मंगळवार, ५ जानेवारी, २०२१

राष्ट्रीय शिक्षा निती : आत्मनिर्भरताकी शाश्वती - भाग (२)


आजका युग आर्थिक युग माना जाता है | एक अर्थशास्त्रज्ञने कहा है, Growth is the evidence of life. शारिरीक, वैचारिक तथा आर्थिक उन्नती यह एक जिंदगीका प्रमाणपत्र माना जाता है | विकासकी परिभाषामें आर्थिक उन्नतीका भी विचार सही माना गया है | इसमें किसीको ना आपत्ती है ना तात्विक भेद है | हम सदियोंसे धनको महालक्ष्मी देवीके स्वरूप मानतें आये है | अगस्ती ऋषीने भी अपने महालक्ष्मी स्तोत्रमे धनका गौरव करते समय लिखा है,

    पांडीत्यं शोभते नैव न शोभन्ते गुणाः नरे |

    शिलत्वं नैव शोभते महालक्ष्मी त्वयः विना ||

एक संस्कृत श्लोक है जिसमें कहा है,
    अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |
    अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य  कुतो सुखम ||
शिक्षा का हेतू धनप्राप्ती के लिए होना स्वाभाविक है |लेकीन इस राहपर चलते समय अपने संस्कृतीके जीवनमुल्योंको नजरअंदाज करना यह एक बडी भूल है | मानव एक बुद्धीमान और सामाजिक प्राणी माना जाता है | इसिलीए सदियोंसे हमारें यहाँ  गुरूकूल माध्यमसे शिक्षा देनेकी व्यवस्था चलती थी | ऐसे गुरूकुलमे संस्कारक्षम विचारकी दिक्षा दियी जाती थी और वह भी बचपनसे दियी जाती थी | ' संस्कारः एकमेव धनं न क्षिणं  जायते '  ऐसा हमारे देशमे माना जाता था | समय बदल गया यह मान्य है और वैदिक कालकी शिक्षाप्रणाली फिर लाओ ऐसी माँग कोई करता भी नही | लेकीन शिक्षाप्रणालीसे संस्कार सिखानेका कार्यक्रमको ही उखाडके फेकनेकी बातें होती है तो ऐसे शिक्षाव्यवस्थासे भावी नागरिक सिर्फ स्वार्थी ही बनें तो उसमे आश्चर्य क्या है ? सौभाग्यसे हमारे देशको एक अच्छा संविधान मिला है, फिर भी अपना देश समस्याओंसे घेरा हुआ है |

इसका पहला और मुख्य कारन राज्यव्यवस्था  है | इस सत्यको दोहरना पड रहा है | हमारें टॅलन्टेड विद्यार्थी परदेशमें क्यों सेटल होते है?  राजनितीमें परिवादी दलकी संख्या क्यों बढती है? राजनिती क्षेत्रसे उच्चविभूषित युवक दूर रहना क्यों पसंद करते है ? जबाब यह है की आम विद्यार्थी यह देख रहा है, कि राजनेता बननके लिए किसी भी  शिक्षापात्रताकी कंडीशन रखी नही है | स्वतंत्रताके बाद जितने राजनेताओंपर भ्रष्टाचार तथा फौजदारी गुनाह सिद्ध हुये फिर भी उन्हें चुनाव लढनेसे प्रतिबंध क्यों नही लगाया?  उनके कालें कारनामोंका जिक्र इतिहासमें क्यो नही हुआ? ऐसे राजनेंतांको विद्यार्थोओंने जीवनके आदर्श एवम् आधारस्थंभ माननेकी अपेक्षा हम कैसे कर सकते है ? ' विद्या सर्वत्र पुज्यते ' ऐसे हम सदियोंसे मानते है, लेकीन जीवनके सभी क्षेत्रपर जहाँ नितीयाँ बनायी जाती है ऐसी देशकी संसदमे और राज्योंकी विधिमंडलमें जो जनप्रतिनिधी बैठते है उनमें काफी संख्यामे दागी ठहरायें गये है | इसलिए आजके पढे लिखे युवा वर्गमें राजनिती क्षेत्र तथा प्रशासन  व्यवस्था प्रती उदासिनता दिखती है | देशके स्कूल तथा काॅलेजमें जो इतिहास पढाया जा रहा है, उसमें ही खोंट है | देशकें विद्यार्थीओंको अपने देशका  इतिहास तो पढाया जाता है पर उसमे भारतीय वीरोंका पराक्रम, भारतीय शिल्पकला, स्थापत्यकला, वैदिक कालीन तत्त्वज्ञान, गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, सर्जरी, संगीत, नृत्य इत्यादी क्षेत्रमे जो प्रगती हुई थी उसका उल्लेख नही रखा गया | अपने यहाँ इतिहासमे तुर्की, अफगाण, मोंगल और अंग्रेज जैसे आक्रातोंका पराक्रम, उनकी राज्य चलानेकी कुवतको हर पन्नोपर गौरवपुर्वक स्थान दिया गया | भारत नामका देश अस्तित्वमे था ही नही | और भारतीय समाज एक पिछडा, अंधश्रद्धासे भरा हुआ, कायर ऐसा चित्र विद्यार्थीओंके सामने रखा गया | बचपनमे जैसा सिखाया गया वैसाही मन और बुद्धीमे समाया जाता है | मन और बुद्धीमे जैसा समाया वैसा ही आचारण होता है | भारतरत्न डाॅ कलामजीनें  जो अनुभव बताये उससे आश्चर्य नही लगता है | 

शिक्षामें उच्च जीवनमूल्ये और संस्कृतीको गौण स्थान दिया गया | नतिजा यह हुआ की कई विद्यार्थीओंको विदेशी संस्कृती तथा विदेशी वस्तुओंका आकर्षण बढा है | यह एक कारन है, जिससे अपने विद्यार्थीयोंमे विदेशमे सेटल होनेकी एक फॅशन बन गयी है | दुसरा कारन यह है की उच्च शिक्षा लेकर संशोधन करनेकी सुविधाओंकी देशमें कमी है | विद्यार्थीयोंमे संशोधन करनेकी क्षमताका शोध और प्रक्टीकल ज्ञान प्राप्त करनेकी सुविधायें प्राथमिक शिक्षाके दौरानमें होना चाहिये | बचपनमें बच्चोंकी ग्रहणशक्ती तेज रहती है, यह एक शरीर तथा मनो-विज्ञानसे सिध्द हुआ सत्य है | इस सत्यपर देशके शिक्षा विभागने जानबुझकर ध्यान दिया नही |

हमारे देशके विद्यमान पंतप्रधान नरेंद्र मोदीजीकी सरकार केंद्रके सत्तापर विराजमन होनेके बाद उनके सरकारकी निती हर क्षेत्रमे  रिफार्म,  परफार्म, और ट्रान्सफार्म  इन सुत्रोंपर  आधारीत रही है | नयी  शिक्षा नीतीपर जो कुछ मै पढता और सूनता रहा हूँ, इससे मुझे लग रहा है की देशकी नयी शिक्षा नीती देशको आत्मनिर्भर बनानेमे मददगार साबीत हो सकती है | हमारें यहाँ जैसी दृष्टी वैसी सृष्टी ऐसा सदियोंसे माना जाता था | यह एक नैसर्गिक सिद्धांत है और श्रुती, स्मृती, उपनिषदों उस सिद्धांतके अविष्कार है | उसीको आजके युगमे संशोधन कहा जाता है | प्रॅक्टीकल करो और सिख लो, याँ सिख लो और प्रॅक्टीकल करो, जैसी कल्पना वैसी शिक्षा याँ जैसी शिक्षा वैसी कल्पना बादमे लक्ष्य तैयार होता है और जैसा लक्ष्य वैसे ही कृतीका स्वरूप रहता है | विख्यात वैज्ञानिक आर्कमेडीजनें  कहाँ है की Imagination is more important than knowledge. इसका मतलब इमॅजिनेशन यह एक प्रकारसे मानवी मनकी स्वाभाविक प्रक्रीया है | इमॅजिनेशनसे भरा हुआ मन शरीरको खोज याँ संशोधनकी छलान करनेको प्रेरीत करता है |अखिल मानव समाजकी हर क्षेत्रमे जो प्रगती दिखती है, इसका सारा श्रेय हर क्षेत्रके तत्त्वज्ञ, वैज्ञानिक एवं संशोधककों ही जाता है | इसिलीए साने गुरूजी, प्राध्यापक पु ग सहस्त्रबुद्धे जैसे विचारवंतोंने अपने पुस्तकोंमे ऋषीमुनियोंको भी संशोधक इस आधुनिक शब्दसे गौरव किया है |

अब हम नयी शिक्षा नीतीका स्वरूप और उसका योगदान कैसा रहेगा इसपर संक्षिप्तमे चर्चा करेंगे |

1) नयी शिक्षा नितीसे पुरानी 10+2 के जगह 5+3+3+4 इस फार्मूलेपर निर्धारीत रहेगी | इससे यह मालूम होता है की प्री प्रायमरी शिक्षाका काल 5 सालका रहेगा | बालक उम्र 3 का होगा तभीसे शिक्षा शुरू होगी | उसमे पहले तीन साल प्री प्रायमरीकी शिक्षा  और अगले 2 साल पहली और दुसरी  कक्षाकी पढाई होगी | इस कालका अभ्यासक्रम पुरे देशमें  NCERT द्वारा बनाया हुआ होगा | इस कालमे बालकके उपर शिक्षाका ना बोज होगा ना तणाव होगा | इस कालमे खेलना, कुदना और अन्य गतिविधीयाँपर ध्यान ज्यादा होगा जिससे बालकके  बुद्धीका विकास नैसर्गिक ढंगसे हो जायेगा | मुझे लगता है बालककी कल्पना शक्तीको बढावा दिया जायेगा | इससे बालककी नैसर्गिक रूची शिक्षाके किस क्षेत्रकी है इसका प्राथमिक अंदाज आ जाता है | 

2) तिसरी कक्षासे पाचवी कक्षाका काल 3 सालका रहेगा | शिक्षाका माध्यम मातृभाषामे रहेगा | मातृभाषामें शिक्षासे विद्यार्थीयोंकी विभिन्न विषयोंकी आकलन शक्ती गतीमान और पक्की  बन जाती है |  शिक्षा भी सहजतासे होगी | इसका मतलब पहले 5 साल और उसके बाद 3 सालकी पढाई विद्यार्जनकी एक मजबूत नींव साबीत होगी | इस कालमे  बालक विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान तथा कला और ह्युमॅनिटीके ज्ञान ग्रहण करेगा |

3) षठी से आठवी कक्षतक की पढाई को मिडल स्टेज माना जायेगा, जिसमें निश्चीत विषय तथा पाठ्यक्रम होगा | इंग्लीश भाषाका अभ्यास शुरू होगा | लेकीन शिक्षाका माध्यम मातृभाषामे रहेगा | इंग्लीश भाषाकी अनिवार्यता नही होगी | इससे सभी विषयकी समज पक्की होगी |  षठी कक्षासे काॅम्युटर कोडींगका अभ्यास रहेगा | षठी कक्षासे क्षात्रोंको व्यवसायसायिक अभ्यासक्रम होगा जिसके लिए सरकार द्वारा इन्टर्नशिप भी मिलेगी | इससे जिन विद्यार्थीयोंमे जन्मतः  वस्तु या कला की निर्मितीकी समज हो उनकी  सृजनशिलता बढाने लिए प्रोत्साहीत किया जायेगा |

4) नववीसे बारावी तक की पढाई दो सेमिस्टारकी होगी | इसका मतलब पहले छ मासके पढाईकी परीक्षा देने पडेगी |  और अगले छ माह की पढाईकी परीक्षा वर्ष पुरा होनेपर होगी | इसका मतलब  सालके अंतिम एक माह पहले अभ्यास करनेकी तथा रट्टा लगाकर परीक्षा उत्तीर्ण करनेकी कुप्रथा बंद होगी |  दोन सेमिस्टरके परीक्षाके मार्कको जोडा जायेगा | नियमित अभ्यास करनेकी आदतको बढावा देनेमे इस दो सेमिस्टर की व्यवस्था काफी हदतक मददगार रह सकती है और विषयकी जानकारी बढेगी | इस स्टेजपर भी विद्यार्थियोंको हिन्दी तथा अंग्रेजी माध्यमसे परीक्षा देनेका पर्याय खुला रहेगा | इस  कालका  रिपोर्ट कार्ड बनाते समय अन्य सामाजिक, कला, और तंत्र विज्ञान जैसे गतिविधीयोंगे मार्क्स जोडा जायेंगे | इससे विद्यार्थीओंमे समयके साथ चलनेकी आदत तो बनेगी, और साधारण क्षमताके विद्यार्थी पिछे नही रहेंगे | 

5) अब हम नयी शिक्षा नितीमे महाविद्यालयीन शिक्षाका स्वरूप कैसा है उससे सकारात्मक बदलावकी क्षमताकी आशा रख सकते है क्या, इसपर नजर डालेंगे |

i) महाविद्यालयीन शिक्षामे प्रवेश लेनेसे पहले एक सामायिक टेस्ट जिसे कॅट कहाँ जाता है वह अनिवार्य  होगी और बारावीकी परीक्षाके गुण और कॅटमे मिलें हुये गुण जोडकर प्रवेश दिया जायेगा |

ii)  इस स्टेजके शिक्षामे महत्वपूर्ण बदल यह है की कोई भी विद्यार्थी किसी भी स्टेजपर पढाई को छोडते है तो भी उसपर सिस्टीमसे बाहर जानेकी नौबत नही होगी | क्योंकी उसको हर स्टेजकी पढाईका सर्टिफीकेट मिलेगा जिससे वह नौकरी तथा छोटा-मोठा उद्योग शुरू कर सकता है |

iii)  पहले सालके बाद सर्टिफिकेट, दुसरे सालके बाद डिप्लोमा, तिसरे सालके बाद बॅचलर डिग्री और चौथे सालके बाद  संशोधक सर्टिफिकेट मिलेगा |

iv) इस स्टेजको मल्टी एन्ट्री और मल्टी एक्झीट कहा जायेगा | इसका मतलब जो आर्टस् सायन्स तथा काॅमर्स ऐसे जो तीन प्रमूख स्ट्रीम है वह नही रहेगे | विद्यार्थी अपने पंसदका कोई भी विषय पढाईके लिए ले सकेंगा | और हरेक स्टेजपर ॲकॅडॅमिक बँक ऑफ क्रेडीट की व्यवस्था होगी जिससे विद्यार्थ्योकी प्रात्यक्षिक गुणवत्ताका मापन किया जायेगा,  जिससे विद्यार्थीयोंका शिक्षा प्रवास आत्मनिर्भरके रास्तेपरसे होगा, और देश उत्पादन क्षेत्रमे आत्मनिर्भर बन सकेगा | लेकीन -----

शिक्षा निती  कितनी भी अच्छी रहें, लेकीन उसे कार्यान्वित करनेमे जो कठीनाई रहती है उन्हें निपाटनेका कार्य तो शासन व्यवस्थाको करना है | आम तौरसे अनुभव ऐसा है की देशके नोकरशहा वर्गमें जो सालोसाल शितिलता दिखायी पडती है उसे कैसा दुर किया जायेगा? शिक्षा क्षेत्रमें निजी शिक्षा संस्थाओंकी तथा निजी क्लासेस चलानेवाले अध्यापक तथा प्राध्यापक वर्गमे चलती आयी व्यापारकी मानसिकता एवम उनकी मक्तेदारीको कैसा निपटा जायेगा ? राजनितीसे प्ररीत जो विद्यार्थी संघटन है उनके रव्वैयामे सुधार कौन और कैसा लायेगा? केंद्र सरकार और राज्योंके सरकरोंमे चलता हुआ बखेडा तथा सभी क्षेत्रमे प्रान्तीय अस्मिताकी दौडको कैसे और कब रोका जायेगा? आज दाक्षिणात्य प्रदेश जैसे की केरल, तामिलनाडू, कर्नाटक, तेलंगण, आन्ध्रकी मातृभाषा अलग है | और कोई भी इन प्रदेशका नागरिक दुसरे प्रदेशकी भाषा जानता नही तो भी राष्ट्रभाषा हिंदीको इन सभी प्रान्तोका विरोध है | विसंगती यह है की इन चारो प्रदेशके लोग परस्पर संवाद करते है तब  हिन्दी भाषाका ही उपयोग करते है | राष्ट्रभाषाके प्रती उदासिनता जो दिखती है वह शायद राजनितीसे प्ररीत है उसपर ऐलाज क्या है ? इस संदर्भमे गुरूदेव रविंद्रनाथ टागोरजीने उनका विचार एक जगह वार्तालापमें दिया है है, उसे आपके सामने पेश करता हूँ |

" आधुनिक भारतकी संस्कृती एक विकसित शतदल कमल के समान है ; जिसका एक- एक दल, एक एक प्रान्तीय भाषा और साहित्य है ; किसी एक को मिटा देनेसे उस कमलकी शोभा नष्ट हो जायेगी | हम चाहते है कि भारतकी सब प्रान्तीय बोलीयां जिनमे सुन्दर साहित्य सृष्टी हुई है , अपने अपने घरमें (प्रान्तमे) रानी बनकर रहे, प्रान्तके जन-गण की हार्दिक चिन्ताकी प्रकाश भूमिस्वरूप कविता की भाषा होकर रहे और आधुनिक भाषाओंके हार की मध्य मणि हिंद भारत-भारती होकर विराजती रहै | "

आर्य --द्रविड विवाद, प्रान्तीय भाषा- सिमा विवाद, प्रान्त-पानी विवाद, जात-पातका भेद, शिक्षाकी बढती फीस, आरक्षण माँगनेकी दौड और रखनेके लिए हिंसा, शहर और ग्रामीण इलाखेंमे शिक्षा क्षेत्रके मुलभूत सुविधाओंमे चलता आया हुआ फर्क आदि रोगोंसे त्रस्त हुआ शिक्षा क्षेत्रपर जालीम उपायकी योजना हो और उसे कार्यान्वित होनेके बाद हम उमीद कर सकते है, की नई शिक्षा नितीसे देशके शिक्षा संस्थाओंमे गुणवत्ता बढानेमे हम कामयाब होगे |  शिक्षा क्षेत्रमे चलता आया आरक्षणके मैं खिलाफ नही हूँ लेकीन बहुत लम्बे समय तक ऐसा आरक्षण रखना यह निसर्गके नियम से खिलाफ है ऐसी मेरी निजी सोंच है |  इसके बारेंमे मै एक कथा नीचे पेश करता हूँ जिससे यह साबीत होता है की मानव एक प्राणी है और हर प्राणीओंकी नेसर्गिक क्षमता हर क्षेत्रमें विभिन्न स्तर की होती है | मेरी राय यह है की EBC  याने आर्थिक रूपसे पिछडे है उनको आरक्षण याँ स्काॅलरशिप जैसी नितीको अपनाया जाये तो  राजनिती हेतूसे प्रेरीत आंदोलन छेडनेकी राजनैतिक दलोंकी उर्मीको दबाया जा सकता है |

कहीं एक रास्तेसे एक आदमी अपने कार्यालयसे अपने घर वापस जा रहा था तब उसकी नजर एक पेडपर गयी | पेंडपर एक छोटा पंछी अपने घरसे बाहर आनेकी बहूत कोशीश कर रहा था | लेकीन उसे बाहर आनेमें सफलता नही मिलती थी | बार बार वह पंछीकी फडफडकी आवाज शुरू थी | काफी समय गया फिर भी वह पंछी बाहर आता नही ऐसा देखकर उस आदमीको  पंछीकी दया आयी | वह पेडपर चढता है और पंछीके घरसे थोडा कचरा निकालकर घरका दरवाजा चौडा किया और समधान वृत्तीसे पेडसे निचे उतरता है | अब वह आदमी, छोटा पंछी  बाहर आकर आसमानमे अपनी पहली उडान देखनेके लिए उत्सुक हुए था | थोडी देरके बाद वह पंछी बाहर आता है और आसमान पर नजर डाली और फिर घरमे अंदर गया | ऐसा बार बार वह पंछी करता रहा और आसमानपर नजर डालकर फिर अंदर जाता था | यह सिलसिला चलता ही रहा | वह आदमी निराश होने लगा | तब रास्तेसे एक संन्यासी आया और उसने देखा यह आदमी बार बार पेडके उपर क्या देखता है, यह जाननेकी उत्सुकतासे उसने आदमीको पुछा, आप पेडपर क्या देख रहें हो? तब आदमीने बताया, " साधू महाराज, मुझे उस पंछीके दया आयी और उसे आसमानमे उडान सहज सुलभ हो इसलिए पेडपर चढकर मैने उसके घरका दरवाजा चौडा करके दिया | पर वह छोटा पंछी बार बार बाहर आता है, उपर आसमान देखता है और फिर अंदर चला जाता है | ऐसा क्यों हो रहा है? तब साधु महाराजने जबाब दिया, बेटा, "अब वह पंछीका बच्चा कभी उडान मार नही सकेगा |" तब उस आदमीको झटका लगा और साधूसे पुछा 'ऐसा क्यों ?"  तब साधू महाराजने जबाब दिया, 
" बेटा कोई भी  पंछी जन्म लेते समय उडान शक्ती लेके आता है |  उसके माता-पिता भी उडानेके लिए उसे मदत नही करते है | आसमानमे उडान लेनेके लिए बार बार कोशीशके बाद वह पंछी खुदके शक्तीसे  उडान मारनेमे यशस्वी होनेवाला था,  लेकीन तुमने उस पंछीकी नैसर्गिक उडान शक्तीको नष्ट किया | वह आदमी साधूका जबाब सुनकर दुःखी मनसे घर गया |

मैं आरक्षणके खिलाफ नही हूँ लेकीन प्रकृतीके नियमोंका उल्लंघन कितने सालतक करते रहेगें | अब नयी शिक्षा निती आयी है उसमे विद्यार्थीओंकी स्वाभाविक वृत्तीको जोखा जायेगा और उस तरह शिक्षा देनेकी व्यवस्था होनेके बाद विद्यार्थी सिर्फ नौकरी करते दिखेंगे नही, तो,  विविध क्षेत्रके इन्टरपिनर्स बनेंगे ऐसी आशा करता हूँ | हम कामयाब होगे यह स्पुर्तीदायक गीत सिर्फ छोटे छोटे विद्यार्थीयोंको गानेके लिए नही है | देशका हर राजकीय नेता, नोकरशहा, कर्मचारी, कामगार, प्राध्यापक-अध्यापक, शिक्षा संस्थाका मालीक, हर विद्यार्थी, हर नागरिक ' हम कामयाब होगे ' इस धूनको कृतीमें लानेके लिए तैयार होनेकी जरूरत 
है | कार्य कठीण है लेकीन असंभव नही है, यह हम सब जानते है | जब शिक्षा क्षेत्र अध्यापक ओरियन्टेड रहेगा, जब अध्यापक वर्ग विद्यार्थी ओरियन्टेड रहेगा, और अंतमे हर पालक अपने बालक ओरिन्टेड रहेगा तो नई शिक्षा नितीको सफल बनानेमे हम कामयाब होगे ऐसा विश्वास प्रगटकर मै विराम करता हूँ |

राष्ट्रीय शिक्षा निती- आत्मनिर्भरताकी शाश्वती भाग (१)


आप सभीको अंग्रजी नये वर्षकी शुभकामनायें |
बुधवार तारीख २९ जुलै २०२० को केंद्र सरकारने नई शिक्षा नितीकी घोषणा कर दियी | इस शिक्षा नितीकी पहली विशेषतः यह है की लगभग ३४ सालके बाद देशमे शिक्षा नितीमे बदल किया है | दुसरी विशेषता यह है की यह शिक्षा निती इश्रोके भुतपूर्व अध्यक्ष, जानेमाने वैज्ञानिक सन्माननीय कस्तुरी रंजनके अध्यक्षताके समितीने बनायी है | यह शिक्षा नीती बनाते समय ग्राम स्तरसे, राज्य  और राष्ट्रीय स्तरके शिक्षा नितीके अभ्यासकोंसे परामर्श किया है | स्वतंत्रताके बाद शिक्षा निती बनानेमें इतना बडा परिश्रम पहली बार ले गया है | इस नयी शिक्षा नितीपर  सभी क्षेत्रके तज्ञ तथा अभ्यासकोंने अपनी राय दियी है | वैसे तो मै व्यावसायिक पत्रकार नही हूँ और हर विषय और घटनापर लेख लिखनेकी क्षमता मुझमें नही है |  कुछ दिन पहले एक मेरे रिश्तेवाला महाविद्यालयीन विद्यार्थी जो मेरा ब्लाॅग पढता है, उसे नई शिक्षा नितीपर हिंदी भाषामे छोटा भाषण देना था | उसने मुझझे एक  आर्टिकलकी माँग कियी | एक दिनके बाद मैने उसे छोटी स्क्रीप्ट दियी | बादमे मुझे एहसास हुआ की इस विषयपर लेख लिखा जा सकता है और उसी प्रेरणासे तैयार हुई २ भाग की लेख मालिका  आपके सामने रखी है | सच बात यह है की यह लेख मालिका आपके सामने रखना यह भी आपके साथ संवादके माध्यमसे एक छात्रके रूपमे शिक्षा प्राप्त करनेका मेरा प्रयास है | स्वामी विवेकानंदने कहा है,  "Learnning process last only with your death. स्वामीजीका कहना यह है की हम अंतीम श्वास तक विद्यार्थी रहते, ऐसा मानकर कुछ ना कुछ सिखते रहो | "

इसाई सनावलीसे पहले दुनियामें देशका विकास और प्रगतीका परिमाण सिर्फ दो थे | इसमेसे पहला देशके नागरिकोंकी साक्षरता और दुसरा शिक्षा क्षेत्रका इन्फ्रास्ट्रक्चर | इसके बाद कृषी, पशुधन, उद्योग, रोड ट्रान्सपोर्ट, बंदर, सागरी- व्यापार, जैसे क्षेत्रमे देश कितना आत्मनिर्भर है इन बातोंसे देशके विकासकी पहचान होने लगी | और धिरे- धिरे बडे उद्योग, यंत्र सामूग्री, खनिज -धातू संपत्ती, सामरिक शक्तीसे लेकर बादमे विज्ञान- तंत्रज्ञान, आधुनिक शस्त्रे, जीडीपी जैसे विकासकी परिमाण अस्तीत्वमे आयी | विकासकी परिभाषा बदली पर शिक्षाका महत्व कम नही हुआ, क्योंकी तत्त्वज्ञान और शिक्षाके बलपर मानव जातीने विज्ञान और तंत्रज्ञानमे प्रगती कियी है |  इसिलीए अपने देशकी नयी शिक्षा नितीसे देशमें सकारात्मक बदलाव होगा की नही इसपर चर्चा करनी है तो हमें पहले देशकी पुरानी शिक्षा निती और शिक्षा क्षेत्रका इतिहास पर  कुछ बातोंपर संवाद करना अनिवार्य है |

पुरानी शिक्षा नितीसे देशकी कुछ भी प्रगती हुई नही, ऐसा मानना मैं गलत समझता हूँ  | देशमे हरित क्रान्ती, धवल क्रान्ती हुई इसिलीए तो देश कृषी एवं दुध और फलोत्पादान क्षेत्रमे स्वावलंबी बना है | उद्योग, उर्जा, दवायें तथा विज्ञान- तंत्रज्ञान, अणू-परमाणू तथा अवकाश का अभ्यास इत्यादी क्षेत्रमे भी अपने देशने काफी अच्छी प्रगती कियी 
है | लेकीन अपने देशकी प्रगतीकी अन्य देश जो अपने देशके बाद स्वतंत्र हुये उनकी प्रगतीसे तुलना करें तो हम जरूर पिछे है | इसके कारन बहूत है, लेकीन प्रमुख रूपसे देखा जायें तो देशकी जनसंख्या, नागरिकोंकी मानसिकता, राज्यव्यवस्थामें चलता आया भ्रष्टाचार, परिवारदी राजकीय दलकी बढती संख्या, राजकर्ताओंकी मानसिकता तथा विकासके बारेमें उनका दृष्टीकोन एवम् समर्पणताका अभाव इत्यादी कारन है | सबसे महत्त्वपुर्ण बात यह है की स्वतंत्रताके बाद हमारे देशके पाठशालाओंमे तथा महाविद्यालयोंमे, देशका इतिहासका जो Sylabus (अभ्यासक्रम ) रखा और सिखाया गया यह एक बडा कारन है |

जैसेकी उपर कहाँ है की जनसंख्या याने आबादी यह एक प्रमुख कारन है, जिससे प्रगतीकी गाडी धिमेसे चली, इसमे दो राय नही है | लेकीन यदि सरकार इस बारेमे स्वतंत्रताके बाद फौरन अभियान चलाते तो बढती जनसंख्या काबूमे रहती | लेकीन आजके युगके परिभाषामे जनसंख्या  याने मनुष्यबल | (Human Resources ) यह एक प्रकारकी उद्योगक्षेत्रमें पुंजी याने Capital माना जाता है | इसिलीए बढती जनसंख्याकी वजहसे विकासपर जो कुछ विपरीत परीणाम हुआ है उसके बारेंमे अब चर्चा करना निरर्थक होगा |   क्योंकी कुटुंब नियोजन का पालन अब सभी लोग करते है | पर इसका मतलब यह नही की धर्मके नामसे कोई कुटुंब नियोजनको विरोध करता रहें | इसके लिए जल्दसे जल्द समान नागरी कानून पारीत करना चाहिये | क्यों की जिस कुटुंबमे ज्यादा सदस्य होते वहाँ अन्न, वस्त्र, निवारा और शिक्षाका प्रबंध यह चार मूलभूत जरूरतोकी माँग बढती है और कमानेवाला एक ही रहेगा तो घरमे वेन्टिलेशन, शौचकी जगह, अन्न-धान्य रखनेकी जगह कम पडनेसे अस्वच्छता बढती है, जिससे बिमारीयाँ बढती है | इस संदर्भमे इस्लामी बांधव मजहबका आधार लेते है तो उन्हें भी समझाना पडेगा की नैसर्गिक संसाधन सरकरकी मालमत्ता नही है, यह सब प्रकृतीकी मालमत्ता है | रहा तिसरा कारन वह यह है की  मुस्लीम बांधवकी बढती संख्यासे दुनियाके बहुत देशमें अशांतताका और हिंसाका माहोल बन गया है, जो किसी भी देशके विकासमे सबसी बडी बाधायें डालती है |

अब हम नागरिकोंकी मानसिकतापर चर्चा करेंगे | आम तौरसे  किसी भी क्षेत्रके विषयपर नागरिकोंकी मानसिकता  पर भूतकालका संस्कारका प्रभाव रहता है | इसका अर्थ यह है की संस्कार ही प्रगतीका मूल है | इसिलीए संस्कार का इतिहास महत्वपूर्ण है | हमारे देशके इतिहास विषयके बारेंमे जब भी चर्चा होती है , तब राजे-महाराजाओंकी हुकमत, उनकी ऐषबाजी, उनमेसें कही राजाओंकी गद्दारी और उनका पराजय इन बातोंका उल्लेख देकर समाप्त होती है | लेकीन प्राचीन कालमे हमारे देशने, साहित्य, कला, नृत्य, विज्ञान, तंत्रज्ञान, सर्जरी,  स्थापथ्य, शिल्पकला, अस्त्र-शस्त्र, ज्ञानसाधना इन क्षेत्रमे अद्भूत प्रगती कियी थी | पर इस सत्यको तथा विदेशी आक्रातोंसे जिन्होंने कडवा प्रतिकार किया ऐसे राजाओं तथा क्रान्तीकारकोंके पराक्रमको इतिहास पुस्तकोंमे उचीत जगह मिली नही | इसिलीए इतिहासकी सच्चाई जाननी है तो निचे दिये हुए किताबें आप पढ सकते है |
१) " भारत- अतीत वर्तमान और भविष्य. " 
       लेखक- सुरेश सोनी, अर्चना प्रकाशक भोपाल,
२) " विश्वव्यापी हिंदू संस्कृती." 
      संपादक- डाॅ लोकेशचंद्र नचिकेत प्रकाशन,             नागपूर.
३) " भारताची उज्वल विज्ञान- परंपरा, 
       लेखक - सुरेश सोनी अनुवाद--डाॅ क कृ   
       क्षीरसागर
४) " भारतीय ज्ञानाचा खजिना " लेखक - प्रकाश
        पोळ  स्नेहल प्रकाशन, पुणे.

इन किताबोमें  वेदकालीनसे बिसवी संदियोके प्रारंभ तक भारतकी विज्ञान, संशोधन, उद्योग, धातू संपत्ती, कृषी, व्यापार,  इतिहास, गणित, भूगोल, भाषा- व्याकरण, इत्यादी क्षेत्रमे हुई प्रगतीकी जानकरी मिलती है | लेकीन शालेय तथा महाविद्यालयके पाठ्यपुस्तकोंमे इस बारेमें उल्लेख भी नही है | इतिहासके बारेमे एक सिद्धांत माना जाता है ' जो जिता वही इतिहास लिखता है |'  यही अनुभव हमारे देशके इतिहासके बारेंमे आता है | स्वतंत्रताके पहले अंग्रेज शासनने  देशका इतिहासकी रचना और पुनर्लेखन  इस तरह बनाया की अपने विद्यार्थार्योंमे देशकी प्राचीन संस्कृतीके प्रती अविश्वास तथा उदासिनता पैदा हो |

ऐसी उदासिनता याँ अविश्वास का विवरण हमारे देशके भूतपुर्व राष्ट्रपती भारतरत्न डाॅ अब्दुल कलामने अपने  India 2020 A Vision For New Millennium  इस पुस्तकमे दिया है | भारत महाशक्ती होनेकी  संभावना होते हुए भी बना क्यो नही  इसपर अपना अनुभव बताते समय डाॅ कलामजी कहते है " मेरे घरमे दिवार पर एक कॅलेन्डर टँगा है | इस बहुरंगी सुंदर कॅलेन्डर मे सैटेलाइटके द्वारा युरोप, आफ्रीका आदि महाद्वीपोंके खीचे हुयें चित्र छपें है और यह कॅलेन्डर जर्मनीमे छपाया था |  यह चित्र देखकर मेरे घरमें कोई आता था तब वह इस चित्रको देखकर गौरव करता था | और जब मैं उसे कहता था की यह कॅलेन्डर जर्मनीमे छापा है | यह सुनते ही उससे चेहरेपर आनंदके भाव आते थे और बडे उत्साहसे कहता था " सही बात है | जर्मनी की बात ही कुछ और है | उसकी टेक्नाॅलाॅजी बहूत आगे बढी है |" और जब मै उसे कहता था की "यह चित्र जर्मनीने छपाया है लेकीन यह सब चित्र खिंचे है भारतीय सॅटेलाईटने " तब दुर्भाग्यसे किसी भी व्यक्ती  के चेहरेपर मुस्कारहट दिखायी नही पडी | " डाॅ कलाम आगे कहते है की " जब मै चित्र नजदीक रखकर दिखाता था तब छोटे अक्षरोंमे ' भारतीय सॅटेलिटके सौजन्यसे ' इस वाक्यको पढते है तब भी इस सत्यके बारेंमे इनकी प्रतिक्रीया रहती है  ' शायद हो सकता है | '  भारतरत्न डाॅ अब्दुल कलामने अपने उस किताबमे इस तरह चार अनुभव विस्तारसे दिये है | इस लेखके विस्तारके भयसे यहाँ नही देता हूँ |

भारतरत्न डाॅ कलामजीने भारतवासीयोंकी मानसिकता जो अनुभव कथन किए है इसका कारन हम ढूढनेका प्रयास करें तो हमें इसवी सन 1835 तक पिछे जाना होगा | उस समय भारतमें ब्रिटीशकी हुकमत थी | अपनी सत्ता लंम्बे समयतक टिक पाये तो भारतकी शिक्षा व्यवस्थाको तोडना चाहिये और यहाँ शिक्षाका माध्यम अंग्रजी करना होगा | ऐसी कल्पना इंग्लडके संसदमे लाॅर्ड मेकाॅले नामके अंग्रेजी विद्वानने सादर कियी और इंग्लडके तत्कालीन सरकारने उसे ग्रीन सिग्नल दिया | अपने देशके इतिहासमे सबसे बडा खलनायक लार्ड मेकाॅले ही है | लार्ड मेकाॅलेने देशकी शिक्षा व्यवस्था पुरी उखाड दियी | उन्होने अपनी देशकी गुरूकूल व्यवस्था तोड दियी | संस्कृत भाषा अभ्यासक्रमसे हटाई , संस्कृत भाषामे  कृषी पद्धत, बिमारी चिकीत्सा, विज्ञान, उद्योग, स्थापस्त्य, साहित्य, शिल्पकला चित्रकला, गायन-संगीत, लगभग जीवनके हर क्षेत्रके जो ग्रंथ थे उन्हे हटाया गया |  जीवनके हर क्षँत्रमें इंग्लड और तथा पश्चीमे देश कैसे आगे है और भारत कितना पिछडा है ऐसी भारतवासियोंकी मानसिकता  तैयार कियी | आज ही हम इस मानसिक गुलामीको नष्ट करनेमे सफल नही हो सके | क्योंकी  स्वतंत्रताके बाद हमने अंग्रजी माध्यमोकीं शालाये हटाये नही | प्राथमिक से महाविद्यालयीनकी मास्टर डिग्रीतक पाठ्यकिताबोंका निर्माण (Text Books )  करनेकी जिम्मेदारी साम्यवादी और समाजवादी विचारवंतोंपर सौंपी गयी | उन्होंने अपने राजनैतीक फायदा के लिए,लार्ड मेकाॅलेने रचाई हुई शिक्षा नीती चालू रखी | अपने भूमीपर एक राष्ट्र और एक संस्कृती अस्तीत्वमे थी | इस सत्यको अच्छी तरहसे पेश किया हुआ एक किताब मैने पढा है | वह किताब भारतीय विचार साधना पुणे ने प्रकाशित किया है | उसक नाम है, 'विविधतातून एकता | ' इस किताबमे भारतके सभी प्रातीय भाषाओंके  समान अर्थ है ऐसे मुहाँवरोंका जिक्र है | भारतके प्राचीन साहित्य, इतिहास, त्योहारकी पंरपंरा और उसकी पिछेकी भावना कैसी एक इन सबकी पुष्टी कियी है | विविधतामे एकता का प्रतिक के दो महान सांस्कृतिक ग्रंथ लगभग देशके सभी प्रान्तिय भाषामे  है उनका नाम है रामायण और महाभारत | लेकीन सत्ताधारी राजनैतिक दल ने इस सत्यको कभी स्विकारा ही नही | अपने देशपर तुर्क, अफगाण, मध्य-पुर्व देश मोंगल और युरोपियन देशोंने  तलवार और तोफों जैसे शस्त्रोंके ताकदपर देशको लुटा, हमारे मंदिरे तोडवायी, अपने माता-बहनोंपर अत्याचार किया और जबरन धर्मातंर करवाया और अपने मनमानीसे राज किया | इसी इतिहासके आधारपर स्वतंत्रताके बाद साम्यवादी और समाजवादी विचारवंतोने भारत पराजीत हुये लोगोंका देश ऐसी प्रतिमा बनाई | लेकीन हिंदु राजे-महाराजाओंने आक्रस्तोंकोंसे समय समयपर अपने पराक्रमके बलपर जबरदस्त सामना किया था, इसकी जानकारी छुपाकर  इतिहास विषयका सिलॅबस बनाया | इतना ही नही, तो इन विचारवंतोने अंग्रेज हुकमतके कालमें लार्ड मेकाॅलेने बनायी हुई शिक्षा नितीको बढावा दिया | लाॅर्ड मेकाॅलेने भारत इस नामका देश अस्तीत्वमे नही था, और यहाँके लोग विचार और आचारणमे अप्रगत थे, अंधश्रद्धालू, मागास थे, ऐसी घृणा पैदा कियी, वह आजही अपने समाजमे मौजूद है |

वहीं साम्यवादी और समाजवादी विचारवंत, भाजपेतर  राजनैतिक पार्टीयोंके नेतागण, और कुछ प्रसारमाध्यमें पुरोगामी और उदारमतवादीका नकली झेंडा लेकर छ सालसे जनताको गुमराह करके केंद्र सरकारके खिलाफ झुठे आंदोलन छेड रहे है | यहीं वह लोग है जिन्होंने रामायण, महाभारत जैसे घटनायें घटी नयी, ये सब बातें काल्पनिक है,  ऐसे कहकर प्रभू श्रीरामका जन्मका प्रमाणपत्र खुलेआम सर्वोच्च कोर्टमे मांगा था | सच यह है की लार्ड मेकाॅलेके देशबंधु और इतने ही खलनायक समझे गये लार्ड कर्झनने ( जिन्होंने बंगालके विभाजनका फैसला लिया था) एक पार्टीमे कहा है की " जब अंग्रेज लोग जंगलमे रहते थे तब भारतमे गुरूकूल अस्तित्वमे 
थे | " स्वतंत्रताके पुर्व काॅग्रेसके पहिली महिला अध्यक्षा ॲनी बेंझटने भी कहा है कि " दुनियाकी सबसे महान संस्कृती सिर्फ हिंदु संस्कृती है | दुनियाके अन्य देशोंने और संस्कृतीयोंने हिंदु संस्कृतिको अपना मार्गदर्शक मानकर सहिष्णूताका स्विकार करना जरूरी है |"  दुनियामें मशहूर माने गये अमेरिकन इतिहासकार  ड्युरांटने 'भारतकी संस्कृती और सभ्यता सर्वोत्तम है ' ऐसा प्रमाणपत्र दिया है |

लेकीन दुर्भाग्यवशसे स्वतंत्रताके बाद सत्ताधारी काॅग्रेस पार्टी और उसको पिछेसे समर्थन करते आयी समाजवादी, साम्यवादी, तथा प्रादेशिक पार्टींयोके नेता, विचारवंत, और  मिडायांने  हिंदु समाजका लगातार बुद्धीभेद करनेका षडयंत्र रचाया और २०१४ तक  सफलता प्राप्त कियी | इसी वजहसे जीवनके बहूत ऐसे क्षेत्र है, जहाँ हमारा देश आज भी अन्य देशोंपर निर्भर रहता है | उसका कारन शिक्षा नितीमें समयसे चलते बदल करनेंमे हमने देर कियी है | इससे दुर्भाग्यसे हमारें यहाँ सिर्फ प्रशासकीय कामकाज देखनेवाले नोकरशहा, तथा कारकूनोंकी संख्या बढी,और उद्यमशिलता घटती गयी | जाने माने उद्योगपती भी कहते है की हमारे इंजिनियरकों भी नौकरी देनेसे पहले ट्रेनिंग देना पडता है | आज भी हमारे देशके विद्यार्थी उच्च शिक्षाके लिए विदेशमे जातें और वहाँ सेटल होते है | Human Resource को यदी हम औद्योगिक पुंजी( Capital) याँ मालमत्ता (asset) मानते है तो हमारे देशके मेरीट विद्यार्थीयोंका विदेशमें सेटल होनेसे हम कौशल्य (Talant ) खो बैठते है | नतिजा यह हुआ की हम देशकी संशोधन शक्तीको  गवाँते है | इसिलीए सुरक्षाके शस्त्र,तथा तंत्रज्ञान, कई इलेक्ट्रानिक्स, इलेट्रिकल, ग्राहकोपयोंगी वस्तुऐं और कृषीमालपर प्रक्रीयासे वस्तुओंकी निर्मिती करनेंमे देश जितना सक्षम होना चाहिये था उतना हुआ नही | इसमे एक दुसरी वजह यह हैं की स्वतंत्रता संग्रामके दौरान जो स्वदेशी आंदोलन शस्त्र बना था उस शस्त्रकी स्वदेशी मुँठ निकाली गयी और अब जो आंदोलने होती है वह राजकीय हेतूसे प्रेरीत होती है | विविध मांग पर बार बार आंदोलनेसे युवा शक्ती क्षीण होती है, और सार्वजनिक मालमत्ताका करोडो का नुकसान होता है | स्वदेशी एक भाव है और दुनियाके जितने भी देश प्रगत हूये है उन्होंने अपने अपने देशकी संस्कृतीका इतिहास, अपनी भाषा, देशमें तैयार होनेवाले गृहपयोगी वस्तूयें प्रती आदर कैसा रखा जायें, यह ध्येय सामने रखकर अपनी  शिक्षा निती अपनायी जिससे उन देशका उत्पादन क्षेत्र सर्वस्पर्शी और व्यापक बन गया है | इसिलीए उन देशमे वस्तुओंकी आयात कम रहती है और निर्यात बढती दिखायी देती है | आज वही विकासका मापदंड माना जाता है |
( कृपया भाग २ पढीये | )

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