शुक्रवार, २६ ऑक्टोबर, २०१८

काश्मीर विलय दिन



काश्मीर विलय दिनानिमित्त केलेले हिंदीतील भाषण येथे प्रकाशित करीत आहोत


आज २६ आक्टूबर | आजके दिन काश्मीर प्रान्त अपने भारत देशमे विलीन हुआ | देशके  सीमाओपर लढनेवाले हमारे जवानोंका साहस और पराक्रमको सलामी देनेका दिन है ,इसी  दिन उन्नीस सौ सैतालीसमे (1947) मे पाकिस्तानने काश्मिर प्रान्तपर किया हुआ हमलेको अपने जवानोंने करार जबाब देकर विजय हासील की थी | स्वतंत्रता के बाद पहलेही युद्धमे विजय प्राप्त करके भारतने दुनियाको दिखाया कि अब हम देशकी अंखडताका सौदा नही कर सकते है | आजही हम दुनियाको बताते है की काश्मीर भारतका अविभाज्य प्रान्त है और इस प्रान्तकी सीमापर होनेवाली दुश्मनकी कोई भी सैनिकी हमलेको करार जबाब देते रहेंगे | इस दिनका औचित्य नजरमे रखकर हम आज काश्मिर प्रान्तका इतिहास तथा वर्तमान स्थिती एवम् भविष्यमे हमारे देशकी नीती कैसी हो इसपर हम चर्चा करने जा रहे है | मै ना इतिहास विषयका तज्ञ हू, ना मै विदेश नीती और रक्षा नीतीका तज्ञ | मै एक आम नागरिक हू और जो कुछ मैने पढा है , सुना है, उसमेसे जो कुछ समझा हू वही कहने जा रहा हू | 

हम सभीने मंगलवार २२ आक्टोबरको 'कोजागिरी पुर्णिमाका' त्योहार मनाया | वह त्योहार आजके विषयके संदर्भमे क्या मायने रखता है उसपर थोडी नजर डाले तो हम सही दिशामे काश्मीर प्रान्तपर चर्चा कर सकेंगे ऐसा मुझे एहसास हुआ है |

क्या अर्थ है कोजागिरीका? मुलतः यह शब्द संसकृतमे है और वह है 'को जागर्ती ' ऐसा है | याने 'कौन जाग रहा है ?' और क्यू?  लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है इसिलीए हम जागते है, यह हुआ धार्मिक अर्थ | इसका मतलब यह है की आम तौरसे मानव जातीको ऐश्वर्य एवं वैभव प्यारा होता है, और इस सिद्धान्तको ऋषीमुनी भलीभाॅती जानते थे |  इस सत्यका हम इस कलीयुगमे भी अनुभव करते है | लेकीन लक्ष्मी कब और किसको प्रसन्न होती है, यह जानना ऋषीमुनीओंने हमपर छोड दिया है | मेरी समझ यह है की 'जब हमारे अन्दर विराजमान हुई दुर्गामाता (शक्तीकी देवता)  जागृत रहेगी तब लक्ष्मी प्रसन्न होती है | शक्तीकी देवताका अर्थ है, ' मजबूत एकता |'  वैयक्तीक जीवनमे हमारे सभी इंद्रियें मिलजूलकर कार्य करते हो, तो हमारा शरीर तंदरूस्त रहता है | शरीर तंदरूस्त होगा, तो कर्म अच्छी तरहसे निभाना शक्य होता है | बादमे फल भी अच्छा मिलता है | आजके युगमे फलका अर्थ पैसा, वैभव यही है | हमारे समाज और राष्ट्रके संदर्भमे कोजागिरी पौर्णिमेका  याने ' कौन जाग रहे है '  इसका सही अर्थ है, ' कौन समाजकी एकता और मातृभूमीकी अखंडताके लिए जाग रहे है? ' यदि देशकी स्वतंत्रता नही टिकेगी तो  माता लक्ष्मी भी घरसे चली जायेगी | यह तो हमने अपने देशके इतिहाससे सिखा है | स्वतंत्रता देवीका नाम है, दुर्गा माता है और इसका बेहतरीन वर्णन स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने मराठी काव्यरचना लिखकर  बताया है | यदि हमारे अंदर विराजमान शक्ती देवताका हम सन्मान रखनेके लिए जागरण नही करेंगे तो माता लक्ष्मी कैसे हमारे घरमे रहेगी, आखिर लक्ष्मी भी दुर्गामाताकी ही रूप है ना |मुझे विश्वास है की  मैनै काश्मीर विलय दिनकी  चर्चाका प्रारंभ सही ढंगसे किया हो |

हमे काश्मीर विलय दिन क्यो मनाना चाहीये? हम स्वयं अपने आपको एक साधा और सिधा प्रश्न पुछें की, यदि हमारे परिवारके किसी एक सदस्यको गुंडोने किडनॅप किया हो और उसको हम गुन्डोसे छुडवाकर घरपर वापस लाते हो, तो हमें आनन्द होगा कि नही?  होगा, जरूर होगा | पाकिस्तान सैनिकों द्वारा काश्मीरपर  किया हुआ हमलेपर हमारे जवानोंने करारा जबाब देंके पाकिस्तान सैनिकोंकी पिटाई की, तो हमे आनंद होना स्वाभाविक है | हम गोवा मुक्ती दिन मनाते है, हम जुनागड मुक्ती दिन मनाते है , हम निजाम मुक्त हैद्राबाद दिन मनाते है | आजका दिन भी हमारा राष्ट्रीय त्योहार है | अब त्योहार मनाना है तो जिम्मेदारी भी स्विकारनी है | वैसे ही हमारे सभी त्योहारमे सामाजिक एकताको दृढ करनेकी जिम्मेदारी रहती तो है| इसमे कौनसी नयी बात है? सवाल यह है की काश्मीर विलय दिन मनानेसे हमपर कौनसी जिम्मेदारी है ? उसपर भी चर्चा करें | 

हमारा पहला कर्तव्य यह है की हमे अपने देशका वैदिक कालसे लेकर अबतक का इतिहासको सही ढंगसे समजना होगा | वैदिक कालसे हमारे देशकी सिमायें कहातक थी, इसकी जानकारी होना जरूरी है |  हम ना किसी अन्य देशकी भूमी चाहते है और ना कभी लेना सोंचेंगे | यही तो देशके सभी राजनैतिक पार्टीयोंकी भूमिका रही है और इसमे संदेह नही है | पर आज काश्मीर एक बडी समस्या बनी है, यह देखकर मुझे लगता है की काश्मीरके इतिहासको बेदखल करना यह एक बडी भूल हो सकती है | इसमे दो राय नही होनी चाहीये | जब काश्मीरके इतिहासपर चर्चा करते है तो प्रथमतः अपने देशका वेदकालीन उत्तरी-पश्चीम इतिहासका जिक्र करना जरूरी है |  आम तौरसे देखा जाय तो इस्लामी आक्रमक ज्यादा तर इस रास्तेसे भारतमे आये है|

विश्वके सभी देशोमें मध्ययुग या उसके पुर्व छोटे-मोठे स्तरपर राजेशाही नामकी व्यवस्था थी | इस दृष्टीसे अपने देशकी स्थिती अनन्य थी | क्योंकि इस अति पुरातन राष्ट्रका आधार सदासे ही सांस्कृतिक रहा है, राजनीतिक नहीं | यहाॅ राज्य आये और गये | एक नही, अनेकानेक राज्यों का भी एक साथ अस्तित्व रहा, गणराज्यसे लेकर राज्यतंत्र तक विविध प्रकारकी शासन पद्धतिया रही | नतिजा यह हुआ कि राष्ट्रके एक अवयव 'राज्य ' की ओर कालक्रम में समुचित ध्यान न दिये जानेसे कारन हानी भी हुई, यहाॅतक कि विदेशी-विधर्मी बर्बर आकान्ताओंने इस देशको लुटा,खसोटा और नोचा भी | अधिकतर हानी काश्मीरमे हुई | वैदिक कालमे हमारे देशकी उत्तरी-पश्चीम सीमा अरबस्थानतक थी | यही प्रदेश है जहाॅ यहुदी , ख्रिश्चन और इस्लामका जन्म हुआ| इनका मूलस्त्रोत भी एकही था | लेकीन इस्लाम और ख्रिश्चन धर्ममे अमानवी मूल्ये की चलती होनेके कारन विश्वकी शांतीपर खतरा खडा हुआ और वह आजतक है ऐसा मेरा मानना है | तुर्कस्थानी भी इस्लामके पुर्व कुशाण नामसे परीचित थे, और उनके प्राचीन भारतसे अच्छे संबंध थे | भारतिय भाषामेसे हिन्दी, संस्कृतकी जानकारी तुर्की लोगोंको भूतकालमे थी और आजभी है | जब पंतप्रधान मोदीजी तुर्कस्थानमे गये थे तब टिव्ही चॅनलपर तुर्की लोगोंको कूछ हिन्दी शब्दका अर्थ पुछा गया, उनका जबाब सही निकला| अफगणिस्थान तो महाभारत कालमे उपगणस्थान एवम् गांधार नामसे जाना जाता था| महमंद पैगंबरके जन्मसे पहले मक्का यह प्रदेश हरिहरका तीर्थक्षेत्र से जाना जाता था | मक्का से लंकातक यह भूभाग सैंधवतटी नामसे जाना जाता था, और ब्रह्मपुत्रा नदीके उगमस्थानसे पुरा उत्तरी भाग, निचे बंगालसे  केरल, कोंकण, कर्नाटक सिंहद्वीप भूभाग आर्यावर्त नामसे जाना जाता था | यह सब जानकारी  'विश्वव्यापी हिंदु संस्कृती' नामक डाॅ लोकेशचंद्रने लिखा हुआ किताबसे मिलती है | इस किताबका मराठी भाषामे अनुवाद प्राध्यापक उत्तरा हुद्दरने किया है| भारतके अन्य प्रांतिय भाषामे अनुवाद हुआ है याॅ नही यह मालूम नही है लेकीन नही हो तो यह कार्य होना जरूरी है| उत्तरी पश्चीम भारतका इतिहासका संशोधन और पठन करनेके बाद अधिकांश जगमान्य इतिहास तज्ञ इस नतिजेपर पहूचें है की काबूलके आगे ईरान( आर्यान) की सीमातक क्रमु(आजकी कुर्रम) सुवास्तु( स्वात) गोमती(गुमत) आदि नदिंयो के क्षेत्रमे विकसित गणराज्योंका यह केद्र था और इन्ही गणराज्योंने दो शतब्दीयों तक मुस्लीम आक्रमणको रोका था |

अब चर्चा काश्मिरके संक्षिप्त इतिहासपर | आज काश्मीर विलय दिन है इसिलीये हम काश्मीरपर चर्चा कर रहे है | लेकीन मुझे लगता है हमे अपने देशकी सभी प्रांतोका इतिहास तथा भाषाकी, साहीत्यकी थोडी बहूत जानकारी लेना जरूरी है, और यह एक आदर्श नागरिकताका लक्षण मानना चाहीये |  वैदिक कालमे काश्मीरमे हिन्दुओंकी बस्ती थी | इस प्रदेशको धरतीका स्वर्ग माना जाता था | अनेक हिन्दु देव-देवताओंका यहाॅ निवास था और कई हिन्दुकी मंदिरे भी थी | कश्यपके अलावा पतजंली, दृढबल, वसुगुप्ता, आनन्द, क्षेमराज आदि ऋषीयोंका भी इस प्रान्तके विकासमे योगदान रहा है | बारवही शतीमे कल्हण पंडित नामक विद्वानने लिखा हुआ रजतरंगिणी नामके ग्रंथमे महाभारतकालीन पहला गोनार्द राजाके कालसे चार हजार सालका काश्मीर प्रान्त का इतिहासका वर्णन है | कल्हण पंडितने काश्मीर संस्कृतीपर शैवमत तथा आचार्य अभिनव गुप्तका प्रभाव था इस सत्यकी पुष्टी की |  इस ग्रंथमे युधिष्ठरकी न्यायनिपूणताकी पुष्टी की है | इसके साथ  गांधार प्रदेशकी  (आजका कंधहार जो अफगणिस्थानमे है) राजकन्या के स्वयंवरका वर्णन है | उसी स्वयंवरमे भगवान श्रीकृष्णने यादवोको भाग लेनेके लिये भेजा था और उनके साथ दामोदर नामका सचिवको भेजा था जो युद्धमे मर गया इसिलीये उसकी गर्भवती पत्नी यशोमतीको राज्याभिषेक किया | मिहीरकुमार , प्रताप, जलोक इन सभी राजाओंका भी जिक्र किया है | केकय्या नामके काश्मीर नगरके कर्कोटा वंशके राजा ललीतादित्त मुक्तपिंडके कालमे काश्मीरका विस्तार मध्य आशिया और बंगाल प्रान्ततक था | काश्मीरमे ही शैवदर्शन, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, योग वसिष्ठ जैसे ग्रंथोकी निर्मिती हुई है | सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्कके कालमे काश्मीर बौद्ध धर्मका केंद्र बना था | हिंदु देव-देवताके मंदिरओंका अस्तीत्व और अवशेष विश्वके हरेक प्रदेशमे थे और इसकी पुष्टी जिस तरह विश्वव्यापी हिंदु संस्कृती नामके किताबमे दि है  ऐसेही पुष्टी  काश्मीरके बारेमे रजतंरगिणी ग्रंथमे भी है ,इसिलीए  इसपर और अधिक चर्चाकी जरूरत नही है | काश्मीर प्रान्तमे भी सत्ताप्राप्तीकी स्पर्धा हिंदु राजाओंमे थी | यह बात कोई आश्चर्यकी नही है | विश्वके सभी देशमे इस तरहके वर्गयुद्ध होते थे | इसिलीए वहा भी अंतर्गत सत्ता स्पर्धा थी | जिस रजतंरगिणी ग्रंथकी मैने चर्चा की वह ग्रंथ मैने पढा नही है लेकीन उस ग्रंथका मराठीमे अनुवाद किया हुआ लेखिका डाॅ. अरूणा ढेरे और लेखक प्रशांत तळणीकर का किताब कुछ दिन पहले प्रकाशित हुआ है और उस किताबकी जानकरी मराठी वृत्तपत्रमे आयी थी | उसके आधारपर मैने आपको यह जानकारी दियी है |

मध्ययुगमे मुस्लीम आकान्तने मूल काश्मीर हिंदूओंको मुसलमान बननेपर या काश्मीर छोडनेपर मजबूर किया गयाउसके बाद काश्मीर प्रदेशकी सत्ता बारी बारीसे अफगाण और काश्मीर मुस्लीमके हाथोमे गयी | इसका कारन हिंदू समाजकी अतिसहिष्णूता और हिंदु राजाओंमे आपसी बैर भी कारन था | और यही कारन है की हिंदुस्थानकी पुरी सत्ता मुघलों और ब्रिटिशकोंके हाथमे गयी, यह इतिहास हम सभीको ज्ञात है | अंग्रजोंने उनकी अपने देशपरकी हुकमत  स्थिर करनेके लिये अठरासौ सत्तावनके पहीला स्वातंत्र्यसंग्रामके पश्चात  हिंदु-मुस्लीमोंमे भेदभाव बढानेकी कुटील नीतीका आधार लिया | और इसके बाद  'हम मुस्लीम इस देशके शासक थे ' ऐसा अहंकार  मुस्लीम बांधव और बॅरिस्टर जिनाके नेतृत्वमे मुस्लीम लीग पार्टीमे पैदा हुआ,  नतीजा रक्तरंजित खंडीत स्वातंत्र्य हमे मिला | यह इतिहास हम सब पढ चुके है |

स्वतंत्र भूभाग (उत्तरी-पश्चीम दिशाका इलाका और पुर्वीमे बंगालका) और उसके साथ एक्यावन कोटी रूपयोका इजाफा मिला फिर भी पाकिस्तान संतुष्ट नही हुआ और आज भी असंतुष्ट है | सिर्फ असंतुष्ट रहते तो बातचितसे हल निकल सकता, लेकीन पाकिस्तान धर्मके आधारपर निर्माण हुआ एक  राष्ट्र है, इसिलीए उस राष्ट्रके नागरिकोंको एवम् शासनकर्ताको  साम्राज्यवादकी लालसा नींद आने नही देती है | इसके अलावा  हिंदु समाजका नाक नोंचा इसका अहंकार, हरघडी हिंदुओंका द्वेष  पाकिस्तानके शासककोमे आज भी है | देशके विभाजन समय पाकिस्तानने वहाॅके हिंदुओंपर भारी मात्रामे अत्याचार किया | हजारो-लाखो हिंदुबांधवोकी हत्या की, उनकी जायदाद, सामान लुटा, माता-भगिनी पर अत्याचार किया, उनको फटे हुये कपडोमे निर्वासित होकर भगा दिया | और भारतसे जो मुस्लीम बांधव पाकमे गये, वह स्वखुषी और सन्मानसे गये | और जो करोडोकी संख्यामे भारतमे रहे उनको अल्पसंख्याका दर्जा देकर स्वतंत्रताके बाद काॅंग्रेसने ब्रिटीश सरकारकी नीती अपनायी | सिर्फ सत्ताके लिये | वहा पाकिस्तानमे हिंदु मंदिर तोडा गये और यहा राम जन्मस्थलपर  मंदिर निर्माणपर  विघ्न पैदा कर रहे है । कोर्टमें कही हार ना हो जाए इसिलिये ये मामला लटका रहे एैसा प्रयास कर रहे है | भाजपा छोडकर सभी राजनैतिक दल आज भी अपना देश मिश्र संस्कृतिका है, ऐसे  झुठा सिद्धांतको बढावा देते है| देशके विभाजनके समय हिदूओंकी इज्जत लूट गयी, संपत्ती लूट गयी, कभी वापस न आनेवाली जीवीत हानी हुई | कौन काॅंग्रेसी नेता और साम्यवादी नेता, हिदुओंके आंसू पोंछने गये थे? बस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके  सरसंघचालक गोलवलकर गुरूजी और उनके साथ स्वयंसेवक गये थे |

स्वतंत्रता के दोन महीनेके अंदर पाकिस्तानने  काश्मीरपर हमला किया | हमारे तत्कालीन पंतप्रधान पंडीत नेहरूने हमलेको प्रत्त्युत्तर देनेका निर्णयमे समय गवाया | इसकी वजह क्या थी वह पढनेको मिली है | काश्मीरका सत्ताधिश होनेका स्वप्न देखनेवाले शेख अब्दुल्लाकी पंडीत नेहरूके साथ गहरी दोस्ती थी | शेख अब्दुल्लाने नॅशनल कान्फरन्स नामका राजनैतिक दल स्थापन किया था और उसमे सिर्फ मुस्लीमोंको ही सदस्यता दि जाती थी | उस समय काश्मीरके गद्दीपर डोंगरा वंशजके राजा हरिसींह थे | उनका विचार काश्मीरको भारतमे विलय करनेमे था | लेकीन उसी समय उनको गद्दीसे उठानेकी साजीश शेख अब्दुल्लाने रची थी | और इसी साजिशको तत्कालीन पंतप्रधान नेहरूकी सम्मती लेनेके लिये पंडीत नेहरूको शेख अब्दुल्लाने काश्मीरमे बुलाया था | लेकीन राजा हरसिंहने पंडीत नेहरूको श्रीनगरसे वापस भेज दिया | इस अपमानको नेहरू जिंदगीभर भुले नही | जब काश्मीरपर पाकिस्तानका आक्रमण हुआ तब राजा हरिसिंहको सबक सिखानेके लिये उसी आक्रमणको जबाब देनेके निर्णयमे जानबुझकर देरी की | भारतिय जवान पाकिस्तानके आक्रमणको करार जबाब दे रहे थे उसी समय राजा हरिसिंहने काश्मीरका भारतमे विलय करनेकी शिफारसपर अपनी दस्तक की | इसमे तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघके सरसंघचालक गोलवलकर गुरूजीका बडा योगदान रहा | उधर भारतिय जवान पाक फौजीकी पिटाई कर रहे थे और पुरे हिम्मतसे काश्मीरका गवाया हिस्सा वापस लेनेके मूडमे थे तब पंतप्रधान पंडीत नेहरूने काश्मीरके बारेमे युनोकी मदद लेनेकी घोषणा कर दी | युद्ध विराम हुआ | आक्रमण पाकिस्तानने किया था और उसको जबाब देनेके निर्णयमे भारत सरकारने देरी की,  नतिजा आज भी  काश्मीरका वह हिस्सा पाकीस्तानके पास है, जहाॅसे पाकिस्तान भारतके सीमापार आंतकवादीयोंको प्रशिक्षण देता है | पंडीत नेहरूके इस निर्णयसे उनकेही मंत्रीमंडलके सदस्य डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जीने इस्तिफा दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघकी मदद लेकर भारतिय जनसंघ नामका राजनैतिक दल स्थापन किया |उसीका परावर्तीत नाम है भारतिय जनता पार्टी | पंडीत नेहरूकी गलतीपर प्रखर गांधीवादी अच्युतराव पटवर्धन जैसे नेताओंने कडी अलोचना की थी | आज उस घटनाको इकाहत्तर साल पुरे हुये फिर भी आज अपने देशका कोई प्रातंका नागरिक काश्मीरमे ना जमीन ले सकता है, ना व्यवसाय करता है | और भी बहूत ऐसे चिजे है जो कलम 370 मे है,  जिससे ना काश्मीरी नागरिकका हित है ना अपने देशका हित है | आज काश्मीरकी हालत क्या है, यह हम सब हरदिन पढते है | देशके तिजोरीपर हरदिनका कितना बोज काश्मीर समस्याके कारन पड रहा है, उसकी गिनती नही हो सकती है |काश्मीरमे पाकिस्तानने छेडा  हुआ छुपा युद्ध हमारे घरके द्वारपर भी आ सकता है |  'सदैव सतर्कता ' यह  एक बहूत बडी,  लंबी, और न खत्म होनेवाली जिम्मेदारी हम जैसे सामान्य देशवासीयोंपर भी है, ना सिर्फ सेनादल याॅ सरकारके खंदे पर है | इसिलीये राष्ट्रीय एकात्मता और देशकी अखंडताको मजबूत करनेके लिये जो भी उचीत सहाय्य हम दे सकते है वो देना चाहीये |

वन्दे मातरम् |

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