शिवाजी महाराजका सुशासन
दुनियामें कोई भी समाज हो, और दुनियाके कोई कोनोंमे निवास करनेवाला हो, सामाजिक स्थिती राज्यव्यवस्थापर नही, बल्की राजनीतीके उपर अधिकतम निर्भर रहती है | आज दुनियामे जितनी राज्यप्रणाली अस्तित्वमें है, चाहे वह राजेशाही हो, एक पक्षीय साम्यवादी हो, याँ लोकशाही हो, इन सभीमें शासन नामकी व्यवस्था तो रहती ही है | सत्तापर विराजमान कौन है, यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात
है | इसिलीये वैदिक कालसे हमारे यहाँ दो वचन कहा गये है, वह इस प्रकार है --
' यथा राजा तथा प्रजा |' और 'राजा कालस्य कारणम् |'
सुसंस्कार लेकर तैयार हुये नेताओंके पास सत्ता आती है, तो प्रजा सुखी रहती है | शासन को कब सुशासन कहा जा सकते है, इसकी कुछ कसौटीयाँ रहती है |और वह कसौटियाँ समय बदल गया तो भी उनमेंसे एक भी बदलती नही हैं | इसका कारन यह है की वह शाश्वत सिद्धांत है | पहले उनपर सिध्दांतपर चर्चा करेगे ताकी शिवशाही यह एक सुशासनका ऐताहासिक उदाहरण है, इस सत्यतक हम पहूँच सके |
१)ऐसा राज जहाँ प्रजाके हितको अधिक प्राधान्य दिया जाता है | इसका अर्थ यहीं है की राजा याँ सत्ताधारी प्रमूख याँ राजनैतिक दल वास्तवमे सत्ताके विश्वस्त है, इस भावनासे काम करें, राज चलायें, तो राजमें कभी बेबनाव बननेकी स्थिती आती नही |
२) ऐसा राज जहाँ सज्जनोंका गौरव और दुर्जनोंके कूकर्मोंके प्रती शासन का कडा रव्वैया है |
३) किसान और सेनादलकी आर्थिक स्थिती अच्छी हो तो वह समाज सुरक्षित भी रहता है और शेतमालका उत्पन्न भी अधिक होता है | अन्न, और सुरक्षा यह दोन प्रमूख जरूरतेंके बारेमें समाज निश्चीन्त होता है तब वह समाज बौद्धिक, शारिरीक , मानसिक, औद्योगिक, एवं सामरिक दृष्टीसे बलवान बननेकी क्षमता प्राप्त करता है |
४) महिला, संतजन, विद्वान, ज्ञानी के प्रती शासकके मनमे आदर होता है तब समाजकी सृजनशिलता बढती है, वैचारिक उचांई भी बढती है |
५) सत्ताधारी, तथा सरकारी अधिकारियोंकी नितीमत्ता अच्छी है तो समाजके सुख और आनंदमे बाधा उत्पन्न नही होती है | जब समाज सुखी और आनंदी है, तब राज्यव्यस्था स्थिर रहती है और जब राज्यव्यवस्था स्थिर होती है तो समाज प्रगतपथपर चलने लगता है |
शिवाजी महाराजका शासन काल उनके राज्याभिषेक के बाद ही छुरू होता है | राज्याभिषेक के तुरन्त शिवाजी महाराजने राज्यव्यस्थामे बदल किया | राज्यके कोषको भार पडनेवाली वतनदार, सरंजमशाही नष्ट की गयी | उसके बदलेंमे शहीद हुये सैनिकोंके परिवारको तनखा देना सुरू किया | अपने राजमहलमे अष्टप्रधान मंडल बनाया, जिससे राज्यका कारोबार जनताभिमुख रहें | वेदकालीन राजधर्मका पालन भी इसी तरहका रहता था | वैदिक कालमे हमारे यहाँ ग्रामपंचायत राज गणतंत्रसे चलता था | ऋग्वेदमें एक ऋचा है जिसमे कहा है की, ' हे राजन आप इस राष्ट्रका स्वामी हो इसिलीए आपको हमने चूनाया है | 'अथर्ववेदमें सभा, समिती जैसे शासन चलानेकी तंत्र का जिक्र किया हुआ है | वैदिक कालसे चली आयी राज्यव्यवस्थाकी पुनर्स्थापना का छत्रपती शिवाजी महाराजको ही श्रेय जाता है | पाठकोंको विनंती है की भगवानकी आरती करनेके बाद जो मंत्रपुष्पांजली स्त्रोत्र हम गाते है, वह एक वैदिक कालकी प्रार्थना है जिसमें भगवानसे राज्यशासनकी मांग की है | उस प्रार्थनामे आदर्श राज्यव्यवस्थाके बारेंमे जो वर्णन है वह शिवाजी महाराजके सुशासनसे मिला जूला है, इसिलीए छत्रपती शिवाजी महाराज जनसामान्योंके दैवत बने |
सुलतानशाही, आदिलशाही, निजामशाहीमे भ्रष्टाचार, मुफ्तमें खानेकी, ऐष करनेकी आदत प्रशासनमे बढी थी | उसमे सुधार लानेकी कवायत करनेमे शिवाजी महाराजने थोडीसी भी देरी नही की | राज्याभिषेक बाद सभी अधिकारीओंको "अपनी आदत बदलो याँ कुकर्मकी जबर शिक्षाके लिए तयार रहो " ऐसा कडक इशारा
दिया | प्रशासकीय कामकाजमे एक नया शब्दकोश बनाया, जिसमे संस्कृत प्रचूर मराठी शब्द तथा हिंदी शब्द आये | उर्दू तथा यवनोंके भाषाके शब्द को हटाया गया | एक नया शक सनावलीका भी प्रारंभ किया | सामान्यजनोमें सोया हुआ अभिमान जाग उठा और स्वत्व, स्वराज, स्वधर्म, स्वभाषा का बोलबाला छुरू
हुआ | मेरा मानना है की मानसशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार देखे, तो समाजमे एकता तब बनती है जब समाज बांधवके अन्दर धार्मिक उत्सव मनानेका तरीके भिन्न हो पर तत्व समान है इस बातपर, उनका राजा या सत्ताधारी (चाहे वो कौनसी भी राज्यप्रणाली हो,) ज्यादा ध्यान देता है | शिवाजी महाराजने वही किया, जिससे उनके शासन कालमे, समाजमे भाईचारा बढा था, और प्रशासन तथा समाजकी कार्यशक्ती उंचाई के स्तरपर पहूंची थी | अपने ही समाजके शाक्त पंथीयोकों समाजके मुख्य धारामे लानेके लिए शिवाजी महाराजने राज्याभिषेक होनेके बाद बारह दिनपर शाक्त पंथसे रिती रिवाजके अनुसार फिर राज्याभिषेक करवाया | शाक्त पंथ स्वराजमे सम्मेलीत होनेके बाद स्वराजकी सामरिक शक्तीमे वृंद्धी हुई |
प्रशासनकी एक अजब महत्ती है, यदी इसमे नरमाई, ऐषआरामी आ गयी तो समाज गहरी नींदमे जानेका खतरा निर्माण होता है, और राज्यके प्रशासनमे उत्साह, चैतन्य है तो समाजमे एक नई ऊर्जा उत्पन्न होती है | इन दो सिध्दांतको शिवाजी महाराज भलीभाँती जानते थे | जब समाजकी कार्यक्षमता तथा प्रामाणिकता बढती है तो हर क्षेत्रमें समाज तथा देश विकास के राहपर निकल पडता है और तभी तो राष्ट्र बलवान होता है | शिवकालीन प्रशासन के अभ्यासक छत्रपती शिवाजी महाराजको महान योद्धा तो मानते ही थै, इससे अलावा वह सारे अभ्यासक शिवाजी महाराजको एक कुशल प्रशासक तथा व्यवस्थापन शास्त्रके एक अदभूत गुरू भी मानते है |
जब सुशासनकी बात आती है तो भारत जैसे कृषीप्रधान देशमे किसानोंकी स्थिती कैसी है, यह अहम बात मानी जाती है, और इसपर चर्चा होना स्वाभाविक है | जिसे हम आदर्श राजा मानते है ऐसे शिवाजी महाराजका ध्यान किसान वर्गकी परेशानी पर नही जाता तो आश्चर्यकी बात बनती | शिवाजी महाराज जितने पराक्रमी थी उतनेही किसान, छोटा-मोटा व्यापारी, कारागिर, मजदूर, ऐसे मेहनत करनेवाले सामान्यजन गरीबीसे त्रस्त देखके वह भावूक भी होते थे | समाजबांधवके प्रती वह संवेदनशील थे | मेरे पढनेमे आया की कभी कभी शिवाजी महाराजका मन बैरागी वृतीसे भी भर जाता था | संतजनोके कार्यसे वह प्रभावीत होते थे | उनकी विरक्ती देखकर जीजाऊ चिंतीत भी होती थी और एक दिन शिवाजीको बोली " शिवबा, एक बार संत तुकाराम महाराजका किर्तन सूनकर उनका आशिर्वाद ले लिजीये | " अपनी माँ की आज्ञाको पालन करनेके लिए शिवाजी निकल पडे तुकाराम महाराजके दर्शन करनेके लिए | शिवबामें अपने कर्तव्यके प्रती वैराग्य उत्पन्न न हो ऐसी जिजाऊ की इच्छा थी | आखिर जब तुकाराम महाराजसे शिवाजी मिलते है, तब उन्होंने शिवाजीको सलाह दि की, "मै आपके कुछ कामका नही हूँ, आप समर्थ रामदासके पास जाओ, क्यों की समाजको इस समय आपकी जरूरत है |" आखिर शिवाजी महाराज समर्थ रामदासके शिष्य बने | संत तुकाराम महाराजकी सलाह और जीजामाताकी चिंता व्यर्थ नही गयी| अपने देशके प्राचीन युगमें राजा दशरथको वसिष्ठ, पांडवोको श्रीकृष्ण, चंद्रगुप्तको चाणक्य ऐसे सलाह देनेवाले गुरू थे | यह ऐताहासिक सत्य शिवाजी महाराज भलीभाँती जानते
थे | उनका साधू-संतोसे सलाह लेना, उनको नमन करना यह आजके राजनेताओं जैसा नाटक नही था | स्वधर्म, स्वजन स्वभाषा, देवी-देवताओकी मंदिरका और माँ-बहनोंकी इज्जतकी रक्षा करनेके लिये शिवाजी महाराजने स्वराज्यका निर्माण किया था | राजा बनकर आदर, मान, संपत्ती पानेकी लालसा शिवाजीके मनको कभी स्पर्श नही कर पायी, कारन जीजामाताके संस्कार जो उनपर हुये थे | कल्याणके सुभेदारको पराजीत करनेके बाद उसके बहनका कब्जा लेकर शिवाजीकी सैनिक जब दरबारमे आये तब शिवाजी महाराजके 'यदि इतनी सुदंर हमारी माता होती ' यह उद्गार नारीकी सर्वोच्च पावन मनसे कियी हुई पूजा है | शिवाजी महाराजने कल्याणके सुभेदारके बहनको सन्मानसे वापस भेज दिया | इसे कहते है ' हिंदू संस्कृती और इसे कहलाया जाता है " हिंदू साम्राज्यका राजा '
शिवाजी महाराजके शासन कालमें किसी नागरिकको जात, भाषा, धर्मके आधारपर दूजा भाव रखकर व्यवहार कभी नही हुआ | हिंदू सहिष्णू है और सहिष्णू रहेगा यह तत्व शिवाजी महाराजके शासन व्यवस्थाकी एक विशेषतः थी | पर धर्मके आधारपर किसीको ना कोई छूट मिली ना कोई स्वतंत्र दर्जेकी सुविधा | सभी जात-पात, भाषा धर्मके लोगोंके लिए समान नागरी कानून था | पर उनकी स्वधर्मपर निष्ठा ऐसी थी की उसे अंतपार नही था| आदिलशाही, सुलतानशाही, निजामशाही, मोगलाईमे जिन हिंदू मंदिरोंको तोडा था उनकी दुरूस्ती कि गयी | आक्रमकोंके घटियाँ चालसे जिन हिंदू बांधवको जबरन तरिकेसे इस्लाम याँ ख्रिस्ती बनाया गया है उनको फिर हिंदू धर्ममे वापस लेनेकी प्रक्रीयामें (शुद्धीकरन) बाधा उत्पन्न करनेवाले प्रस्थापित पुरोहीत वर्गके कुछ कर्मठ लोगोंकी एक भी नही मानी और नेताजी पालकरको हिंदू समाजमे वापस लिया |
राज्याभिषेक होनेके बाद तुरन्त शिवाजी महाराजाने सडी हुई वतनदारी, सरंजमशाही व्यवस्था बंद की | सरंजमशहा और वतनदारोंसे किसानोंपर होनेवाला अन्याय खत्म हुआ और अपने अधिकारीओंको स्पष्ट चेतावनी दि की " यदी खेतकी फसल धान्य हो याँ सब्जी हो, मुफ्तमे लेनेकी कोशीश की, तो कडी सजाको तैयार रहना होगा |" सुलतानशाही, आदिलशाही तथा निजामशाही के राजमे किसानोके खेतोमे आग लगनेकी घटनायें नित्यकी वार्ता रही थी और किसानको काफी नूकसान होता था | किसानको राहत मिलनेके लिए रातमे मशाल जैसे दियाका उपयोगपर निर्बंध डाला, परेशानी देनेवाली करप्रणाली तात्काल बंद करायी | किसान वर्गमे जमीन मालकीपर मतभेद थे, इससे गृहकलह गाव-बखेडा बढे थे | इस पर नये ढंगसे फिरसे भूमीमापन किया गया और किसानोकी जमीन की सीमा तय कराके लियी | इससे किसान वर्ग खुष हुआ और नयी उर्जाके साथ काम करने लगा | कृषी उत्पन्न बढना छुरू हुआ | जिन भूमीपर कुछ भी उगाया नही जाता वहाँ सब्जी फल का उत्पादन छुरू हुआ | सभी गावोंके बजारमे जरूरतें वस्तूओंका वितरणके एक नयी व्यवस्था छुरू की थी | प्रशासनमे ऐसे नोकरशहा थे जिन्हें सुलतानशाही निजामशाही और आदिलशाही के राजमे मुफ्तमे नमक, तेल, डाल, चावल, सब्जीयाँ लेनेकी बुरी आदत लगी थी उन्हें तात्काल बरखास्त किया |
आदिलशाहीके राजमें चिंचवडके मोरया गोसावी नामके सिध्दस्त स्वामीके शिष्यगण, किसान और व्यापारी वर्गसे मुफ्तमे सब्जीया, चावल लेते थे, उस प्रथाको शिवाजी महाराजने बरखास्त किया | एक हिंदू धर्मगुरूको हिंदू राजाके शासन कालमे चावल, सब्जी जैसे चिजोंकी पैसा देना पडेगा यह बात स्वामीके शिष्योंको अनुचित लगा, इससे गोस्वामीके मनमे गलत फैमानी न हो इसके लिए महाराजने मोरया गोसावीको पत्र लिखकर कहा, ' साधू-संतोंका मान रखना यह राजाका काम है, ना किसान और व्यापारीयोंका | आपके मठके लिए जो चीजें खरिदने पडेगी, उसके लिए पैसा मै मेरे निजी खर्चके लिये रखे हुये पैसोंसे मिल जायेगा, आप चिंता मत करो | इसे कहते है पारदर्शी राज्यशासन !
यवनोंके राजमे हर क्षेत्रमे अन्याय चल रहा था | सौ वर्षके वतनके बखेडापर कुछ निर्णय नही हुये थे | और ऐसी स्थिती मावळ प्रांतमे ज्यादा थी | अपनेही समाजबांधवोंका सामर्थ्य बेकारमें खर्च होता था | दस सालमे सभी न्यायालयीन केसेको सदरमे सवाल-जबाब तथा निहीत कागदपत्रोंद्वारा निकाली लगायी | समाजमे स्वस्थता आयी जिससे समाजबांधवोकी पिडा नष्ट हो गयी और भाईचार बढते बढते समाज बांधवकी कार्यक्षमता बढी | हर क्षेत्रमे उत्पादन बढा और स्वराजका महसूल भी बढ गया | छोटा-मोटा उद्योग क्षेत्रमे भी सांघीक शक्ती बढ गयी | इन सभी कार्यमें महाराजने बडी कुशलतासे सामूहीक ( जिनमे माता जिजाई , दादोजी कोंडदेव, अष्टप्रधान मंडल इनका समावेश था ) न्यायदृष्टीका उत्तम उपयोग किया |
सामान्यजन चाहे किसान हो, याँ व्यापारी हो, सेवा कर्म करनेवाले हो याँ पुरोहीत वर्ग , कारागिर वर्ग हो, याँ कर्मचारी वर्ग सभीको सुखी तथा सुनियोजित जीवनका अनुभव होने लगा | इसमे कायदा और सुव्यवस्थामे सुधारका भी योगदान था | जगह जगह पर 'राजा हो तो शिवाजी जैसा' ऐसा सूर सुननेमे आने लगा | अपने राजाके प्रती लोगोंको अभिमान था तथा लगाव भी था | लोग उन्हें ' जाणता राजा ' और ' लाडला राजा ' इस तरह संबोधन करने लगे | शासन कैसा लोकाभिमूख रहे , इसका एक मुर्तीमंत उदाहरण शिवाजी महाराजने पेश किया है, जिससे हमें आज भी प्रेरणा मिलती है और आगे ही मिलती रहेगी ऐसा विश्वास व्यक्त करके इस चर्चाको मै यहाँ समाप्त करता हूँ |
जय भवानी जय शिवाजी !