बुधवार तारीख २९ जुलै २०२० को केंद्र सरकारने नई शिक्षा नितीकी घोषणा कर दियी | इस शिक्षा नितीकी पहली विशेषतः यह है की लगभग ३४ सालके बाद देशमे शिक्षा नितीमे बदल किया है | दुसरी विशेषता यह है की यह शिक्षा निती इश्रोके भुतपूर्व अध्यक्ष, जानेमाने वैज्ञानिक सन्माननीय कस्तुरी रंजनके अध्यक्षताके समितीने बनायी है | यह शिक्षा नीती बनाते समय ग्राम स्तरसे, राज्य और राष्ट्रीय स्तरके शिक्षा नितीके अभ्यासकोंसे परामर्श किया है | स्वतंत्रताके बाद शिक्षा निती बनानेमें इतना बडा परिश्रम पहली बार ले गया है | इस नयी शिक्षा नितीपर सभी क्षेत्रके तज्ञ तथा अभ्यासकोंने अपनी राय दियी है | वैसे तो मै व्यावसायिक पत्रकार नही हूँ और हर विषय और घटनापर लेख लिखनेकी क्षमता मुझमें नही है | कुछ दिन पहले एक मेरे रिश्तेवाला महाविद्यालयीन विद्यार्थी जो मेरा ब्लाॅग पढता है, उसे नई शिक्षा नितीपर हिंदी भाषामे छोटा भाषण देना था | उसने मुझझे एक आर्टिकलकी माँग कियी | एक दिनके बाद मैने उसे छोटी स्क्रीप्ट दियी | बादमे मुझे एहसास हुआ की इस विषयपर लेख लिखा जा सकता है और उसी प्रेरणासे तैयार हुई २ भाग की लेख मालिका आपके सामने रखी है | सच बात यह है की यह लेख मालिका आपके सामने रखना यह भी आपके साथ संवादके माध्यमसे एक छात्रके रूपमे शिक्षा प्राप्त करनेका मेरा प्रयास है | स्वामी विवेकानंदने कहा है, "Learnning process last only with your death. स्वामीजीका कहना यह है की हम अंतीम श्वास तक विद्यार्थी रहते, ऐसा मानकर कुछ ना कुछ सिखते रहो | "
इसाई सनावलीसे पहले दुनियामें देशका विकास और प्रगतीका परिमाण सिर्फ दो थे | इसमेसे पहला देशके नागरिकोंकी साक्षरता और दुसरा शिक्षा क्षेत्रका इन्फ्रास्ट्रक्चर | इसके बाद कृषी, पशुधन, उद्योग, रोड ट्रान्सपोर्ट, बंदर, सागरी- व्यापार, जैसे क्षेत्रमे देश कितना आत्मनिर्भर है इन बातोंसे देशके विकासकी पहचान होने लगी | और धिरे- धिरे बडे उद्योग, यंत्र सामूग्री, खनिज -धातू संपत्ती, सामरिक शक्तीसे लेकर बादमे विज्ञान- तंत्रज्ञान, आधुनिक शस्त्रे, जीडीपी जैसे विकासकी परिमाण अस्तीत्वमे आयी | विकासकी परिभाषा बदली पर शिक्षाका महत्व कम नही हुआ, क्योंकी तत्त्वज्ञान और शिक्षाके बलपर मानव जातीने विज्ञान और तंत्रज्ञानमे प्रगती कियी है | इसिलीए अपने देशकी नयी शिक्षा नितीसे देशमें सकारात्मक बदलाव होगा की नही इसपर चर्चा करनी है तो हमें पहले देशकी पुरानी शिक्षा निती और शिक्षा क्षेत्रका इतिहास पर कुछ बातोंपर संवाद करना अनिवार्य है |
पुरानी शिक्षा नितीसे देशकी कुछ भी प्रगती हुई नही, ऐसा मानना मैं गलत समझता हूँ | देशमे हरित क्रान्ती, धवल क्रान्ती हुई इसिलीए तो देश कृषी एवं दुध और फलोत्पादान क्षेत्रमे स्वावलंबी बना है | उद्योग, उर्जा, दवायें तथा विज्ञान- तंत्रज्ञान, अणू-परमाणू तथा अवकाश का अभ्यास इत्यादी क्षेत्रमे भी अपने देशने काफी अच्छी प्रगती कियी
है | लेकीन अपने देशकी प्रगतीकी अन्य देश जो अपने देशके बाद स्वतंत्र हुये उनकी प्रगतीसे तुलना करें तो हम जरूर पिछे है | इसके कारन बहूत है, लेकीन प्रमुख रूपसे देखा जायें तो देशकी जनसंख्या, नागरिकोंकी मानसिकता, राज्यव्यवस्थामें चलता आया भ्रष्टाचार, परिवारदी राजकीय दलकी बढती संख्या, राजकर्ताओंकी मानसिकता तथा विकासके बारेमें उनका दृष्टीकोन एवम् समर्पणताका अभाव इत्यादी कारन है | सबसे महत्त्वपुर्ण बात यह है की स्वतंत्रताके बाद हमारे देशके पाठशालाओंमे तथा महाविद्यालयोंमे, देशका इतिहासका जो Sylabus (अभ्यासक्रम ) रखा और सिखाया गया यह एक बडा कारन है |
जैसेकी उपर कहाँ है की जनसंख्या याने आबादी यह एक प्रमुख कारन है, जिससे प्रगतीकी गाडी धिमेसे चली, इसमे दो राय नही है | लेकीन यदि सरकार इस बारेमे स्वतंत्रताके बाद फौरन अभियान चलाते तो बढती जनसंख्या काबूमे रहती | लेकीन आजके युगके परिभाषामे जनसंख्या याने मनुष्यबल | (Human Resources ) यह एक प्रकारकी उद्योगक्षेत्रमें पुंजी याने Capital माना जाता है | इसिलीए बढती जनसंख्याकी वजहसे विकासपर जो कुछ विपरीत परीणाम हुआ है उसके बारेंमे अब चर्चा करना निरर्थक होगा | क्योंकी कुटुंब नियोजन का पालन अब सभी लोग करते है | पर इसका मतलब यह नही की धर्मके नामसे कोई कुटुंब नियोजनको विरोध करता रहें | इसके लिए जल्दसे जल्द समान नागरी कानून पारीत करना चाहिये | क्यों की जिस कुटुंबमे ज्यादा सदस्य होते वहाँ अन्न, वस्त्र, निवारा और शिक्षाका प्रबंध यह चार मूलभूत जरूरतोकी माँग बढती है और कमानेवाला एक ही रहेगा तो घरमे वेन्टिलेशन, शौचकी जगह, अन्न-धान्य रखनेकी जगह कम पडनेसे अस्वच्छता बढती है, जिससे बिमारीयाँ बढती है | इस संदर्भमे इस्लामी बांधव मजहबका आधार लेते है तो उन्हें भी समझाना पडेगा की नैसर्गिक संसाधन सरकरकी मालमत्ता नही है, यह सब प्रकृतीकी मालमत्ता है | रहा तिसरा कारन वह यह है की मुस्लीम बांधवकी बढती संख्यासे दुनियाके बहुत देशमें अशांतताका और हिंसाका माहोल बन गया है, जो किसी भी देशके विकासमे सबसी बडी बाधायें डालती है |
अब हम नागरिकोंकी मानसिकतापर चर्चा करेंगे | आम तौरसे किसी भी क्षेत्रके विषयपर नागरिकोंकी मानसिकता पर भूतकालका संस्कारका प्रभाव रहता है | इसका अर्थ यह है की संस्कार ही प्रगतीका मूल है | इसिलीए संस्कार का इतिहास महत्वपूर्ण है | हमारे देशके इतिहास विषयके बारेंमे जब भी चर्चा होती है , तब राजे-महाराजाओंकी हुकमत, उनकी ऐषबाजी, उनमेसें कही राजाओंकी गद्दारी और उनका पराजय इन बातोंका उल्लेख देकर समाप्त होती है | लेकीन प्राचीन कालमे हमारे देशने, साहित्य, कला, नृत्य, विज्ञान, तंत्रज्ञान, सर्जरी, स्थापथ्य, शिल्पकला, अस्त्र-शस्त्र, ज्ञानसाधना इन क्षेत्रमे अद्भूत प्रगती कियी थी | पर इस सत्यको तथा विदेशी आक्रातोंसे जिन्होंने कडवा प्रतिकार किया ऐसे राजाओं तथा क्रान्तीकारकोंके पराक्रमको इतिहास पुस्तकोंमे उचीत जगह मिली नही | इसिलीए इतिहासकी सच्चाई जाननी है तो निचे दिये हुए किताबें आप पढ सकते है |
१) " भारत- अतीत वर्तमान और भविष्य. "
लेखक- सुरेश सोनी, अर्चना प्रकाशक भोपाल,
२) " विश्वव्यापी हिंदू संस्कृती."
संपादक- डाॅ लोकेशचंद्र नचिकेत प्रकाशन, नागपूर.
३) " भारताची उज्वल विज्ञान- परंपरा,
लेखक - सुरेश सोनी अनुवाद--डाॅ क कृ
क्षीरसागर
४) " भारतीय ज्ञानाचा खजिना " लेखक - प्रकाश
पोळ स्नेहल प्रकाशन, पुणे.
इन किताबोमें वेदकालीनसे बिसवी संदियोके प्रारंभ तक भारतकी विज्ञान, संशोधन, उद्योग, धातू संपत्ती, कृषी, व्यापार, इतिहास, गणित, भूगोल, भाषा- व्याकरण, इत्यादी क्षेत्रमे हुई प्रगतीकी जानकरी मिलती है | लेकीन शालेय तथा महाविद्यालयके पाठ्यपुस्तकोंमे इस बारेमें उल्लेख भी नही है | इतिहासके बारेमे एक सिद्धांत माना जाता है ' जो जिता वही इतिहास लिखता है |' यही अनुभव हमारे देशके इतिहासके बारेंमे आता है | स्वतंत्रताके पहले अंग्रेज शासनने देशका इतिहासकी रचना और पुनर्लेखन इस तरह बनाया की अपने विद्यार्थार्योंमे देशकी प्राचीन संस्कृतीके प्रती अविश्वास तथा उदासिनता पैदा हो |
ऐसी उदासिनता याँ अविश्वास का विवरण हमारे देशके भूतपुर्व राष्ट्रपती भारतरत्न डाॅ अब्दुल कलामने अपने India 2020 A Vision For New Millennium इस पुस्तकमे दिया है | भारत महाशक्ती होनेकी संभावना होते हुए भी बना क्यो नही इसपर अपना अनुभव बताते समय डाॅ कलामजी कहते है " मेरे घरमे दिवार पर एक कॅलेन्डर टँगा है | इस बहुरंगी सुंदर कॅलेन्डर मे सैटेलाइटके द्वारा युरोप, आफ्रीका आदि महाद्वीपोंके खीचे हुयें चित्र छपें है और यह कॅलेन्डर जर्मनीमे छपाया था | यह चित्र देखकर मेरे घरमें कोई आता था तब वह इस चित्रको देखकर गौरव करता था | और जब मैं उसे कहता था की यह कॅलेन्डर जर्मनीमे छापा है | यह सुनते ही उससे चेहरेपर आनंदके भाव आते थे और बडे उत्साहसे कहता था " सही बात है | जर्मनी की बात ही कुछ और है | उसकी टेक्नाॅलाॅजी बहूत आगे बढी है |" और जब मै उसे कहता था की "यह चित्र जर्मनीने छपाया है लेकीन यह सब चित्र खिंचे है भारतीय सॅटेलाईटने " तब दुर्भाग्यसे किसी भी व्यक्ती के चेहरेपर मुस्कारहट दिखायी नही पडी | " डाॅ कलाम आगे कहते है की " जब मै चित्र नजदीक रखकर दिखाता था तब छोटे अक्षरोंमे ' भारतीय सॅटेलिटके सौजन्यसे ' इस वाक्यको पढते है तब भी इस सत्यके बारेंमे इनकी प्रतिक्रीया रहती है ' शायद हो सकता है | ' भारतरत्न डाॅ अब्दुल कलामने अपने उस किताबमे इस तरह चार अनुभव विस्तारसे दिये है | इस लेखके विस्तारके भयसे यहाँ नही देता हूँ |
भारतरत्न डाॅ कलामजीने भारतवासीयोंकी मानसिकता जो अनुभव कथन किए है इसका कारन हम ढूढनेका प्रयास करें तो हमें इसवी सन 1835 तक पिछे जाना होगा | उस समय भारतमें ब्रिटीशकी हुकमत थी | अपनी सत्ता लंम्बे समयतक टिक पाये तो भारतकी शिक्षा व्यवस्थाको तोडना चाहिये और यहाँ शिक्षाका माध्यम अंग्रजी करना होगा | ऐसी कल्पना इंग्लडके संसदमे लाॅर्ड मेकाॅले नामके अंग्रेजी विद्वानने सादर कियी और इंग्लडके तत्कालीन सरकारने उसे ग्रीन सिग्नल दिया | अपने देशके इतिहासमे सबसे बडा खलनायक लार्ड मेकाॅले ही है | लार्ड मेकाॅलेने देशकी शिक्षा व्यवस्था पुरी उखाड दियी | उन्होने अपनी देशकी गुरूकूल व्यवस्था तोड दियी | संस्कृत भाषा अभ्यासक्रमसे हटाई , संस्कृत भाषामे कृषी पद्धत, बिमारी चिकीत्सा, विज्ञान, उद्योग, स्थापस्त्य, साहित्य, शिल्पकला चित्रकला, गायन-संगीत, लगभग जीवनके हर क्षेत्रके जो ग्रंथ थे उन्हे हटाया गया | जीवनके हर क्षँत्रमें इंग्लड और तथा पश्चीमे देश कैसे आगे है और भारत कितना पिछडा है ऐसी भारतवासियोंकी मानसिकता तैयार कियी | आज ही हम इस मानसिक गुलामीको नष्ट करनेमे सफल नही हो सके | क्योंकी स्वतंत्रताके बाद हमने अंग्रजी माध्यमोकीं शालाये हटाये नही | प्राथमिक से महाविद्यालयीनकी मास्टर डिग्रीतक पाठ्यकिताबोंका निर्माण (Text Books ) करनेकी जिम्मेदारी साम्यवादी और समाजवादी विचारवंतोंपर सौंपी गयी | उन्होंने अपने राजनैतीक फायदा के लिए,लार्ड मेकाॅलेने रचाई हुई शिक्षा नीती चालू रखी | अपने भूमीपर एक राष्ट्र और एक संस्कृती अस्तीत्वमे थी | इस सत्यको अच्छी तरहसे पेश किया हुआ एक किताब मैने पढा है | वह किताब भारतीय विचार साधना पुणे ने प्रकाशित किया है | उसक नाम है, 'विविधतातून एकता | ' इस किताबमे भारतके सभी प्रातीय भाषाओंके समान अर्थ है ऐसे मुहाँवरोंका जिक्र है | भारतके प्राचीन साहित्य, इतिहास, त्योहारकी पंरपंरा और उसकी पिछेकी भावना कैसी एक इन सबकी पुष्टी कियी है | विविधतामे एकता का प्रतिक के दो महान सांस्कृतिक ग्रंथ लगभग देशके सभी प्रान्तिय भाषामे है उनका नाम है रामायण और महाभारत | लेकीन सत्ताधारी राजनैतिक दल ने इस सत्यको कभी स्विकारा ही नही | अपने देशपर तुर्क, अफगाण, मध्य-पुर्व देश मोंगल और युरोपियन देशोंने तलवार और तोफों जैसे शस्त्रोंके ताकदपर देशको लुटा, हमारे मंदिरे तोडवायी, अपने माता-बहनोंपर अत्याचार किया और जबरन धर्मातंर करवाया और अपने मनमानीसे राज किया | इसी इतिहासके आधारपर स्वतंत्रताके बाद साम्यवादी और समाजवादी विचारवंतोने भारत पराजीत हुये लोगोंका देश ऐसी प्रतिमा बनाई | लेकीन हिंदु राजे-महाराजाओंने आक्रस्तोंकोंसे समय समयपर अपने पराक्रमके बलपर जबरदस्त सामना किया था, इसकी जानकारी छुपाकर इतिहास विषयका सिलॅबस बनाया | इतना ही नही, तो इन विचारवंतोने अंग्रेज हुकमतके कालमें लार्ड मेकाॅलेने बनायी हुई शिक्षा नितीको बढावा दिया | लाॅर्ड मेकाॅलेने भारत इस नामका देश अस्तीत्वमे नही था, और यहाँके लोग विचार और आचारणमे अप्रगत थे, अंधश्रद्धालू, मागास थे, ऐसी घृणा पैदा कियी, वह आजही अपने समाजमे मौजूद है |
वहीं साम्यवादी और समाजवादी विचारवंत, भाजपेतर राजनैतिक पार्टीयोंके नेतागण, और कुछ प्रसारमाध्यमें पुरोगामी और उदारमतवादीका नकली झेंडा लेकर छ सालसे जनताको गुमराह करके केंद्र सरकारके खिलाफ झुठे आंदोलन छेड रहे है | यहीं वह लोग है जिन्होंने रामायण, महाभारत जैसे घटनायें घटी नयी, ये सब बातें काल्पनिक है, ऐसे कहकर प्रभू श्रीरामका जन्मका प्रमाणपत्र खुलेआम सर्वोच्च कोर्टमे मांगा था | सच यह है की लार्ड मेकाॅलेके देशबंधु और इतने ही खलनायक समझे गये लार्ड कर्झनने ( जिन्होंने बंगालके विभाजनका फैसला लिया था) एक पार्टीमे कहा है की " जब अंग्रेज लोग जंगलमे रहते थे तब भारतमे गुरूकूल अस्तित्वमे
थे | " स्वतंत्रताके पुर्व काॅग्रेसके पहिली महिला अध्यक्षा ॲनी बेंझटने भी कहा है कि " दुनियाकी सबसे महान संस्कृती सिर्फ हिंदु संस्कृती है | दुनियाके अन्य देशोंने और संस्कृतीयोंने हिंदु संस्कृतिको अपना मार्गदर्शक मानकर सहिष्णूताका स्विकार करना जरूरी है |" दुनियामें मशहूर माने गये अमेरिकन इतिहासकार ड्युरांटने 'भारतकी संस्कृती और सभ्यता सर्वोत्तम है ' ऐसा प्रमाणपत्र दिया है |
लेकीन दुर्भाग्यवशसे स्वतंत्रताके बाद सत्ताधारी काॅग्रेस पार्टी और उसको पिछेसे समर्थन करते आयी समाजवादी, साम्यवादी, तथा प्रादेशिक पार्टींयोके नेता, विचारवंत, और मिडायांने हिंदु समाजका लगातार बुद्धीभेद करनेका षडयंत्र रचाया और २०१४ तक सफलता प्राप्त कियी | इसी वजहसे जीवनके बहूत ऐसे क्षेत्र है, जहाँ हमारा देश आज भी अन्य देशोंपर निर्भर रहता है | उसका कारन शिक्षा नितीमें समयसे चलते बदल करनेंमे हमने देर कियी है | इससे दुर्भाग्यसे हमारें यहाँ सिर्फ प्रशासकीय कामकाज देखनेवाले नोकरशहा, तथा कारकूनोंकी संख्या बढी,और उद्यमशिलता घटती गयी | जाने माने उद्योगपती भी कहते है की हमारे इंजिनियरकों भी नौकरी देनेसे पहले ट्रेनिंग देना पडता है | आज भी हमारे देशके विद्यार्थी उच्च शिक्षाके लिए विदेशमे जातें और वहाँ सेटल होते है | Human Resource को यदी हम औद्योगिक पुंजी( Capital) याँ मालमत्ता (asset) मानते है तो हमारे देशके मेरीट विद्यार्थीयोंका विदेशमें सेटल होनेसे हम कौशल्य (Talant ) खो बैठते है | नतिजा यह हुआ की हम देशकी संशोधन शक्तीको गवाँते है | इसिलीए सुरक्षाके शस्त्र,तथा तंत्रज्ञान, कई इलेक्ट्रानिक्स, इलेट्रिकल, ग्राहकोपयोंगी वस्तुऐं और कृषीमालपर प्रक्रीयासे वस्तुओंकी निर्मिती करनेंमे देश जितना सक्षम होना चाहिये था उतना हुआ नही | इसमे एक दुसरी वजह यह हैं की स्वतंत्रता संग्रामके दौरान जो स्वदेशी आंदोलन शस्त्र बना था उस शस्त्रकी स्वदेशी मुँठ निकाली गयी और अब जो आंदोलने होती है वह राजकीय हेतूसे प्रेरीत होती है | विविध मांग पर बार बार आंदोलनेसे युवा शक्ती क्षीण होती है, और सार्वजनिक मालमत्ताका करोडो का नुकसान होता है | स्वदेशी एक भाव है और दुनियाके जितने भी देश प्रगत हूये है उन्होंने अपने अपने देशकी संस्कृतीका इतिहास, अपनी भाषा, देशमें तैयार होनेवाले गृहपयोगी वस्तूयें प्रती आदर कैसा रखा जायें, यह ध्येय सामने रखकर अपनी शिक्षा निती अपनायी जिससे उन देशका उत्पादन क्षेत्र सर्वस्पर्शी और व्यापक बन गया है | इसिलीए उन देशमे वस्तुओंकी आयात कम रहती है और निर्यात बढती दिखायी देती है | आज वही विकासका मापदंड माना जाता है |
( कृपया भाग २ पढीये | )
Very good and realistic information
उत्तर द्याहटवाधन्यवाद !
उत्तर द्याहटवा