१५ जानेवारीको अपने देशमे धूमधामसे मकर संक्रान्तीका उत्सव मनाया गया | हमारे ऋषीमुनीओंने त्योहारोंकी रचना ऋतुचक्रके आधारपर बनायी है | हमारा धर्मशास्त्र कहता है,
"शरीरमाद्यम खलूं धर्मसाधनम् |"
सभी धर्मकृत्यें तथा कर्तव्य निभानेका सबसे मौल्यवान साधन अपना शरीर है | ऋतुके अनुसार हमारा आहार-विहार रहेगा, ऋतुके अनुसार सृष्टीमे पैदा हुये फल सब्जीया खाये, तो शरीर तंदुरस्त रहता है, और शरीर तंदरूस्त रहेगा तो ही धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष इन सुत्रों द्वारा हम जीवनको सफल बना सकते है | हमारे अधिकांश त्योहार देशके सभी प्रान्तोमें मनाये जाते है | थोडा बहूत कृती और नाममे फर्क हो सकता है लेकीन भावना सभीकी समान होती है | आमतौरसे सभी उत्सवके रचनाके पिछे अवतारी विभूती, पंचमहाभूते, तथा सृष्टीमे जन्म लिये हर जीव, पशू, पंछी, वनस्पतीयाॅ के प्रती कृतज्ञता प्रदान करनेकी भावना रहती है | साथही साथ कृषि, उद्योग एवं रक्षाके यंत्र, साधन और हाथीयारोओंकी पुजा और सृष्टीमे होनेवाले बदलावको हर्षसे स्वागत करनेकी भावना भी रहती है |
हमारे संस्कृतीमे आहार और विचारको बहूत महत्त्व दिया है | जैसा आहार वैसा विचार, जैसा विचार वैसा आचार और जैसा आचार वैसा जीवनको आकार या आधार यह एक शरीरविज्ञान और मनोविज्ञानका तत्व है | हेमंत ऋतुमे सभी जगह मौसम ठंडा होता है | और इस ठंडे मौसमका सामना स्निग्ध पदार्थका सेवन करनेसे हम कर सकते है, क्योंकी स्निग्ध पदार्थसे शरीरको एक उर्जा प्राप्त होती है | इसिलीए तीलके पदार्थ सेवन करनेकी पंरपंरा संक्रांती दिनपर छुरू हुई है | स्निग्धका अर्थ संवेदनशिलता, स्निग्धका अर्थ स्नेह, और स्नेहका अर्थ सिर्फ प्यार नही, प्यारके साथ निष्ठा और कर्तव्यकी मौजूदी हो | समाजबांधवोंमे एक दुसरेके साथ सहवास हो, सहमती बने, और सदाचार एवम् सहकार के आधारपर जीवनकी उन्नती हो यही तत्त्व मकर संक्रांतीका त्योहार मनाने के पिछे है |
वैसा माना जाये तो यह संक्राती-उत्सव भोगी दिनसे छुरू होता है | तामीळनाडूमें पोंगल, राजस्थानमे उत्तरावन, आसाम और ईशान्य भारतमे भोगली, ओरिसामे बिंहू, पंजाबमे लोहरी, काश्मीरमे शिशूर संक्रांत, प बंगाल पौष संक्रांत, आंध्रमे पेढ्ढा पंडूया, केरळमे मकरा विलाक्कू, इस तरह हर प्रान्तमे नाम विविध है ; प्रथायें भिन्न; मगर पंचमहाभूतोंमेसे एक महाभूत तेज जिसे सूर्यदेव कहा जाता है, उसकी पुजा-अर्चा सभी प्रांतमे संक्रांतीके दिन होती है | सूरजकी पूजा सदियोंसे हमारे यहाॅ चलती आयी है | 'विविधताओंमे एकता' यह हमारी विशेषतः है| वैसा देखा जायें तो यह सृष्टीकी भी विशेषतः है| और यह एक शाश्वत सत्य है | यही तो हमारे ऋषीमुनियोंने उपनिषद तथा स्मृती, श्रुती द्वारा कहा है | हम सुबह तेज नामक पंचमहाभूत याने सूर्यदेवको प्रणाम करें याॅ ना करें, भले हम बिस्तरमे सोते रहो, फिर भी वह बडी नम्रताके साथ अपने घरके बारीयाॅ तथा द्वारपे सुबह खडा रहता है | संक्रान्तीके दिनसे उत्तरायण का प्रारंभ होता है उत्तरायणका अर्थ सुरजका उत्तरके तरफ जानेकी छुरूआत, इस कालमे सूर्यकी रोशनी अधिक समय तक रहती है जिससे दिन-काल रातसे अधिक रहता है | आम तौरसे सूर्यकी रोशनी जितनी अधिक घंटे होती है तब सभी प्राणीमांत्राओमे उत्साह भी अधिक रहता है | हमारे धर्मशास्त्रकी मान्यता यह है की कुबेरजीका (धनके देवता) निवास उत्तर दिशामे होता है | यह भी एक कारन है, जिसके वजह उत्तरायण शुभ माना जाता है | उत्तरायण इसका अर्थ उन्नतीके ओर प्रवास | मै जब एलआयसीमे विकास अधिकारीके रूपमे जिम्मेदारी निभाता था, उस समयका एक प्रसंग आपके सामने पेश करता हू |
एक बार संक्रांतीके दिन सुबह मुझे जोगेश्वरी रहने वाले एंजटके किसी एक क्लायंटको बिमाका महत्व समझानेके लिये जाना पडा | उस क्लायंटको बिमाकी पाॅलीसी देनेमे हम सफल रहे | बादमे एजंट उसके घरके ओर चला गया और मै जोगेश्वरी स्टेशनपर आ गया | तब हमारे ब्रॅच मॅनेजर का मुझे फोन आया और बढी नम्रतासे उन्होंने दोपहर 3.30 बजे एजंटके मिटींगको संबोधन करनेकी आज्ञा दी | आखिर मॅनेजरकी आज्ञाको भला मै कैसे ठुकरा सकता हू | मैने होकार दिया | उतनेमे रेल्वेकी ओरसे अनाऊन्समेंट हुई, "कृपया ध्यान दिजीये, फ्लॅकफार्म क्रमांक एकसे बारह बजकर दस मिनिटपर बोरीवली जानेवाली गाडी आज फ्लॅटफार्म क्रमांक तिनसे जायेगी |" ट्रेन आती हुई देखी और मै ब्रीजपर चढना छुरू किया, सच बात यह की मेरी दौड चली थी | मै स्टेअरकेस चढते समय ब्रीजके एकसे बजह दो स्टेप्सको छोडता चला और फ्लॅटफार्म क्रमांक तीनपर जानेवाले ब्रीजपरसे संभालके उतरकर गाडीमे बैठा | रेलगाडीमे बैठनेके जगह मिली की हमारे विचारचक्रके गती भी छुरू होती है | थोडी देरके बाद मनमे एक विचार आया, फ्लॅटफार्म क्रमांक तीनपर उतरते समय मैने सावधानी क्यों बरसाई? गिरनेका भय? हा, गिरनेका भय ! ब्रिज चढते समय दो स्टेप्स छोडके चढा क्यूं? गिरनेका भय नही था | इससे अलावा और एक कारन था जिससे मै ब्रिज चढते समय मैनै सावधान बरताई नही थी| जबाब यह है की मुझे आत्मविश्वास था की मै तेजीसे ब्रिज चढ सकता हू | अब आत्मविश्वास कहासें आया ? चढते जाना इसका अर्थ उन्नती की इच्छा हर व्यक्तीके अंदर जन्मतः रहती है तथा जन्मजात एक विशेषता ईश्वरने मानवको दि है और वह है, किसीको भी गिरना पंसत नही है | गिरनेसे चोंट लगती है | जिंदगीमे जैसे किसी दुर्घटनाके वजह शरीरके किसी भागको चोट लगती है, वैसेही वैचारिक दृष्टीसे भी हमारा पतन हो तब हमारे मनको गहरी चोट पहूंचती है | किसी दृष्कृत्य से अपने चारित्र्यपर डाग होता है | आर्थिक नुकसान हो तो समाजमे हमें अपमानित होनेके अनुभव झेलने पडते है | ' जिस देशमे गंगा बहती है ' इस फिल्ममे शैलेंद्रने लिखा हुआ और स्वर्गीय मुकेशजीने गाया हुआ एक गीत है, 'आ अब लौट चले ' उसके पहले चरणकी पंक्तीया कुछ ऐसी है,
आ अब लौट चले, आ अब लौट चले,
नयन बिछायें, बाहें पसारे
तुझको पुकारे देश तेरा, आजा रेऽऽऽऽ || धृ ||
कहते है सिधी राहपे चलना,
देखके उलझन बचके निकलना |
कोई ये चाहे, माने ना माने,
बहूत है मुश्कील गिरके संभालना ||
इसिलीए हर व्यक्तीको अवनती, अपयश पंसत नही आता है| उन्नतीकी चाहत हममे जन्मजात रहती है , उसे खो देनेका नही, यही तो उत्तरायणका अर्थ है | उत्तरके ओर जाना इसका मतलब प्रगतीके नये नये विक्रम पार करना है | Growth is the evidence of life. उन्नती यही जिंदगीकी पहचान | यही जिंदा रहनेका सबूत एवं प्रमाणपत्र है | इमर्सनने कहा है Run with the time. मराठी भाषाके कवीवर्य माधव ज्युलीअन कहते है ' थांबला तो संपला | बस कर्म करते रहो, कर्मयोग ही अपना प्रारब्ध तय करता है | भगवान श्रीकृष्णने गीतामे कहा है, नियतं कुरू कर्म त्वं | हमारे निजी जीवनमें शारिरीक मानसिक, वैचारिक, और आर्थिक उन्नतीको ही जीवनकी सार्थकता मानी गयी है | बढोत्तरी होनी हो, तो सुरजके अविरत रोशनी देनेके कार्यसे हम सब प्रेरीत होना जरूरी है और प्रेरीत होना यह मानवकी सहज प्रवृत्ती है | प्रागतिक विचारोंसे एवं सकारात्मक दृष्टीसे ही प्रगती होती है | गती आजके युगका मूलमंत्र है तथा प्रगती जिंदगीका नाम है| हर एक व्यक्तीमें उन्नती करनेकी इच्छा जन्मसे विराजमान होती है | हरएक नागरिककी ऐसी इच्छा इकठ्ठा करके राष्ट्रकी उन्नतीमे लगाया जाये तो राष्ट्र निश्चीत रूपसे बलवान बन सकता है | यही विचार अपने देशके सभी सामाजिक, शिक्षा, सांस्कृतिक, आर्थिक, औद्योगिक, सहकारी संस्थायें और राजनैतिक दल और प्रशासकीय स्वायस्थ संस्थाओंने आधारभूत मानना चाहीये | जीवनमे उन्नती करनी है तो अच्छा ध्येय स्विकारना है और उस ध्येयपूर्तीके लिये दिन दुना रात चौगनी मेहनत करना है |जब हमारे यहाॅ सूर्यास्त हुआ इसका मतलब सूर्यका उस दिनका कार्य खत्म नही होता है | Sunset at one place is always Sunrise at another place. इसका मतलब सुरज अपना कर्म अविरत करता है | उसी तरह हमे अविरत कार्य करनेकी प्रेरणा संक्रांतीके दिन मिलती है | मंदिरमे विराजमान भगवानका दर्शन करते समय हम जिस तरह पाच- दस मिनिट ध्यान करते है, वैसेही अपने देहमे विराजमान भगवानको देखना है तो जीवनको ध्येयसे जोडना जरूरी होता है | देह भी देवका मंदिर है | और ध्येयपुर्तीके लिये जुटके रहना यह भक्ती या प्रार्थना है | ध्येयविना देह किसी कामका नही | Without aim man is just like animal. दिवारपर लटकाई घडीमे सेल नही रहेगे तो वह घडी चलती नही है बस इसी तरह ध्येयका स्थान अपने जीवनमे रहता है | जो वक्तका फिक्र नही करता है, उसकी वक्त भी फिक्र नही करता है | कारन River can go no reverse. और दुसरा सच No man is so much rich who can bring his past back. अविरत प्रयत्न करते रहो | यशश्री देवता माला लेकर अपनी राह देख रही है | इसी सिद्धांतपर उस संक्रात दिन दोपहर 3.30 बजे एलआयसीके एजंटके मिटींगमे मैने संबोधन किया |
मकर संक्रात हर साल हमे कहती है, ' उन्नत हो जाओ ' 'गतम् न शोश्चम् |' मकर संक्राती यह संग-क्रान्ती है | एक दुसरेसे हाथ मिलाओ और कार्य करो | यह संघ-क्रांती है | आजके युगमे आसमानसे कोई भगवान हमें मदद करने आयेगा ऐसी उमीद रखना व्यर्थ है | क्यों की ऋषीमूनीओने कहा है, 'सघै शक्ती कलीयुगे |' इस वचनको स्विकार लो | संघटन भी कैसा हो ? सिर्फ शरीर रूपसे इक्कठा होना उसे संघटन नही कहा जा सकता
है | समाजबांधवमे एक ही ध्येय, एक ही राह, और एक ही भाव हो, तब वह आदर्श संघटना बनती है | ध्येय कौन सा? मेरा समाज, मेरा देश बलवान हो | राह कौनसी? जिस राहपर, सत्य और सदाचारकी सत्ता हो | भाव कौन सा ? हम सब एक है, ना कोई नीच ना कोई उच्च | हम सब भारतमाताके पुत्र | किसीने कहा है , Progress of the nation is far less depend upon form of it's institution rather than character of it's own men." किसी भी देशकी उन्नती, प्रगती, वहाॅ किस तरह की राज्यप्रणाली है , कौनसा राजनैतिक दल सत्तामे है, या कौनसी विचारसरणी राज करती है इससे उस देशके लोगोंके चारित्र्यपर अधिक निर्भर रहती है | चारित्र्यवान बनना है तो प्रथम अनुशासनताका व्रत लेना पडता है सृष्टीमे अनुशासनता हर पल हर पग पर दिखती है | उसे निसर्ग चक्र कहे या निसर्गके नियम (Laws of Nature) कहो, उसमे बिना छेडछाड करके मानव अपनी जीवनशैली अपनाता, तो अतीवृष्टी, अकाल, प्रदुषण, ग्लोबल वार्मीग जैसी आपत्तींया हमें झेलनी ना पडती | महात्मा गांधीजीने कहा है दुनियाके हर व्यक्तीकी जरूरते पुरी करनेकी क्षमता सृष्टीमे है पर लालच पुरी करनेकी नही |
हर साल संक्रांती यही संदेश लेकर आती है | नये नये पोंधे लगाकर पर्यावरण कार्यमे सामुहीक रूपसे जुटना है | यह भी एक संग-क्रान्ती
है | संक्राती याने सज्जन शक्तीकी क्रान्ती | समाजमे सज्जन शक्ती बढे ; समाजमे एकताका भाव रहे ; और देशका विकास हो | लेकीन कुछ राजनैतिक दल सिर्फ व्होटोंकी चाहतमे समाजको विभाजित करते है, युवकोंको भ्रमित करके आंदोलने करवाते है, सार्वजनिक मालमत्ता तोडते है | गुंडागर्दी करना यही ध्येय सामने रखकर राजनीती करनेवाले राजनेताओंकी और दलोंकी अपने देशमे कमतरता नही है | अभिव्यक्ती स्वातंत्र्यके नामसे देशके टुकडे करनेका नारा खुलेआम दिया जाता है | और ऐसे युवक मिडीयामे सितारे बन जाते है | प्रतिकुल हवामानमे देशकी सुरक्षा करनेवाले जवान ने स्वरक्षाके लिए काश्मीरमे किसी आंतकी को जहन्नतमे भेज दिया तो मानवाधिकारके नामपर उस जवानके प्रती घृणा करनेवाले विचारवंत टिव्ही चॅनेलपर बिना शर्म चिल्लाते है | उनका ऐसा व्यवहार विदेशी ताकदो और इशारेपर ही होता है | ऐसे विचारवंतको अपनी संस्कृती समझ लेनेकी इच्छा नही
है | मुझे लगता है, इस आर्टीकलमे मैने जिस फिल्मी गीतका जिक्र किया है, उसी गीतका अंतिम चरणके पंक्तीया भी सभी वामपंथीय, अलगावादी विचारवंत जो पाक, चीन जैसे देशके इशारे पर चलते है और व्हॅटिकन चर्चके इशारेपर राष्ट्रवादीयोंका द्वेष करनेवाले ख्रिस्ती धर्मगुरू और मानवाधिकारके कार्यकर्ताओंने जरूर पढना चाहीये | वह पंक्तीया ऐसी है, ----
दिलमे खुशीकी मस्त लहर है,
आंख हमारी मंझील पर है |
लाख लुभायें महल परायें,
अपना घर फिर, अपना घर है || आ अब लौट----
कोई मानो या ना मानो, सत्य यह है की विदेशी शक्तीयां हर वक्त हर पल उनके देशके हितको ही प्राधान्य देते है और देते रहेंगे, यही तो दुनियाकी रीत रही है | बिसवी सदीमे दुनियाकी राजनीतीके नक्शेपर निर्मित हुयी राष्ट्रवादकी कल्पना नष्ट होनेकी संभावना इस सदीमे तो बिलकूल दिखती नही है | इसिलीये सभी वामपंथीय विचारवंतको अपना रव्वैया बदलना होगा | मै ईश्वरसे प्रार्थना करता हू की किसी भी नागरिकको विदेशी शक्तीयोंके बहकमे आनेकी दुर्बुद्धी न दे, किसी भी नागरिकको सार्वजनिक मालमत्ताकी फोडतोड करनेकी दुर्बुद्धी न दे, और ऐसे नागरिकको मंकर संक्रातीके पर्वपर जल्दसे जल्द संग-क्रान्ती एवं संघ-शक्तीका दर्शन हो |
|| वन्दे मातरम ||
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