आजका युग आर्थिक युग माना जाता है | एक अर्थशास्त्रज्ञने कहा है, Growth is the evidence of life. शारिरीक, वैचारिक तथा आर्थिक उन्नती यह एक जिंदगीका प्रमाणपत्र माना जाता है | विकासकी परिभाषामें आर्थिक उन्नतीका भी विचार सही माना गया है | इसमें किसीको ना आपत्ती है ना तात्विक भेद है | हम सदियोंसे धनको महालक्ष्मी देवीके स्वरूप मानतें आये है | अगस्ती ऋषीने भी अपने महालक्ष्मी स्तोत्रमे धनका गौरव करते समय लिखा है,
पांडीत्यं शोभते नैव न शोभन्ते गुणाः नरे |
शिलत्वं नैव शोभते महालक्ष्मी त्वयः विना ||
एक संस्कृत श्लोक है जिसमें कहा है,
अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतो सुखम ||
शिक्षा का हेतू धनप्राप्ती के लिए होना स्वाभाविक है |लेकीन इस राहपर चलते समय अपने संस्कृतीके जीवनमुल्योंको नजरअंदाज करना यह एक बडी भूल है | मानव एक बुद्धीमान और सामाजिक प्राणी माना जाता है | इसिलीए सदियोंसे हमारें यहाँ गुरूकूल माध्यमसे शिक्षा देनेकी व्यवस्था चलती थी | ऐसे गुरूकुलमे संस्कारक्षम विचारकी दिक्षा दियी जाती थी और वह भी बचपनसे दियी जाती थी | ' संस्कारः एकमेव धनं न क्षिणं जायते ' ऐसा हमारे देशमे माना जाता था | समय बदल गया यह मान्य है और वैदिक कालकी शिक्षाप्रणाली फिर लाओ ऐसी माँग कोई करता भी नही | लेकीन शिक्षाप्रणालीसे संस्कार सिखानेका कार्यक्रमको ही उखाडके फेकनेकी बातें होती है तो ऐसे शिक्षाव्यवस्थासे भावी नागरिक सिर्फ स्वार्थी ही बनें तो उसमे आश्चर्य क्या है ? सौभाग्यसे हमारे देशको एक अच्छा संविधान मिला है, फिर भी अपना देश समस्याओंसे घेरा हुआ है |
इसका पहला और मुख्य कारन राज्यव्यवस्था है | इस सत्यको दोहरना पड रहा है | हमारें टॅलन्टेड विद्यार्थी परदेशमें क्यों सेटल होते है? राजनितीमें परिवादी दलकी संख्या क्यों बढती है? राजनिती क्षेत्रसे उच्चविभूषित युवक दूर रहना क्यों पसंद करते है ? जबाब यह है की आम विद्यार्थी यह देख रहा है, कि राजनेता बननके लिए किसी भी शिक्षापात्रताकी कंडीशन रखी नही है | स्वतंत्रताके बाद जितने राजनेताओंपर भ्रष्टाचार तथा फौजदारी गुनाह सिद्ध हुये फिर भी उन्हें चुनाव लढनेसे प्रतिबंध क्यों नही लगाया? उनके कालें कारनामोंका जिक्र इतिहासमें क्यो नही हुआ? ऐसे राजनेंतांको विद्यार्थोओंने जीवनके आदर्श एवम् आधारस्थंभ माननेकी अपेक्षा हम कैसे कर सकते है ? ' विद्या सर्वत्र पुज्यते ' ऐसे हम सदियोंसे मानते है, लेकीन जीवनके सभी क्षेत्रपर जहाँ नितीयाँ बनायी जाती है ऐसी देशकी संसदमे और राज्योंकी विधिमंडलमें जो जनप्रतिनिधी बैठते है उनमें काफी संख्यामे दागी ठहरायें गये है | इसलिए आजके पढे लिखे युवा वर्गमें राजनिती क्षेत्र तथा प्रशासन व्यवस्था प्रती उदासिनता दिखती है | देशके स्कूल तथा काॅलेजमें जो इतिहास पढाया जा रहा है, उसमें ही खोंट है | देशकें विद्यार्थीओंको अपने देशका इतिहास तो पढाया जाता है पर उसमे भारतीय वीरोंका पराक्रम, भारतीय शिल्पकला, स्थापत्यकला, वैदिक कालीन तत्त्वज्ञान, गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, सर्जरी, संगीत, नृत्य इत्यादी क्षेत्रमे जो प्रगती हुई थी उसका उल्लेख नही रखा गया | अपने यहाँ इतिहासमे तुर्की, अफगाण, मोंगल और अंग्रेज जैसे आक्रातोंका पराक्रम, उनकी राज्य चलानेकी कुवतको हर पन्नोपर गौरवपुर्वक स्थान दिया गया | भारत नामका देश अस्तित्वमे था ही नही | और भारतीय समाज एक पिछडा, अंधश्रद्धासे भरा हुआ, कायर ऐसा चित्र विद्यार्थीओंके सामने रखा गया | बचपनमे जैसा सिखाया गया वैसाही मन और बुद्धीमे समाया जाता है | मन और बुद्धीमे जैसा समाया वैसा ही आचारण होता है | भारतरत्न डाॅ कलामजीनें जो अनुभव बताये उससे आश्चर्य नही लगता है |
शिक्षामें उच्च जीवनमूल्ये और संस्कृतीको गौण स्थान दिया गया | नतिजा यह हुआ की कई विद्यार्थीओंको विदेशी संस्कृती तथा विदेशी वस्तुओंका आकर्षण बढा है | यह एक कारन है, जिससे अपने विद्यार्थीयोंमे विदेशमे सेटल होनेकी एक फॅशन बन गयी है | दुसरा कारन यह है की उच्च शिक्षा लेकर संशोधन करनेकी सुविधाओंकी देशमें कमी है | विद्यार्थीयोंमे संशोधन करनेकी क्षमताका शोध और प्रक्टीकल ज्ञान प्राप्त करनेकी सुविधायें प्राथमिक शिक्षाके दौरानमें होना चाहिये | बचपनमें बच्चोंकी ग्रहणशक्ती तेज रहती है, यह एक शरीर तथा मनो-विज्ञानसे सिध्द हुआ सत्य है | इस सत्यपर देशके शिक्षा विभागने जानबुझकर ध्यान दिया नही |
हमारे देशके विद्यमान पंतप्रधान नरेंद्र मोदीजीकी सरकार केंद्रके सत्तापर विराजमन होनेके बाद उनके सरकारकी निती हर क्षेत्रमे रिफार्म, परफार्म, और ट्रान्सफार्म इन सुत्रोंपर आधारीत रही है | नयी शिक्षा नीतीपर जो कुछ मै पढता और सूनता रहा हूँ, इससे मुझे लग रहा है की देशकी नयी शिक्षा नीती देशको आत्मनिर्भर बनानेमे मददगार साबीत हो सकती है | हमारें यहाँ जैसी दृष्टी वैसी सृष्टी ऐसा सदियोंसे माना जाता था | यह एक नैसर्गिक सिद्धांत है और श्रुती, स्मृती, उपनिषदों उस सिद्धांतके अविष्कार है | उसीको आजके युगमे संशोधन कहा जाता है | प्रॅक्टीकल करो और सिख लो, याँ सिख लो और प्रॅक्टीकल करो, जैसी कल्पना वैसी शिक्षा याँ जैसी शिक्षा वैसी कल्पना बादमे लक्ष्य तैयार होता है और जैसा लक्ष्य वैसे ही कृतीका स्वरूप रहता है | विख्यात वैज्ञानिक आर्कमेडीजनें कहाँ है की Imagination is more important than knowledge. इसका मतलब इमॅजिनेशन यह एक प्रकारसे मानवी मनकी स्वाभाविक प्रक्रीया है | इमॅजिनेशनसे भरा हुआ मन शरीरको खोज याँ संशोधनकी छलान करनेको प्रेरीत करता है |अखिल मानव समाजकी हर क्षेत्रमे जो प्रगती दिखती है, इसका सारा श्रेय हर क्षेत्रके तत्त्वज्ञ, वैज्ञानिक एवं संशोधककों ही जाता है | इसिलीए साने गुरूजी, प्राध्यापक पु ग सहस्त्रबुद्धे जैसे विचारवंतोंने अपने पुस्तकोंमे ऋषीमुनियोंको भी संशोधक इस आधुनिक शब्दसे गौरव किया है |
अब हम नयी शिक्षा नीतीका स्वरूप और उसका योगदान कैसा रहेगा इसपर संक्षिप्तमे चर्चा करेंगे |
1) नयी शिक्षा नितीसे पुरानी 10+2 के जगह 5+3+3+4 इस फार्मूलेपर निर्धारीत रहेगी | इससे यह मालूम होता है की प्री प्रायमरी शिक्षाका काल 5 सालका रहेगा | बालक उम्र 3 का होगा तभीसे शिक्षा शुरू होगी | उसमे पहले तीन साल प्री प्रायमरीकी शिक्षा और अगले 2 साल पहली और दुसरी कक्षाकी पढाई होगी | इस कालका अभ्यासक्रम पुरे देशमें NCERT द्वारा बनाया हुआ होगा | इस कालमे बालकके उपर शिक्षाका ना बोज होगा ना तणाव होगा | इस कालमे खेलना, कुदना और अन्य गतिविधीयाँपर ध्यान ज्यादा होगा जिससे बालकके बुद्धीका विकास नैसर्गिक ढंगसे हो जायेगा | मुझे लगता है बालककी कल्पना शक्तीको बढावा दिया जायेगा | इससे बालककी नैसर्गिक रूची शिक्षाके किस क्षेत्रकी है इसका प्राथमिक अंदाज आ जाता है |
2) तिसरी कक्षासे पाचवी कक्षाका काल 3 सालका रहेगा | शिक्षाका माध्यम मातृभाषामे रहेगा | मातृभाषामें शिक्षासे विद्यार्थीयोंकी विभिन्न विषयोंकी आकलन शक्ती गतीमान और पक्की बन जाती है | शिक्षा भी सहजतासे होगी | इसका मतलब पहले 5 साल और उसके बाद 3 सालकी पढाई विद्यार्जनकी एक मजबूत नींव साबीत होगी | इस कालमे बालक विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान तथा कला और ह्युमॅनिटीके ज्ञान ग्रहण करेगा |
3) षठी से आठवी कक्षतक की पढाई को मिडल स्टेज माना जायेगा, जिसमें निश्चीत विषय तथा पाठ्यक्रम होगा | इंग्लीश भाषाका अभ्यास शुरू होगा | लेकीन शिक्षाका माध्यम मातृभाषामे रहेगा | इंग्लीश भाषाकी अनिवार्यता नही होगी | इससे सभी विषयकी समज पक्की होगी | षठी कक्षासे काॅम्युटर कोडींगका अभ्यास रहेगा | षठी कक्षासे क्षात्रोंको व्यवसायसायिक अभ्यासक्रम होगा जिसके लिए सरकार द्वारा इन्टर्नशिप भी मिलेगी | इससे जिन विद्यार्थीयोंमे जन्मतः वस्तु या कला की निर्मितीकी समज हो उनकी सृजनशिलता बढाने लिए प्रोत्साहीत किया जायेगा |
4) नववीसे बारावी तक की पढाई दो सेमिस्टारकी होगी | इसका मतलब पहले छ मासके पढाईकी परीक्षा देने पडेगी | और अगले छ माह की पढाईकी परीक्षा वर्ष पुरा होनेपर होगी | इसका मतलब सालके अंतिम एक माह पहले अभ्यास करनेकी तथा रट्टा लगाकर परीक्षा उत्तीर्ण करनेकी कुप्रथा बंद होगी | दोन सेमिस्टरके परीक्षाके मार्कको जोडा जायेगा | नियमित अभ्यास करनेकी आदतको बढावा देनेमे इस दो सेमिस्टर की व्यवस्था काफी हदतक मददगार रह सकती है और विषयकी जानकारी बढेगी | इस स्टेजपर भी विद्यार्थियोंको हिन्दी तथा अंग्रेजी माध्यमसे परीक्षा देनेका पर्याय खुला रहेगा | इस कालका रिपोर्ट कार्ड बनाते समय अन्य सामाजिक, कला, और तंत्र विज्ञान जैसे गतिविधीयोंगे मार्क्स जोडा जायेंगे | इससे विद्यार्थीओंमे समयके साथ चलनेकी आदत तो बनेगी, और साधारण क्षमताके विद्यार्थी पिछे नही रहेंगे |
5) अब हम नयी शिक्षा नितीमे महाविद्यालयीन शिक्षाका स्वरूप कैसा है उससे सकारात्मक बदलावकी क्षमताकी आशा रख सकते है क्या, इसपर नजर डालेंगे |
i) महाविद्यालयीन शिक्षामे प्रवेश लेनेसे पहले एक सामायिक टेस्ट जिसे कॅट कहाँ जाता है वह अनिवार्य होगी और बारावीकी परीक्षाके गुण और कॅटमे मिलें हुये गुण जोडकर प्रवेश दिया जायेगा |
ii) इस स्टेजके शिक्षामे महत्वपूर्ण बदल यह है की कोई भी विद्यार्थी किसी भी स्टेजपर पढाई को छोडते है तो भी उसपर सिस्टीमसे बाहर जानेकी नौबत नही होगी | क्योंकी उसको हर स्टेजकी पढाईका सर्टिफीकेट मिलेगा जिससे वह नौकरी तथा छोटा-मोठा उद्योग शुरू कर सकता है |
iii) पहले सालके बाद सर्टिफिकेट, दुसरे सालके बाद डिप्लोमा, तिसरे सालके बाद बॅचलर डिग्री और चौथे सालके बाद संशोधक सर्टिफिकेट मिलेगा |
iv) इस स्टेजको मल्टी एन्ट्री और मल्टी एक्झीट कहा जायेगा | इसका मतलब जो आर्टस् सायन्स तथा काॅमर्स ऐसे जो तीन प्रमूख स्ट्रीम है वह नही रहेगे | विद्यार्थी अपने पंसदका कोई भी विषय पढाईके लिए ले सकेंगा | और हरेक स्टेजपर ॲकॅडॅमिक बँक ऑफ क्रेडीट की व्यवस्था होगी जिससे विद्यार्थ्योकी प्रात्यक्षिक गुणवत्ताका मापन किया जायेगा, जिससे विद्यार्थीयोंका शिक्षा प्रवास आत्मनिर्भरके रास्तेपरसे होगा, और देश उत्पादन क्षेत्रमे आत्मनिर्भर बन सकेगा | लेकीन -----
शिक्षा निती कितनी भी अच्छी रहें, लेकीन उसे कार्यान्वित करनेमे जो कठीनाई रहती है उन्हें निपाटनेका कार्य तो शासन व्यवस्थाको करना है | आम तौरसे अनुभव ऐसा है की देशके नोकरशहा वर्गमें जो सालोसाल शितिलता दिखायी पडती है उसे कैसा दुर किया जायेगा? शिक्षा क्षेत्रमें निजी शिक्षा संस्थाओंकी तथा निजी क्लासेस चलानेवाले अध्यापक तथा प्राध्यापक वर्गमे चलती आयी व्यापारकी मानसिकता एवम उनकी मक्तेदारीको कैसा निपटा जायेगा ? राजनितीसे प्ररीत जो विद्यार्थी संघटन है उनके रव्वैयामे सुधार कौन और कैसा लायेगा? केंद्र सरकार और राज्योंके सरकरोंमे चलता हुआ बखेडा तथा सभी क्षेत्रमे प्रान्तीय अस्मिताकी दौडको कैसे और कब रोका जायेगा? आज दाक्षिणात्य प्रदेश जैसे की केरल, तामिलनाडू, कर्नाटक, तेलंगण, आन्ध्रकी मातृभाषा अलग है | और कोई भी इन प्रदेशका नागरिक दुसरे प्रदेशकी भाषा जानता नही तो भी राष्ट्रभाषा हिंदीको इन सभी प्रान्तोका विरोध है | विसंगती यह है की इन चारो प्रदेशके लोग परस्पर संवाद करते है तब हिन्दी भाषाका ही उपयोग करते है | राष्ट्रभाषाके प्रती उदासिनता जो दिखती है वह शायद राजनितीसे प्ररीत है उसपर ऐलाज क्या है ? इस संदर्भमे गुरूदेव रविंद्रनाथ टागोरजीने उनका विचार एक जगह वार्तालापमें दिया है है, उसे आपके सामने पेश करता हूँ |
" आधुनिक भारतकी संस्कृती एक विकसित शतदल कमल के समान है ; जिसका एक- एक दल, एक एक प्रान्तीय भाषा और साहित्य है ; किसी एक को मिटा देनेसे उस कमलकी शोभा नष्ट हो जायेगी | हम चाहते है कि भारतकी सब प्रान्तीय बोलीयां जिनमे सुन्दर साहित्य सृष्टी हुई है , अपने अपने घरमें (प्रान्तमे) रानी बनकर रहे, प्रान्तके जन-गण की हार्दिक चिन्ताकी प्रकाश भूमिस्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओंके हार की मध्य मणि हिंद भारत-भारती होकर विराजती रहै | "
आर्य --द्रविड विवाद, प्रान्तीय भाषा- सिमा विवाद, प्रान्त-पानी विवाद, जात-पातका भेद, शिक्षाकी बढती फीस, आरक्षण माँगनेकी दौड और रखनेके लिए हिंसा, शहर और ग्रामीण इलाखेंमे शिक्षा क्षेत्रके मुलभूत सुविधाओंमे चलता आया हुआ फर्क आदि रोगोंसे त्रस्त हुआ शिक्षा क्षेत्रपर जालीम उपायकी योजना हो और उसे कार्यान्वित होनेके बाद हम उमीद कर सकते है, की नई शिक्षा नितीसे देशके शिक्षा संस्थाओंमे गुणवत्ता बढानेमे हम कामयाब होगे | शिक्षा क्षेत्रमे चलता आया आरक्षणके मैं खिलाफ नही हूँ लेकीन बहुत लम्बे समय तक ऐसा आरक्षण रखना यह निसर्गके नियम से खिलाफ है ऐसी मेरी निजी सोंच है | इसके बारेंमे मै एक कथा नीचे पेश करता हूँ जिससे यह साबीत होता है की मानव एक प्राणी है और हर प्राणीओंकी नेसर्गिक क्षमता हर क्षेत्रमें विभिन्न स्तर की होती है | मेरी राय यह है की EBC याने आर्थिक रूपसे पिछडे है उनको आरक्षण याँ स्काॅलरशिप जैसी नितीको अपनाया जाये तो राजनिती हेतूसे प्रेरीत आंदोलन छेडनेकी राजनैतिक दलोंकी उर्मीको दबाया जा सकता है |
कहीं एक रास्तेसे एक आदमी अपने कार्यालयसे अपने घर वापस जा रहा था तब उसकी नजर एक पेडपर गयी | पेंडपर एक छोटा पंछी अपने घरसे बाहर आनेकी बहूत कोशीश कर रहा था | लेकीन उसे बाहर आनेमें सफलता नही मिलती थी | बार बार वह पंछीकी फडफडकी आवाज शुरू थी | काफी समय गया फिर भी वह पंछी बाहर आता नही ऐसा देखकर उस आदमीको पंछीकी दया आयी | वह पेडपर चढता है और पंछीके घरसे थोडा कचरा निकालकर घरका दरवाजा चौडा किया और समधान वृत्तीसे पेडसे निचे उतरता है | अब वह आदमी, छोटा पंछी बाहर आकर आसमानमे अपनी पहली उडान देखनेके लिए उत्सुक हुए था | थोडी देरके बाद वह पंछी बाहर आता है और आसमान पर नजर डाली और फिर घरमे अंदर गया | ऐसा बार बार वह पंछी करता रहा और आसमानपर नजर डालकर फिर अंदर जाता था | यह सिलसिला चलता ही रहा | वह आदमी निराश होने लगा | तब रास्तेसे एक संन्यासी आया और उसने देखा यह आदमी बार बार पेडके उपर क्या देखता है, यह जाननेकी उत्सुकतासे उसने आदमीको पुछा, आप पेडपर क्या देख रहें हो? तब आदमीने बताया, " साधू महाराज, मुझे उस पंछीके दया आयी और उसे आसमानमे उडान सहज सुलभ हो इसलिए पेडपर चढकर मैने उसके घरका दरवाजा चौडा करके दिया | पर वह छोटा पंछी बार बार बाहर आता है, उपर आसमान देखता है और फिर अंदर चला जाता है | ऐसा क्यों हो रहा है? तब साधु महाराजने जबाब दिया, बेटा, "अब वह पंछीका बच्चा कभी उडान मार नही सकेगा |" तब उस आदमीको झटका लगा और साधूसे पुछा 'ऐसा क्यों ?" तब साधू महाराजने जबाब दिया,
" बेटा कोई भी पंछी जन्म लेते समय उडान शक्ती लेके आता है | उसके माता-पिता भी उडानेके लिए उसे मदत नही करते है | आसमानमे उडान लेनेके लिए बार बार कोशीशके बाद वह पंछी खुदके शक्तीसे उडान मारनेमे यशस्वी होनेवाला था, लेकीन तुमने उस पंछीकी नैसर्गिक उडान शक्तीको नष्ट किया | वह आदमी साधूका जबाब सुनकर दुःखी मनसे घर गया |
मैं आरक्षणके खिलाफ नही हूँ लेकीन प्रकृतीके नियमोंका उल्लंघन कितने सालतक करते रहेगें | अब नयी शिक्षा निती आयी है उसमे विद्यार्थीओंकी स्वाभाविक वृत्तीको जोखा जायेगा और उस तरह शिक्षा देनेकी व्यवस्था होनेके बाद विद्यार्थी सिर्फ नौकरी करते दिखेंगे नही, तो, विविध क्षेत्रके इन्टरपिनर्स बनेंगे ऐसी आशा करता हूँ | हम कामयाब होगे यह स्पुर्तीदायक गीत सिर्फ छोटे छोटे विद्यार्थीयोंको गानेके लिए नही है | देशका हर राजकीय नेता, नोकरशहा, कर्मचारी, कामगार, प्राध्यापक-अध्यापक, शिक्षा संस्थाका मालीक, हर विद्यार्थी, हर नागरिक ' हम कामयाब होगे ' इस धूनको कृतीमें लानेके लिए तैयार होनेकी जरूरत
है | कार्य कठीण है लेकीन असंभव नही है, यह हम सब जानते है | जब शिक्षा क्षेत्र अध्यापक ओरियन्टेड रहेगा, जब अध्यापक वर्ग विद्यार्थी ओरियन्टेड रहेगा, और अंतमे हर पालक अपने बालक ओरिन्टेड रहेगा तो नई शिक्षा नितीको सफल बनानेमे हम कामयाब होगे ऐसा विश्वास प्रगटकर मै विराम करता हूँ |