनने एक ब्रिटीश युद्ध अभ्यासक शिवाजी महाराजका वर्णन  General of Hindu Forces इन शब्दोमे किया है |

७) छत्रपती शिवाजी महाराजकी सेनामे सब जात-पातके लोग सम्मेलीत किये जाते थे | ना छुत-अछूतका भेद ना उच्च -नीचका भेद |  समाजके सभी वर्गको रणभूमीपर अपने अपने स्वाभाविक रूची, मनिषा, काबिलीयत के अनुसार प्रवेश तथा जिम्मेदारी दि जाती थी | मैने एक जगह पढा है, कि शिवाजी महाराज खुद समाजके विभिन्न घटकोंके मुखीयाँ और उनके साथीदारोंसे सवाल-जबाबका सत्र रखकर सेनामें भर्ती करते थे | सुना है की महाराष्ट्रमें सुर्यवंशी समाजके मुखियाँ और उनके साथिदारोसें एक बार शिवाजीने पुछा कि " आप इस स्वराजके लिए क्या काम कर सकते है ?" तो उनका ग्रामीण भाषामे जबाब आया, " आमी कुनी बी हाय ; आमी नांगर (हल) बी चालवितो अन् तलवार बी ; आम्हांस्नी सैपांक भी जमतोय. (खाना बनाना)  आमी सैनीक भी हाय अन् शेतकरी बी हाय. " आज वही समाज कुणबी नामसे जाना जाता है | यह उदाहरण इसिलीए दिया की अर्वाचीन भारतमे सेनाकी रचनामें ऐसा  क्रान्तीकारक बदल का जनकत्व शिवाजी महाराजको जाता है | अपने देशमे वर्णव्यवस्था का खतरनाक जातीव्यवस्थामे जो रूपातंर हुआ था उसे शिवाजी महाराजने प्यारके दो शब्दोंसे बदल दिया | जब देशमे सिर्फ  क्षत्रियको ही हथीयार चलानेका हक्क था,  वह बदल गया | शिवाजी महाराजकी इस नीतीसे उनकी सेनामे  ' एकही राष्ट्रके हम सब सैनिक ' यह भावना उत्पन्न हुई जिसका उचीत परिणाम सेनाके परिवारमे तथा नागरी  (सिव्हिलीयन्स) समाजमे भी हुआ | 

श्री शिवाजी महाराज का इतिहास अजब तथा विभिन्न रूप लेकर आनेवाली युध्द नीती, अतूल्य साहस और पराक्रमसे भरा हुआ है | इसिलीए इस चर्चाको इधरही हम रोकते है क्योंकी हमें हरसाल राज्याभिषेक दिनके पर्वपर एक हप्तेतक तीन लेख हो, इस तरह शिवाजी महाराजके चरीत्र पारायण करना है | आनेवाले दो-चार दिनमे शिवाजी महाराजके प्रशासन कौशल्य पर चर्चा करेंगे |

      जय भवानी जय शिवाजी |

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